लगभग शाम का समय हो रहा है। एक मोटर साइकिल तेज रफ्तार से चली जा रही
है। चालक युवक की उम्र लगभग अठारह के आसपास और पीछे उसकी बहन, जिसकी उम्र
पच्चीस वर्ष बैठी है। अंधेरा होने से पहले युवक का एक ही लक्ष्य है, कि वह
अपनी बहन को उसकी ससुराल पहुंचा दे। अंधेरा होने के बाद असमाजिक, अपराधिक
तत्वों की गतिविधियां अधिक हो जाती है। किसी दुर्घटना से पहले सही सलामत
बहन को ससुराल पहुंचाना ही एकमात्र लक्ष्य की पूर्ती के लिए बाइक की स्पीड
अधिक कर दी। बहन के हाथ में एक अटैची, जिसमें गहने और कीमती सामान रखा है।
कुछ गहने युवती ने पहन रखे है। मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग से कसबे की सडक
पकडने के साथ वाहनों की भीड का साथ छूट गया। अब तो इक्का दुक्का वाहन ही
नजर आ रहे है।
“भाई स्पीड कम करो। मैं ठीक तरीके से बैठ भी नही पा रही हूं। सडक खराब है,
उबड खाबड सडक पर मैं उछल जाती हूं, और पीछे खिसक गई हूं।“
युवक ने बाइक की रफ्तार कम की। युवती अटैची को संभालती हुई बाइक की सीट पर
ठीक से बैठी। युवक ने स्पीड फिर बढा दी। शाम की कालिमा ने रात को जन्म दे
दिया। अंधेरें में एक बडे से पत्थर से तेज रफ्तार की बाइक टकरा गई। बहन और
भाई, दोनों बाइक से गिर गए। बाइक एक पेड से टकरा गई। बहन और भाई दोनों
चोटिल हो गए। लगंडाते हुए युवक ने बाइक का निरीक्षण करने लगा। बाइक बुरी
तरह छतिग्रस्त हो चुकी थी। बाइक की हेडलाइट टूट गई, हैन्डल बाइक से अलग हो
गया। आगे का बम्पर टूट गया। तेल भीनिकल गया। बाइक पूरी क्षतिग्रस्त हो चुकी
है। भाई, बहन ने निरीक्षण किया और एक दूसरे का मुंह देखने लगे, कि अब क्या
करें। भाई की कमीज, पेंट फट गई। बहन की साडी भी बुरी तरह से फट गई। उसने
फटी साडी को लपेट कर अपना तन ठका। एक बडे पत्थर पर दोनों बैठ गए।
तभी पुलिस की जीप वहां से गुजरी। टूटी फूटी बाइक को देख कर जीप रूकी। जीप
में सब-इंस्पेक्टर खुर्शीद और दो सिपाही आजम और फरदीन थे। तीनों ने बहन भाई
की हालात देखी। क्षतिग्रस्त बाइक और फटेहाल, जख्मी भाई बहन को देख कर
खुर्शीद ने कडकती आवाज में पूछा ”क्या नाम है?”
“महेन्द्र” युवक ने अपना नाम बताया।
“छोरी, तेरा?” युवतीकी ओर घूरते हुए खुर्शीद ने पूछा।
“कनिका” युवती ने अपना नाम बताया।
“कहां जा रहे हो?”
“नवगांव” महेन्द्र ने उत्तर दिया।
“अंधेरे में जाते डर नहीं लगता?मालूम नहीं, यह क्षेत्र अपराधिकों का गढ है।
लूट पाट और कत्ल आम बात है, फिर भी रात में जा रहे हो?” फरदीन ने पूछा।
“देखो, क्या सामान हैं, इनके पास” खुर्शीदने आजम को कहा।
आजम अटैची देख कर बोला “खोल इसे, क्या है?”
“इस में घर का सामान है।“ कनिका ने कहा।
“अटैची को खोल कर देख, खडा खडा शक्ल क्या देख रहा है।“ खुर्शीद ने आजम को
कहा।
“चाबी दे, या फिर खुद खोल कर दिखा।“
“कहा न, घर का सामान है, मायके से ससुराल जा रही हूं।“
“ऐसे बातें सुनते रहोगे। तोड ताला, देख अटैची।“ खुर्शीद ने कडक आवाज में
कहा।
आजम और फरदीन ने अटैची खोली। उस में गहने और कीमती सामान देख कर खुशी से
उछल पडे। “जनाब यह तो तगडा केस है। माल ही माल है। घर से भागने का केस है,
गहने, कीमती सामान। जनाब बंद करते है दोनों को। माल ही माल है।“
खुर्शीद ने सामान का निरीक्षण किया। “आजम, यह शर्तिया प्यार श्यार का मामला
है। पकड कर थाने ले चल। बाकी वहीं देखेंगे। लगा दे पांच, सात धाराएं।“
यह सुन कर महेन्द्र आगबबूला हो गया। “भाई बहन है। ससुराल छोडने जा रहा
हूं।“
“बेटे हम भी ससुराल ले कर जाएगें। फिक्र न कर।“
महेन्द्र खडा हुआ। लडखडाते हुए खुर्शीद के पास पहुंचा और विनती की “जनाब,
आप पुलिस वाले तो नागरिकों की रक्षा और मदद करते है। हमारी बाइक दुर्घटना
ग्रस्त हो गई। नवगांव जाना है। यदि आप हमें वहां तक पहुंचा दे, तो मेहरबानी
होगी।“
“मेहरबानी की बात करता है, एक तो लडकी भगा कर ले जा रहा है, ऊपर से मदद की
बात करता है। थाने ले जाकर सुताई कर खूब मदद करेगें। आजम लाद दोनों को जीप
में।“ कह कर खुर्शीद ने जीप में रखी खराब की बोतल खोली और मुंह से लगा कर
कनिका की तरफ घूर के देखने लगा। “फरदीन लडकी पटाखा है। आज तो मजा आ जाएगा।“
खुर्शीद की बातों में लम्पटता कनिका भांप गई। उसके साडी फट गई थी और अस्त
वयस्त हो चुकी थी। बालों को ठीक किया और खडे हो कर अपनी साडी संभालने लगी।
सडक के किनारे बडे पत्थर की ओड में खडी हो गई। उसका दिल धडक रहा था। सोच
रही थी, कि तीन हठ्ठे मुश्तंडे पुलिस वालों से कैसे निबटा जाए। रात के
अंधेरे में दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। मदद के लिए किसको आवाज दे।
जो पुलिस मदद के लिए बनाई गई, वही पुलिस उस पर बुरी नजर डाल रही है। आस पास
नजर दौडाई। बहुत सारे पत्थर पडे थे। वह बैठ गई और दोनों हाथों के आस पास
पत्थर इकठ्ठे किए।खुर्शीद की आंखों में हवस थी। पुलिस जीप में रखी शराब की
बोतल से सरूर ला रहा था। वहीं आजम और फरदीन महेन्द्र की पिटाई करने लगे।
“मुझे क्यों मार रहै हो?”
“साले एक तो लडकी को भगा रहा है, ऊपर से कहता है, पिटाई न करें। तेरे तो
अगाडा पिछाडा सुजाना है। याद करेगा पूरी जिन्दगी, किस पुलिस से पाला पडा
है। लडकियों की फोटो देखना भी बंद कर देगा।“ कह कर दोनों खिलखिला कर हंसने
लगे। उनकी हंसी, खिलखिलाहट में क्रूरता, विभत्सता थी।
“हम भाई बहन हैं।“
“देख कहता है, भाई बहन है। अपनी शक्ल तो देख। तू काला तवे का पिछला हिस्सा
और वो गोरी चिट्टी पटाखा, कहां से भाई बहन हो। यह तो बता फसाई कैसे।“ क्रूर
हंसी फिर से शान्त वातावरण में गूंज गई।
कनिका किसी अनहोनी से निबटने के लिए सोच रही थी, कि नशे में धुत खुर्शीद
कनिका के नजदीक आने लगा। खुर्शीद को पास आता देख एक मोटा सा पत्थर हाथ में
मजबूती से पकड लिया। इज्जत पर हाथ न रखने देगी। खुर्शीद पास आया और कनिका
को घूर के देखने लगा। पूरा मुआयना करने लगा।
"वाह, क्या बात है। भरी जवानी। फटे कपडे। अंग अंग अपने आप न्योता दे रहा
है। आज तो ईद मनाई जाएगी। फिर मुड कर आजम और फरदीन को आवाज लगाई “पठ्ठे को
ठिकाने लगा दो। जिन्दा न बचे। यह माल तो पूरा मेरा है।“
यह सुन कनिका सन्न रह गई। खुर्शीद आजम और फरदीन से बात कर रहा था। उसकी पीठ
कनिका की ओर थी। कनिका के हाथ में जो पत्थर था, एक झटके से खुर्शीद के सिर
पर निशाना लगा कर फेंका। निशाना सटीक रहा। जोर का प्रहार पीछे से खुर्शीद
के सिर पर लगा। सिर के पिछले हिस्से पर लगा। बडा पत्थर था। खुर्शीद के सिर
से खून निकलने लगा। आह कह कर धडाम से कटे पेड की तरह गिर पडा। जहां गिरा,
वहां एक ओर नुकीला पत्थर उसके मुंह पर लगा। सिर के पिछले हिस्से से खून का
फौहारा छूट गया। मुंह से भी खून निकलने लगा। खुर्शीद तडपने लगा।वह ढेर हो
चुका था और तडप रहा था। खुर्शीद को तडपता देख कनिका में जोश आ गया। उसने दो
तीन और बडे पत्थर खुर्शीदके सिर और पैरों पर मारे। खुर्शीद चीखने लगा।
खुर्शीद की चीख सुन कर आजम और फरदीन खुर्शीद को बचाने महेन्द्र को छोड
दौडे। कनिका ने दोनों को आता देख अपने दोनों हाथों में पत्थर उठाए और उनकी
ओर फेंके। एक निशाना फरदीन के पैर में लगा। वह लडखडा कर गिरा। दूसरा निशाना
चूक गया। महेन्द्र ने भी दो पत्थर उठा कर आजम और फरदीन की ओर फेंके। एर
पत्थर आजम की पीठ पर लगा और वह गिरा। फरदीन उठा और कनिका की ओर बढा। अब की
बार दो पत्थर उसे लगे। महेन्द्र का फेंका पत्थर उसके सिर पर लगा और कनिका
का फेंका पत्थर फरदीन की छाती पर लगा। वह गिर गया। अब भाई बहन ने पत्थर उठा
उठा कर फेंकने लगे। ताबड तोड पत्थरों की बारिश होने लगी। शरीर के हर अंग पर
पत्थरों की मार से आजम और फरदीन चित गिरे पढे थे। अधिक खून बहने से खुर्शीद
के प्राण उड चुके थे। आजम, फरदीन तडप रहे थे।
“भाई, तुम कैसो हो?”
“ठीक हूं बहन।“
“यहां से चलो।“
“कैसे चले, बाइक टूट गई है।“
“कार चला लोगे?”
“कोशिश करता हूं। थोडी बहुत सीखी है।“
“यहां से चलो।“
महेन्द्र ने पुलिस जीप स्टार्ट की। भाई बहन दोनों जीप में नवगांव पहुंचे।
फटेहाल देख कर कनिका की ससुराल वालों ने खैरियत पूछी। कनिका पति की बांहों
में रोने लगी। महेन्द्र ने पूरी बात बताई। कनिका के ससुर ने गांव वालों से
सलाह विमर्श किया। पुलिस के साथ मुठभेड छुपाई नही जा सकती। सरपंच ने सलाह
दी कि कलेक्टर के पास जा कर पूरी बात करते है। कनिका अपनी इज्जत बचाने के
लिए पुलिस से लडी।उसने कोई गुनाह नही किया। अगर वे चुप बैठे रहे, तो हो
सकता है, कि पुलिस तंग करे और बदला ले। पूरा गांव रात में एकत्रित हो कर
कलेक्टर के निवास शहर की ओर कूच किया। नवगांव का हर व्यक्ति, बच्चा, बडा,
पुरूष और औरत ट्रैक्टर, बाइक और कारों के जत्थे में शहर की ओर कूच किया।
रास्ते में दुर्घटना स्थल का निरीक्षण किया और कुछ युवा वहां रूक गए। मृत्य
खुर्शीद की लाश पडी थी। आजम और फरदीन वहां नही थे। वे जख्मी हालात में कहीं
चले गए, शायद थाने गए होगें। बाकी शहर कलेक्टर के घर रात के बारह बजे
पहुंचे। नारे लगाते गांव वासियों को देख कर कलेक्टर सकपका गया। बात की
नजाकत को समझ कलेक्टर दुर्घटना स्थल पर निरीक्षण के लिए पहुंचे। पुलिस को
बुलाआ गया। आजम और फरदीन की खोज की गई। दोनों जख्मी हालात में नर्सिंगहोम
में पाए गए। कलेक्टर, पुलिस के उच्च अधाकरियों को गांव वालों की फौज देख कर
दोनों ने अपना गुनाह कबूल किया, कि खुर्शीद के कहने पर ही महेन्द्र को
पीटा। खुर्शीद की बुरी नजर कनिका पर थी।
आजम और फरदीन को पुलिस से निलंबित कर मुकदमा दायर कर दिया। अगले दिन सभी
समाचार पत्रों के मुख्य पृष्ठ पर कनिका की फोटो थी। उसे वीरांगना की उपाधी
से सम्मानित किया। टीवी न्यूज चैनलों पर कनिका छाई रही। वीरांगना कनिका को
राज्य सरकार ने बहादुरी और वीरता के लिए सम्मानित किया।
एक वर्ष के बाद वह स्थल खूबसूरत पार्क बन गया है। वीरांगना स्थल के नाम से
मशहूर एक पर्यटन स्थल आज रात दिन रौशन रहता है।
मनमोहन भाटिया