वनकन्या को यकायक जमीन से निकल कर पैर पकड़ते देख वीरेंद्रसिंह एकदम घबरा उठे। देर तक सोचते रहे कि यह क्या मामला है, यहाँ वनकन्या क्यों कर आ पहुँची और यह योगी कौन हैं जो इसकी मदद कर रहे हैं?
आखिर बहुत देर तक चुप रहने के बाद कुमार ने योगी से कहा - ‘मैं इस वनकन्या को जानता हूँ। इसने हमारे साथ बड़ा भारी उपकार किया है और मैं इससे बहुत कुछ वादा भी कर चुका हूँ, लेकिन मेरा वह वादा बिना कुमारी चंद्रकांता के मिले पूरा नहीं हो सकता। देखिए इसी खत में, जो आपने दिया है, क्या शर्त है? खुद इन्होंने लिखा है कि मुझसे और कुमारी चंद्रकांता से एक ही दिन शादी हो’ और इस बात को मैंने मंजूर किया है, पर जब कुमारी चंद्रकांता ही इस दुनिया से चली गई, तब मैं किसी से ब्याह नहीं कर सकता, इकरार दोनों से एक साथ ही शादी करने का है।’
योगी - (वनकन्या की तरफ देख कर) ‘क्यों री, तू मुझे झूठा बनाना चाहती है?’
वनकन्या - (हाथ जोड़ कर) ‘नहीं महाराज, मैं आपको कैसे झूठा बना सकती हूँ? आप इनसे यह पूछें कि इन्होंने कैसे मालूम किया कि चंद्रकांता मर गई?’
योगी - (कुमार से) ‘कुछ सुना। यह लड़की क्या कहती है? तुमने कैसा जाना कि कुमारी चंद्रकांता मर गई है?’
कुमार - (कुछ चौकन्ने हो कर) ‘क्या कुमारी जीती है?’
योगी – ‘जो मैं पूछता हूँ, पहले उसका तो जवाब दे दो?’
कुमार - ‘पहले जब मैं इस खोह में आया था तब इस जगह मैंने कुमारी चंद्रकांता और चपला को देखा था, बल्कि बातचीत भी की थी। आज उन दोनों की जगह इन दो लाशों को देखने से मालूम हुआ कि ये दोनों... (इतना कहा था कि गला भर आया।)
योगी - (तेजसिंह की तरफ देख कर) ‘क्या तुम्हारी अक्ल भी चरने चली गई? इन दोनों लाशों को देख कर इतना न पहचान सके कि ये मर्दों की लाशें हैं या औरतों की? इनकी लंबाई और बनावट पर भी कुछ ख्याल न किया।’
तेजसिंह - (घबरा कर तथा दोनों लाशों की तरफ गौर से देख और शर्मा कर) ‘मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने इन दोनों लाशों पर गौर नहीं किया, कुमार के साथ ही मैं भी घबरा गया। हकीकत में दोनों लाशें मर्दों की हैं, औरतों की नहीं।’
योगी – ‘ऐयारों से ऐसी भूल का होना कितने शर्म की बात है। इस जरा-सी भूल में कुमार की जान जा चुकी थी। (उँगली से इशारा करके) देखो उस तरफ उन दोनों पहाड़ियों के बीच में। इतना इशारा बहुत है, क्योंकि तुम इस तहखाने का हाल जानते हो, अपने उस्ताद से सुन चुके हो।’
तेजसिंह ने उस तरफ देखा, साथ ही टकटकी बँध गई। कुमार भी उसी तरफ देखने लगे, देवीसिंह और ज्योतिषी जी की निगाह भी उधर ही जा पड़ी। यकायक तेजसिंह घबरा कर बोले - ‘ओह, यह क्या हो गया?’ तेजसिंह के इतना कहने से और भी सभी का ख्याल उसी तरफ चला गया।
कुछ देर बाद योगी जी से और बातचीत करने के लिए तेजसिंह उनकी तरफ घूमे मगर उनको न पाया, वनकन्या भी दिखाई न पड़ी, बल्कि यह भी मालूम न हुआ कि वे दोनों किस राह से आए थे और कब चले गए। जब तक वनकन्या और योगी जी यहाँ थे, उनके आने का रास्ता भी खुला हुआ था, दीवार में दरार मालूम पड़ती थी, जमीन फटी हुई दिखाई देती थी, मगर अब कहीं कुछ नहीं था।