रविवार छुट्टी के दिन खूब धमा चौकडी रही। मेहमानों का तांता रहा। बच्चों
को पढाई से अवकाश मिला। खेल, कूद और मस्ती। कुछ और क्या चाहिए बच्चों को।
कौन बच्चा पढना चाहता है, रविवार या छुट्टी के दिन। मेहमानों के आगे तो मां
बाप की बोलती बंद हो जाती है, उनकी क्या मजाल, कि बच्चों को पढनें को कहे।
वैसे सबकी भलाई इसी में है, कि कम से कम बच्चों की पढाई से एकदम छुट्टी
होनी चाहिए, भले सोम को परीक्षा ही हो। परीक्षा ती तैयारी शनि को हो जाए न।
चलो, इसी बहाने रक्षित और ऱक्षा की पढाई से छुट्टी हो गई। मेहमानों से
छुट्टी देर रात को मिली। थक, टूट कर बिस्तर में घुसे, तो नींद के आगोश में
गोते लगाने लगे।
क्या यह एक सपना था, या फिर कुछ और। रक्षित बिस्तर में घुसा, रजाई औढी और
आंख लग गई। एक सुन्दर सी महिला शेर के साथ रक्षित को दिखी। कोई महिला शेर
को हाथ फेर रही है। शेर दुम दबा कर महिला की आज्ञा मान रहा है। रक्षित
आश्चर्यचकित देखता रहा। कुछ घबडा गया। हिल डुल भी नही सका।
“डर क्यों रहे हो, सुबह मंत्र मुग्ध हो कर मेरी पूजा कर रहे थे, मुझे
पहचाना नही।“
“तुम शेरां वाली हो।“
“देखो मेरा शेर, मेरी सब बात मानता है, तुम मेरी पूजा करते हो, मेरी बात
मानों।“
“कौन सी।“ रक्षित मुंह में अंगुली दबा कर इतना सा कह सका।
“आप स्कूल कैसे जाते हो।“
“स्कूल बस में जाता हूं।“
“कल बस में नही जाना।“
“पैदल नही जा सकता। दूर है न।“
“पापा की कार में जाऔ।“
“पापा को ऑफिस जाना होता है। वो कार में नही छोडते है।“
“कभी कभी तो छॉड सकते है।“
“नही छोडते।“ रक्षित ने मुंह बनाया।
“आज रात देर हो गई है। सुबह देर से उठोगे। स्कूल बस में कैसे जाऔगे। बस
निकल जाएगी।“ इतना कह कर वह महिला, जो शेरां वाली लग रही थी, अदृस्य हो गई।
सपनें में रक्षित पसीने से नहा लिया, लेकिन नींद नही खुली। सुबह देर से
रक्षित समेत सभी की नींद देर से खुली।
हडबडी में सारिका उठी। पति सुरेश और दोनों बच्चों रक्षा, रक्षित को उठाया।
फटाफट रसोई में बच्चों का नाश्ता तैयार किया। बच्चों को बाथरूम में घुसाया,
फिर भी देर हो गई।
“सुरेश, आज तो बस निकल गई, कार निकालों, बच्चों को स्कूल छोडना है।“
“आज यह कैसे हो गया, कि नींद ही नही खुली। बच्चों की बस का टाईम औवर हो
गया। मेरे ऑफिस की देर होगी। एक काम करों, मेरा टिफिन रहने दो। ऑफिस
केन्टीन में खा लूंगा।“ कह कर सुरेश जेट की स्पीड में तैयार हो गया।
बच्चे प्रफुल्लित हो गए, कि कार में स्कूल जाएगें। बस निकल जाए, इसलिए
बच्चे धीरे धीरे तैयार होने लगे। सुरेश ने कार स्टार्ट की। बच्चों ने
मयूजिक सिस्टम ऑन किया। सुरेश ने स्टाप पर देखा। बस निकल गई थी। कार स्कूल
की ओर कर दी। रक्षित पापा और रक्षा को रात का सपना बताने लगा, कि शेरावाली
ने भी कहा था, कि आज स्कूल पापा की कार में जाना। रक्षा हंसने लगी, कि
रक्षित मजाक कर रहा है। सुरेश सोचने लगा, कि रक्षित सुबह लेट उठने पर डांट
से बचने के बहाने बना रहा है। सुरेश ने कुछ नही कहा।
स्कूल के गेट पर अफरा तफरी मची थी। कुछ समझ नही आया। तभी गेट पर नोटिस लगा।
नोटिस में लिखा था। रूट नम्बर 5 और 8 की स्कूल बस का एक्सीडेंट हो गया है।
कुछ बच्चों को चोट लगी है। अस्पताल में दाखिल कराया है। प्रिंसीपल, टीचर और
स्टाफ अस्पताल की ओर रवाना हुए। सभी बच्चों के अभिभावकों को फोन लगाए गए।
सुरेश के मोबाइल पर भी स्कूल का फोन आया। सुरेश सोचने लगा, कि जो रक्षित कह
रहा था, वह सच था या फिर वैसे ही देर से उठने पर बात कर रहा था। सुरेश ने
ऑफिस फोन किया, और छुट्टी अपलाई की। सुरेश बच्चों के साथ घर वापिस आ गया।
बच्चे रूट नम्बर 5 की बस में स्कूल जाते थे। रक्षित चुप नही हो रहा था, वह
बार बार रात के सपने की बात बार बार दोरहा था। सारिका को उसकी बात पर
विश्वास हो चुका था, कि एक्सीडेंट से बचाव के लिए शेरांवाली ने पहले से
आगाह कर दिया था। सुरेश की शेरांवाली में अटूट आस्था थी। बच्चे भी सारिका
के साथ हर रोज शाम को माता रानी की पूजा करते थे। सारिका को यकीन हो गया,
कि यह दैविय शक्ति थी, जिसने बच्चों की रक्षा की।
घर में सबने मातारानी की पूजा की। बच्चों को हम नही, भगवान पालता है। बस
यही कह सकी सारिका सुरेश को।
मनमोहन भाटिया