प्रेमचंद एक सफल अनुवादक भी थे। उन्होंने दूसरी भाषाओं के जिन लेखकों को पढा और जिनसे प्रभावित हुए, उनकी कृतियों का अनुवाद भी किया। 'टॉलस्टॉय की कहानियां' (1923), गाल्सवर्दी के तीन नाटकों का 'हडताल' (1930), 'चांदी की डिबिया' (1931) और 'न्याय' (1931) नाम से अनुवाद किया। उनके द्वारा रतननाथ सरशार के उर्दू उपन्यास 'फसान-ए-आजाद' का हिंदी अनुवाद 'आजाद कथा' बहुत मशहूर हुआ।