भीष्म पितामह ही थे राज सिंहासन के रखवाले और राज कार्य के मामले में सभी निर्णय लेने वाले। धृतराष्ट्र को उनकी हर बातों को मानना ही होता था। जब राज्य का विभाजन हो रहा था तो भीष्म इस विभाजन को रोक सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और इसी विभाजन के चलते महाभारत के युद्ध के कारक पैदा हुए ।