१.नवजातों में वयस्कों से 100 अधिक हड्डियाँ होती हैं
नवजातों की कई हड्डियाँ बढ़ते बढ़ते जुड़ने लगती हैं |
नवजातों में जन्म के समय ३०० हड्डियाँ होती हैं और उनमें से अधिकतर के बीच उपास्थी मोजूद होती है | इस अधिक लचीलेपन के कारण ही वह आसानी से बिर्थ कैनाल से निकल पाते हैं और उनकी बढ़त की सम्भावना भी बनी रहती है | उम्र के बढ़ने के साथ कई हड्डियाँ जुड़ कर २०६ हड्डियाँ बन जाती हैं जो एक साधारण व्यसक आदमी के कंकाल में होती हैं |
२.गर्मी में एइफ्फेल टावर 15 सेंटीमीटर तक बढ़ जाता है
बड़ी इमारतें को विस्तारित अनुबंधों के साथ बनाया जाता है जिससे उन्हें बिना कोई नुकसान पहुंचे बढ़ने और घटने की जगह मिल जाती है |
जब किसी पदार्थ को गरम किया जाता है तो उसके कण ज्यादा चलते हैं और ज्यादा जगह लेते हैं – इसे हमें थर्मल विस्तार भी कहते हैं | इसके विपरीत तापमान गिरने पर वह सिमटने लगता है | जैसे एक थर्मामीटर में स्थित मरकरी का स्तर बढ़ते तापमान के साथ मरकरी के विस्तार के हिसाब से उठता और गिरता है | ये प्रभाव गैस में ज्यादा प्रभावी होता है लेकिन कई तरल और ठोस पदार्थों जैसे लोहे में भी होती हैं | इसी वजह से कई बड़ी संरचनाएं को विस्तारित अनुबंधों के साथ बनाया जाता है जिससे वह बिना नुक्सान पहुंचे बढ़ और घट पाएं |
३.धरती की २०% ऑक्सीजन अमेज़न के रैन्फोरेस्ट में उत्पन्न होती है
अमेज़न रैन्फोरेस्ट धरती के 5.5 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर (2.1 मिलियन स्क्वायर मील) क्षेत्रफल में फैला हुआ है |
हमारा वायुमंडल 78 % नाइट्रोजन और 21 % ऑक्सीजन से बना है, और बाकी गैस थोड़ी थोड़ी मात्रा में मोजूद होती हैं | धरती पर काफी सारे जीवित प्राणियों को जिंदा रहने के लिए ऑक्सीजन की ज़रुरत होती है जिसे वह सांस लेते वक़्त कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित कर देते हैं | अच्छी बात ये है की पेड़ हमारे गृह के ऑक्सीजन के स्तर को प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से बरक़रार रखते हैं | इस प्रक्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को उर्जा में परिवर्तित किया जाता है, और ऐसा करने में वे ऑक्सीजन को उप उत्पाद की तरह छोड़ते है | धरती के 5.5 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर (2.1 मिलियन स्क्वायर मील) क्षेत्रफल में फैला हुआ होने के कारण अमेज़न रैन्फोरेस्ट एक साथ बहुत सारी कार्बन डाइऑक्साइड का समावेश कर धरती का ऑक्सीजन का महत्वपूर्ण अनुपात उपलब्ध कराता है |
4. कुछ धातुएं इतनी प्रतिक्रियाशील होती हैं की पानी के संपर्क में आते ही विस्फोटक हो जाती हैं
ये होता है जब सोडियम पानी के संपर्क में आता है |
कुछ ऐसी धातुएं होती हैं – जैसे पोटैशियम,सोडियम, लिथियम,रूबिडीयाम और सीज़ियम – जो इतनी प्रतिक्रियाशील होती हैं की वह हवा के संपर्क में आते ही एक पल में ऑक्सीडाइज हो जाती हैं | अगर इन्हें पानी में डाल दें तो वह विस्फोट हो जाती हैं ! सब तत्व रासायनिक तौर पर स्थिर रहना चाहते हैं – दुसरे शब्दों में एक पूरा बाहरी इलेक्ट्रान आवरण होना | इसको पाने के लिए धातुएं इलेक्ट्रॉन्स को छोड़ते हैं | अल्कली धातुएं के बाहरी आवरण में एक ही इलेक्ट्रान होता है और इसीलिए वह किसी और तत्व को इस इलेक्ट्रान को देने के फिराक में रहते हैं | इसीलिए वह और तत्वों के साथ योगिक इतनी आसानी से बना लेते हैं ताकि उन्हें स्वतंत्र रूप से नहीं रहना पड़े |
५. नुएट्रोन तारे के एक चम्मच का वज़न ६ बिलियन टन होता है
नुएट्रोन तारे में अन्तरिक्ष का सबसे घना पदार्थ मोजूद होता है |
नुएट्रोन तारे में एक ऐसे तारे के टुकड़े मोजूद है जिसमें उर्जा ख़तम हो गयी है | ये मरता हुआ तारा सुपरनोवा की तरह फट जाता है जबकि इसका अन्तर्भाग गुरुत्वाकर्षण की वजह से सिमट जाता है जिससे जन्म होता है अति घने नुएट्रोन तारे का | खगोलशास्त्रियों ने सौर मंडल में मोजूद तारों और आकाश गंगा के वज़न को मापने की कोशिश की है, जिसमें एक सौर वज़न सूर्य के वज़न (यानी २*१०३० किलोग्रामस /४.४*१०३० पौंड) जितना होता है | एक साधारण न्यूट्रॉन तारा का वज़न ३ सौर्य वज़न के बराबर होता है, जिसको लगभग दस किलोमीटर (6.2 मील) की त्रिज्या के एक क्षेत्र में ठूंसा गया है- जिस वजह से उसमें अन्तरिक्ष का सबसे घना तत्व मोजूद होता है |
६. हवाई हर साल अलास्का के ७.५ सेंटीमीटर नज़दीक आ जाता है
हवाई की गति उसी बराबर है जिस गति से उँगलियों के नाखून बढ़ते हैं |
धरती की सतह को टेकटोनिक प्लेट्स नाम की कई विशालकाय टुकड़ों में बांटा जा सकते है | ये प्लेट्स पृथ्वी के ऊपरी विरासत में बह रही धाराओं की वजह से हमेशा गति में रहती हैं | गरम पत्थर उठते हैं और फिर ठन्डे हो के नीचे समा जाते हैं, और इससे गोल संवहन प्रवाह उत्पन्न होते हैं जो विशाल कन्वेयर बेल्ट की तरह अपने ऊपर स्थित टेकटोनिक प्लेट्स को चलाते रहते हैं | हवाई के पसिफ़िक प्लेट के मध्य में है जो की धीरे धीरे उत्तर –पश्चिम नार्थ अमेरिका प्लेट, अलस्का के पास की तरफ को बढ़ रहा है | प्लेट्स की गति उसी बराबर है जिस गति से हमारे उँगलियों के नाखून बढ़ रहे हैं |
७. चाक अरबों सूक्ष्म प्लवक जीवाश्मों से बनाया जाता है
चाक 200 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी के महासागरों में रहने वाले एक कोशिकीय एल्गी से बनाया जाता है |
कोक्कोलिथोफोरेस नामक एक कोशकीय एलगी २०० मिलियन सालों से धरती के समुद्र में बसता है | अन्य समुद्री पेड़ से भिन्न वह अपने आप को केल्साइट (कोक्कोलिथ्स) की छोटी छोटी प्लेटों से घेरे रहता है | 100 मिलियन साल पहले परिस्थितियां ऐसी बनी की कोक्कोलिथोफोरेस समुद्र के तल पर एक गहरी सफ़ेद परत की तरह बिछ गया | जैसे जैसे उसके ऊपर और चीज़ें जमती गयी, दबाव के कारण कोकोलिथ्स एक पत्थर में परिवर्तित हो गया जिससे चाक का जमाव उत्पन्न हो गया| कोक्कोलिथोफोरेस उन कई प्रागैतिहासिक प्रजातियों में से एक है जो जीवाश्म रूप में देखे जाते हैं, पर ये कैसे पता चले की उनकी उम्र कितनी है ? समय के साथ पत्थर क्षैतिज परतों में बनने लग जाते हैं, जिससे पुराने पत्थर नीचे और नए पत्थर ऊपर आ जाते हैं | जिसमें जीवाश्म मिला है उस पत्थर का विश्लेषण कर पुरातत्वविज्ञानी उसकी उम्र पता कर सकते हैं | कार्बन डेटिंग रेडियोधर्मी तत्वों जैसे कार्बन -14 के क्षय की दर के आधार पर एक जीवाश्म की उम्र और सही से पता कर लेता है |
८ २.३ बिलियन सालों में धरती इतनी गरम हो जायेगी की उस पर ज़िन्दगी नामुमकिन हो जाये |
हमारा गृह भी अंत में मार्स के जैसे एक बड़ा रेगिस्तान बन जाएगा |
Oआगे आने वाले लाखों सालों में सूरज धीरे धीरे और गरम और रोश्निपूर्ण होता जाएगा | २ बिलियन सालों में ही तापमान इतना बढ़ जाएगा की हमारे समुद्र सूख जाए जिससे धरती पर ज़िन्दगी का मिलना नामुमकिन हो जायेगा | हमारा गृह मार्स के जैसे एक रेगिस्तान बन जायेगा | कई लाखों साल बाद जब सूरज रेड जायंट अवस्था में पहुंचेगा तो वैज्ञानिकों का मानना है की वह धरती को पूरी तरह से समा लेगा जिससे हमारा गृह पूर्ण रूप से ख़तम हो जायेगा |
९. पोलर बीअर्स को अवरक्त कैमरों द्वारा देख पाना असंभव है |
पोलर बीअर्स अपनी त्वचा के नीचे चर्बी की एक मोटी परत होने की वजह से गरम रहते हैं |
थर्मल कैमरा किसी के द्वारा गर्मी के छोड़ने को अवरक्त रूप में देख लेते हैं, लेकिन पोलर बीअर्स गर्मी को बचाने में माहिर हैं | बीअर्स अपनी त्वचा के नीचे चर्बी की एक मोटी परत होने की वजह से गरम रहते हैं | इसके ऊपर एक मोटा फर की परत और वह सबसे ठन्डे अर्टिक दिन में भी आराम से रह सकते हैं |
१०.सूरज से धरती तक रौशनी पहुँचने में 8 मिनट १९ सेकंड लगते हैं
सूरज की रौशनी को प्लूटो तक पहुँचने में साड़े पांच घंटे लगते हैं |
अन्तरिक्ष में रौशनी ३०००००० किलोमीटर/सेकंड (१८६००० मील ) की गति से चलती है | इतनी तेज़ गति पर भी सूरज और हमारे बीच का रास्ता यानि १५० मिलियन किलोमीटर (९३ मिलियन मील ) तय करने में उसे काफी वक़्त लग जाता है | फिर भी 8 मिनट उन साड़े पांच घंटे से बहुत कम वक़्त है जो सूरज की रौशनी को प्लूटो तक पहुँचने में लगते हैं |
११.अगर हम अपने अणुओं में से सारी खाली जगह निकाल लें, पूरी इंसानी जाती एक शुगर क्यूब के विस्तार में समा जाएगी
अणुओं का ९९.९९९९९ % खाली जगह होती है |
ये दुनिया जिन अणुओं से बनी है वो देखने में ठोस लगती है पर हकीकत में ९९.९९९९९ % खाली जगह होते हैं | एक अणु में एक घना न्यूक्लीएस होता है जिसके आस पास इलेक्ट्रॉन्स का एक बादल काफी बड़े विस्तार में फैला होता है | वो इसीलिए की कण होने के साथ साथ इलेक्ट्रॉन्स लहरों की तरह रहते हैं | इलेक्ट्रॉन्स वहीं रह सकते हैं जहाँ इन लहरों का उतार और चड़ाव मेल खाते हैं | और एक बिंदु पर केन्द्रित होने के बजाय हर इलेक्ट्रान का स्थान काफी जगह में फैला हुआ है | इसीलिए ये इतनी जगह लेते हैं |
१२. पेट का एसिड इतना तेज़ होता है की रेजर ब्लेड्स को गला दे
आपका पेट के अंदरूनी हिस्से पूरी तरह से हर चार दिन में नवीनिकृत हो जाती है |
आपका पेट पीएच २ या ३ वाले एक अति संक्षारक हाइड्रोक्लोरिक एसिड की कृपा से खाने को हजम कर पाता है | ये एसिड आपके पेट की परत पर भी हमला करता है, जो अपनी सुरक्षा अल्कली बिकारबोनिट तरल छोड़ कर करता है | इस परत को फिर भी बार बार बदलने की ज़रुरत होती है और वह हर ४ दिन में नवीनिकृत हो जाती है|
१३.धरती एक विशालकाय चुम्बक है
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का दुनिया भर में कम्पास सुई प्रयोग करती है।
धरती का मध्य ठोस लोहे का बना चक्र है और उसके आस पास तरल लोहा मोजूद होता है | तापमान और घनत्व में बदलाव के चलते इस लोहे में धाराएं उत्पन्न होती हैं जिससे विद्युत् धाराएं निकलती हैं | इसके साथ धरती का घूमना और ये धाराएं एक चुम्बकीय शेत्र उत्पन्न करता है जिसका दुनिया भर में कंपास सुई इस्तेमाल करती हैं |
१४. वीनस इकलौता गृह है जो घडी की सुई की दिशा में चलता है
वीनस शायद एक विशालकाय क्षुद्रग्रह से टकराने के बाद अपने रास्ते से भटक गया है |
हमारा सौर्य मंडल एक धुल और गैस के बादल की तरह से शुरू हुआ था और अंत में सूरज को केंद्र रख वह एक घूमती तश्तरी में सिमट कर रह गया | इस एक जैसी उत्पत्ति के कारण सारे गृह सूरज को बीच में रख एक ही दिशा में उस के आस पास घुमते हैं | वह सब एक ही दिशा में घुमते हैं ( ऊपर से देखने से घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में ) –सिर्फ यूरेनस और वीनस को छोड़ | यूरेनस अपनी तरफ को घूमता है और वीनस ठीक उलटी दिशा में घूमता है | शायद इन दोनों का सबसे अलग होने की वजह है विशालकाय क्षुद्रग्रह जिसने पहले समय में इनसे टकरा कर इन्हें इनके रास्ते से भटका दिया |
१५. एक पिस्सू अंतरिक्ष शटल से अधिक तेजी से गति बड़ा सकती है
पिस्सू जब कूदते हैं तो उन्हें 100 जी का अनुभव होता है|
एक कूदती पिस्सू एक मिलिसेकंड में 8 सेन्टीमीटर (३ इंच) की ऊँचाई तक जा सकती है | त्वरण, समय के साथ एक वस्तु की गति में परिवर्तन को कहते हैं और इसको हम जी में मापते हैं जिसमें एक जी धरती के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न त्वरण के बराबर(९.8 मीटर /३२.२फीट /स्क्वायर सेकंड ) होता है | पिस्सू 100 जी तक पहुँच सकती हैं जबकि अंतरिक्ष शटल की अधिकतम त्वरण ५ जी होता है | पिस्सू का राज़ है एक खिंचाव से भरा प्रोटीन जैसा पदार्थ जो उसको स्प्रिंग की तरह उर्जा बचा और छोड़ने देती है |