भीष्म जानते थे कि दुर्योधन और शकुनी बुरी नीयत से कार्य करने वाले लोग हैं। राज्य और पांडवों के खिलाफ हर बार षड़यंत्र रचने में ही उनका सारा दिन निकल जाता था। यह जानते हुए भी भीष्म ने की दुर्योधन को कुनीति या अनीति के मार्ग पर चलने से रोकने का कभी प्रयास नहीं किया। दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण के पांच गांव की मांग को ठुकराते हुए यह कहना कि बिना युद्ध के मैं सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं दूंगा। तब भी भीष्म चुप रहे और दुर्योधन के शांति प्रस्ताव को ठुकराने के कृत्य को नजर अंदाज करते रहे।