प्रेमचंद ने 'संग्राम' (1923), 'कर्बला' (1924) और 'प्रेम की वेदी' (1933)
नाटकों की रचना की। ये नाटक शिल्प और संवेदना के स्तर पर अच्छे हैं
लेकिन उनकी कहानियों और उपन्यासों ने इतनी ऊँचाई प्राप्त कर ली थी कि
नाटक के क्षेत्र में प्रेमचंद को कोई खास सफलता नहीं मिली। ये नाटक
वस्तुतः संवादात्मक उपन्यास ही बन गए हैं।