भगवती कामन्दकी मालती के घर पर न होने का समाचार सुनकर बहुत चकित हुई। अचानक माधव को कपालकुंडला और काली मन्दिर की याद आ गई। वह बहुत तेजी से वहां पहुंचा और मन्दिर में घुस गया। जो दृश्य उसे दिखाई दिया वह भयभीत करने वाला था लेकिन खतरे के डर से उसने उतावली का कोई काम नहीं किया। उसने मालती को एक खंभे से बंधे पाया और देखा कि कपालकुंडला करीब-करीब नंगी पागलों की तरह नाच रही है।
वह मालती पर हंस रही थी और चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी, “अब तुम मेरी दया पर हो, कहां है तुम्हारा पति और सब अविवाहित लड़कियों का मित्र, साधुओं को मारने वाला और मेरे गुरू का हत्यारा? अब वह आये न तुम्हें बचाने के लिए। मैं तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े करूंगी जिससे तुम धीरे-धीरे मरो। जब तुम मरोगी तो देवी मुझे और दैवी शक्ति देगी।"
वह पागलों की तरह से नाचने लगी। माधव ने भीतर झांककर स्थिति को अच्छी तरह से भांप लिया। वह बिना सोचे समझे भीतर नहीं जाना चाहता था। वह घोड़े को बांधने वाली रस्सी लाया और तब भीतर जाकर एक खम्भे के पीछे छिप गया। मालती ने उसे देख लिया, लेकिन उसने अपने ओठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का संकेत किया। जैसे ही पुजारिन उस खम्भे के नजदीक आई जहां माधव छिपा हुआ था उसने रस्सी की कमन्द बनाकर एकाएक उस पागल औरत को पकड़ लिया।
वह चिल्लाने लगी और खूब हाथ-पैर मारकर निकलने का प्रयत्न करने लगी। वह ऊंचा-ऊंचा रोने लगी लेकिन माधव ने उसे खींचकर खम्भे से कसकर बांध दिया। तब उसने एक कपड़े का टुकड़ा उसके मुँह में ठंस दिया जिससे वह चिल्ला न सके। वह अब भी शैतान की तरह लड़ रही थी और अपने हाथ हिला रही थी। चाहे वह कितनी ही दुष्ट क्यों न हो माधव को औरत को मारना अच्छा नहीं लगा। माधव ने घोड़े का कोडा निकाला और उसे पीटने लगा। जब तक वह गिर नहीं गई उसने मारना बन्द नहीं किया।
तब माधव ने मालती के बन्धन काटे, उसे उठाकर बाहर लाया और भगवती कामन्दकी के पास ले गया। यह खबर फैल गई। राजा, भूरिवसु और कई दूसरे लोग अगले दिन सुबह-सुबह भगवती कामन्दकी के विहार में आये।
राजा भगवती कामन्दकी से बोला, “आपने राजा की इच्छा के विरुद्ध कार्य किया है लेकिन मैं आपको क्षमा करता हूं क्योंकि उस कार्य का अन्त शान्ति और खुशी लाया है।"
भगवती कामन्दकी ने उत्तर दिया, "मालती और माधव का मिलन अचानक नहीं हुआ है। भूरिवसु और देवव्रत (माधव के पिता) एक साथ पढ़ते थे और गहरे मित्र भी थे। उन्होंने एक दूसरे से वायदा किया था कि यदि एक के लड़की और दूसरे के लड़का हुआ तो वे इनका विवाह कर देंगे।
जब देवव्रत ने माधव को पद्मावती भेजा तो मुझे भी सूचना दी और लिखा कि मैं ऐसा प्रबन्ध करूं जिससे मालती और माधव का विवाह हो जाय। यदि मैंने कुछ किया है तो केवल अपने मित्र की सहायता करने के लिए ही किया है।"
अन्त में सब प्रसन्न थे। राजा इतने प्रसन्न थे कि उन्होंने माधव को एक प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया।
मालती और माधव आनन्द से रहने लगे।