सर्यू - चलो हम-तुम दोनों मिलकर कुछ करें!
भूत - मैं तैयार हूं, मगर इस बात को सोच लो कि ऐसा करने पर तुम्हारा मालिक रंज तो न होगा!
सर्यू - सब सोचा-समझा है, हमारा मालिक भी रोहतासगढ़ ही गया हुआ है और वह भी राजा वीरेन्द्रसिंह का पक्षपाती है।
भूत - खैर तो अब विलम्ब करना अपने अमूल्य समय को नष्ट करना है (ऊंची सांस लेकर) ईश्वर न करे शिवदत्त के हाथ कहीं किशोरी लग जाय, अगर ऐसा हुआ तो अबकी दफे वह बेचारी कदापि न बचेगी।
सर्यू - मैं भी यही सोच रहा हूं, अच्छा तो अब तैयार हो जाओ, मगर मैं नियमानुसार तुम्हारी आंखों पर पट्टी बांधकर बाहर ले जाऊंगा।
भूत - कोई चिन्ता नहीं, हां यह तो कहो कि मेरे ऐयारी के बटुए में कई मसालों की कमी हो गई है, क्या तुम उसे पूरा कर सकते हो
सर्यू - हां, हां, जिन-जिन चीजों की जरूरत हो ले लो, यहां किसी बात की कमी नहीं है।