डिंग्को सिंह एक भारतीय मुक्केबाज हैं जिन्होंने 1998 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। वे मणिपुर के हैं.उनका जन्म 1 जनवरी 1979 को मणिपुर के एक दूरदराज स्थित गांव के एक अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था। डिंग्को को अपने जीवन की शुरुआत से ही अनेक विषमताओं का सामना करना पड़ा और उनका पालन-पोषण एक अनाथालय में किया गया।
बैंकॉक में 1997 में किंग्स कप में जीता। 1998 के बैंकॉक एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। गान्गिम डिंग्को सिंह, जिन्हें आमतौर पर डिंग्को सिंह के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय मुक्केबाज हैं और देश में पैदा होने वाले अब तक के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में उनका नाम लिया जाता है। 1998 के बैंकाक एशियाई खेलों की मुक्केबाजी प्रतियोगिता में एक स्वर्ण पदक जीतने के कारण उनकी पहचान कायम हुई।
भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा शुरू की गयी विशेष क्षेत्र खेल योजना के प्रशिक्षकों ने डिंग्को की छिपी प्रतिभाओं को पहचाना और मेजर ओ.पी. भाटिया की विशेषज्ञ निगरानी के तहत उन्हें प्रशिक्षित किया गया; मेजर भाटिया बाद में भारतीय खेल प्राधिकरण की टीम शाखा के कार्यकारी निदेशक बने थे। डिंग्को की प्रतिभा, प्रयास और प्रशिक्षण ने रंग दिखाना शुरु किया और महज 10 वर्ष की आयु में उन्होंने 1989 में अम्बाला में आयोजित जूनियर राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में जीत हासिल की। इस उपलब्धि के कारण चयनकर्ताओं और प्रशिक्षकों का ध्यान उनपर गया, जिन्होंने उसे भारत के एक होनहार मुक्केबाजी स्टार के रूप में देखना शुरु कर दिया।अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी के क्षेत्र में उन्होंने वर्ष 1997 में अपना पहला कदम रखा और 1997 में बैंकॉक, थाईलैंड में आयोजित किंग्स कप में जीत हासिल की। टूर्नामेंट जीतने के अलावा, डिंग्को सिंह को प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज भी घोषित किया गया।मुक्केबाजी के खेल में उनकी उत्कृष्टता और अपने लगातार प्रयासों एवं समर्पण द्वारा देश के लिए किये गए उनके असाधारण योगदान को सम्मानित करने के लिए डिंग्को सिंह को वर्ष 1998 में प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया गया।