फ्रांस की बहुसंख्यक जनता कैथोलिक चर्च के प्रभाव में थी। क्रांति के दौरान चर्च की शक्ति को कमजोर कर उसे राज्य के अधीन ले आया गया। चर्च की सम्पति का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और पादरियों को राज्य की वफादारी की शपथ लेने को कहा गया। इससे पोप नाराज हुआ और आम जनता को विरोध करने के लिए उकसाया। फलतः सरकार और आमजनता के बीच तनाव पैदा हो गया। नेपोलियन ने इसे दूर करने के लिए 1801 से पोप के साथ समझौता किया जिसे कॉनकारडेट (Concordate) कहा जाता है। उसके निम्नलिखित प्रावधान थे।

  •     कैथलिक धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार किया गया।
  •     विशपों की नियुक्ति प्रथम काउंसलर के द्वारा होगी पर वे अपने पद में पोप द्वारा दीक्षित होंगे। शासन की स्वीकृति पर ही छोटे पादरियों की नियुक्ति विशप करेगा। सभी चर्च के अधिकारियों को राज्य के प्रति भक्ति लेना आवश्यक था। इस तरह चर्च राज्य का अंग बन गया और उसके अधिकारी राज्य से वेतन पाने लगे।
  •     गिरफ्तार पादरी छोड़ दिए गए और देश से भागे पादरियों को वापस आने की इजाजत दे दी गई।
  •     चर्च की जब्ज संपत्ति एवं भूमि से पोप ने अपना अधिकार त्याग दिया।
  •     क्रांति काल के कैलेण्डर को स्थगित कर दिया गया तथा प्राचीन कैलेण्डर एवं अवकाश दिवसों को पुनः लागू कर दिया गया।
  •     इस प्रकार नेपोलियन ने राजनीतिक उद्देश्यों से परिचालित होकर पोप से संधि की और क्रांतिकालीन अव्यवस्था को समाप्त कर चर्च को राज्य का सहभागी बनाया। प्रकारांतर से नेपोलियन ने चर्च के क्रांतिकालीन घावों पर मरहम लगाने की कोशिश की।
  •     किन्तु इस समझौते के द्वारा नेपोलियन ने कैथोलिक धर्म को राज्य धर्म बनाकर राज्य के धर्मनिरपेक्ष भावना को ठेस पहुंचाई। धर्म को राज्य का अंग मानने वाले नेपोलियन का पोप के साथ यह समझौता अस्थायी रहा क्योंकि 1807 ई. में पोप के साथ उसे संघर्ष करना पड़ा तथा पोप के राज्य पर नियंत्रण स्थापित किया।
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