नेपोलियन ने फ्रांस की जर्जर आर्थिक स्थिति से उसे उबारने का प्रयत्न किया। इस क्रम में उसने सर्वप्रथम कर प्रणाली को सुचारू बनाया। कर वसूलने का कार्य केन्द्रीय कर्मचारियों के जिम्मे किया तथा उसकी वसूली सख्ती से की जाने लगी। उसने घूसखोरी, सट्टेबाजी, ठेकेदारी में अनुचित मुनाफे पर रोक लगा दी। उसने मितव्ययिता पर बल दिया और फ्रांस की जनता पर अनेक अप्रत्यक्ष कर लगाए। नेपोलियन ने फ्रांस में वित्तीय गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की जो आज भी कायम है। राष्ट्रीय ऋण को चुकाने के लिए उसने एक पृथक कोष की भी स्थापना की। नेपोलियन ने जहां तक संभव हुआ सेना के खर्च का बोझ विजित प्रदेशों पर डाला और फ्रांस की जनता को इस बोझ से मुक्त रखने की कोशिश की। नेपोलियन ने कृषि के सुधार पर भी बल दिया और बंजर और रेतीले इलाके को उपजाऊ बनाने की योजना बनाई।
व्यापार के विकास के लिए नेपोलियन ने आवागमन के साधनों की तरफ पर्याप्त ध्यान दिया। सड़कें, नहरें बनवाई गई विभिन्न प्रकार के व्यवसायों की प्रगति के लिए यांत्रिक शिक्षा की व्यवस्था की। फ्रांसीसी औद्योगिक वस्तुओं को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रदर्शनी के आयोजन को बढ़ावा दिया और स्वदेशी वस्तुओं एवं उद्योगों को प्रोत्साहन दिया। बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए निर्माण कार्य को प्रोत्साहन दिया। इस तरह नेपोलियन ने फ्रांस को जर्जर और दिवालियेपन की स्थित से उबारा।
किन्तु आर्थिक सुधारों की दृष्टि से भी नेपोलियन के कार्य क्रांति विरोधी दिखाई देते हैं। क्रांतिकाल में प्रत्यक्ष करो पर बल दिया गया था जबकि नेपोलियन ने अप्रत्यक्ष करों पर बल देकर पुरातन व्यवस्था को स्थापित करने की कोशिश की। इसी प्रकार नेपोलियन ने वाणिज्यिवादी दर्शन को प्राथमिकता देकर क्रांतिविरोधी मानसिकता का प्रदर्शन किया। उसका मानना था कि राज्य को कोष की सुरक्षा एवं व्यापार में संतुलन लाने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप करना होगा जबकि क्रांति का बल तो मुक्त व्यापार पर था।