पुत्र जवान हो गया है। शिक्षा समाप्ति के पश्चात एक मल्टीनेश्नल कंपनी में उच्च पद पर नियुक्त हुआ, तब माता पिता की खुशियों का कोई ठिकाना नही रहा। समझो समस्त जग पर विजय प्राप्त हो गई। बड़े लाड़ प्यार के साथ परवरिश हुई। स्कूल जाने के समय टिफिन हाथ मैं पकडाना, स्कूल बैग तैयार करना, फिर होम वर्क करवाना। कॉलेज के समय भी यही रुटीन रहा। अब नौकरी के समय सुबह सात बजे कंपनी के लिए रवाना होना पड़ता है। माताजी सुबह का नाश्ता, लंच के लिए टिफिन, देर रात तक खाने का इंतज़ार। पुत्र को ऐसे माहौल में कोई काम करने के आदत नही पड़ी। बस हुकुम किया और सब काम हो गये। हर माता पिता की तरह उनका ध्येह पुत्र की खुशी थी। जिसका हर संभव ध्यान रखा। पुत्र की हर बात मानी।

पुत्र का विवाह सम्पन हुआ। पुत्रवधू ने ग्रहप्रवेश किया। पुत्रवधू भी एक नामीगरामी कंपनी में एक अच्छी पोस्ट पर नौकरी करती थी। जिस परिवेश में पुत्र का लालन पालन हुआ, ठीक उसी परिवेश में पुत्रवधू का लालन पालन हुआ। आज पुत्र और पुत्री में कोई अंतर नही है। दोनो को समान शिक्षा दी जाती है। पुत्रियाँ घर ग्रह कार्यों में कम रूचि लेती है, समय तो शिक्षा मैं बीत जाता है और फिर नौकरी में। घर के कार्यों के लिए समय नही होता।

क्योंकि दोनो ऊंची पोस्ट पर नियुक्त थे। ऑफिस की जिम्वेवारी सुबह जल्दी जाना और देर रात घर आना दोनो का रुटीन बन गया। माताजी ने सोचा था, पुत्र विवाह के बाद बेफ़िक्र हो जाएँगी। पुत्रवधू यदि घर नही तो पुत्र के कार्य तो संभाल लेगी। परन्तु नौकरी के जंजाल ने पुत्र और पुत्रवधू को जकड रखा था। उनके हर कार्य माताजी को करने पड़ रहे थे।

पिताजी का तो वोही रुटीन रहा। माताजी सोचने लगी, काश वो भी २५ साल बाद पैदा हुई होती, तो आज की पीडी की तरह बिंदास होती। सब पर हुकुम चलाती, पर वो जिस पीडी की है, उसकी समस्या यह है, पहले अपने घर, फिर सास की, बच्चो की सेवा में लिप्त रही।

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