हर बुधवार को शाम पांच बजे से रात दस बजे तक नवगांव के बाहर नहर के किनारे जामुन के पेड के तले मेला लगता है। नवगांव एक छोटा सा कस्बा, खूबसूरत पर्वत श्रंखला के नीचे बसा, आबादी लगभग दस हजार के करीब। नहर के समीप नवगांव बसा है। नहर पार पर्वत की ओर जाती घुमावदार सडक, जो छोटे से हिल स्टेशन समरहिल तक जाती है। रात को नहर का स्वच्छ जल का कल कल करता मधुर संगीत और पर्वत श्रंखला के ऊपर समरहिल की टिमटिमाती रोशनी, पूर्णिमा के चांद की रोशनी से नहर की बलखाती लहरे का एक अनुपम दृश्य, नजारा होता है। नहर के किनारे फलदार पेडों की श्रंखला है, उनमें जामुन के पेड अधिक है। इन जामुन के पेडों में एक पेड के नीचे दाढी वाले बाबा हर बुधवार शाम को पांच बजे आते है और घास पर बैठते है। रात दस बजे चले जाते हैं। बाबा के कंधे पर एक झोला लटका रहता है, जिसमें एक बांसुरी, कुछ किताबे, रजिस्टर और लेपटॉप रहता है। बाबा पेड के नीचे बैठ कर कुछ देर कर आंखें मूंद कर व्रज आसन में बैठ कर ध्यान करते है, फिर झोले से बांसुरी निकाल कर बजाते हैं। बांसुरी की कर्णप्रिय ध्वनि सुनकर आसपास के पक्षी, जिसमें तोते, कबूतर और चिडिया अधिक होते हैं, चहचहाते हुए बाबा के आसपास बैठ जाते हैं। बंदर और बिल्लियां भी दुम दबा कर चुपचाप बैठ जाते है। लगभग एक घंटा बांसुरी बजाने के पश्चात कुछ देर तक फिर से बाबा व्रज आसन में बैठ कर ध्यान करते है। तब अंधेरा होने लगता है, पशु, पक्षी चले जाते हैं।

बाबा किसी से कुछ नही कहते। प्राय मौन ही रहते है। मौन रहने के बावजूद बाबा दाढी वाले बाबा के नाम से प्रख्यात है। असली नाम उनका कोई नही जानता, हांलाकि बाबा नियमित रूप से पिछले दस वर्षों से जामुन के पेड के नीचे आसन जमाते है। लोगों के बाच दाढी वाले बाबा के नाम से प्रख्यात हैं। दस वर्षों में उनके बहुत अनुयायी बन गए,परन्तु प्रथम और विशेष महमूद है। अनुयायी उनसे मिलने बुधवार को आते है। शाम पांच बजे से रात दस बजे तक लोगों का तांता लगा रहता है। नानक दुखिया सब संसार। इस संसार में हर कोई परेशान है। हर कोई दुखी है। सभी को तुरन्त समाधान चाहिए। लेकिन बाबा न तो अपने को संन्यासी कहते हैं, न ही संत। सब को कहते है, वे हर किसी के समान एक आम इन्सान हैं। वे कोई चमत्कार नही करते, किसी को कोई विभूती भी नही देते। फिर क्यों उनके पास आते हैं लोग? लोग बाबा के पास अपनी व्यक्तिगत समस्याएं लेकर आते हैं। बाबा उनकी समस्या सुन कर बस व्यावहारिक उपाय बताते है। पति-पत्नी की समस्याएं, बाप-बेटे, सास-बहू, यही समस्या हर परिवार में मौजूद हैं। हर कोई चाहता है कि दूसरा उसके कहे अनुसार चले, दूसरे की बात कोई सुनना नही चाहता, सब सभी समस्याओं, झगडे की जड यही है। बाबा का उपाय व्यावहारिक होते है। समस्या और उपाय को अपने रजिस्टर और लेपटॉप में लिख लेते है। बाबा का शान्त स्वाभाव, हर किसी की बात को ध्यान से सुनना, सबको अपनी बात कहने का पूरा मौका देना और उसके बाद अपनी बात कहना। बाबा का निर्णय परंपरा, प्रथा, लीक, रिवाजों से हट कर पूरा व्यावहारिक रहता है। सास-बहू के झगडे, विवाद में बहू गलत है, बाबा नही मानते थे। सास की गलती है, तो उसे सुधार के लिए कहते थे। बहू गलत है, तब बहू को सुधार के लिए कहते है। ऐसे ही बाप-बेटे, पति-पत्नी, भाईयों के बीच झगडों में रहती है। बाबा इस बात में विश्वास रखते है, कुछ तुम चलो, कुछ हम चलें, कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें, कुछ तुम सुनो, कुछ हम सुने, कुछ तुम झुको, कुछ हम झुके, कुछ तुम मानो, कुछ हम माने। जीवन का रस यही है। अपना अहम छोडो। आंधी में तना वृक्ष ही गिरता है। लचीला वृक्ष कुछ इधर झूल कर, कुछ उधर झूल कर आंधी के वेग को सहता हुआ फिर से खडा हो जाता है। यही बाबा की समझ है, जो बाबा सबको बांटते हैं। जरा सोचे, तब जीवन का कटु सत्य ही यही है।

पिछले दस वर्षों से बाबा ने दाढी नही बनाई। उम्र कोई अधिक नही है, चालीस ही तो है। बाल सफेद हो रहे है। आधे काले, आधे सफेद, कुछ मिला कर खिचडी बाल। बाबा बडे विद्वान, गुणी हैं, सभी यही कहते फिरते हैं, परन्तु बाबा अनुयायियों से कहते हैं, कि यह तो उनका बडप्पन है, जो बाबा को आदर नाम देते है। बाबा भी एक आम इन्सान हैं। शान्त, सौम्य बाबा, किसी भी परिस्थिति में विचलित न होना यही बाबा की श्रेष्ठता का मूल मंत्र है।

लोग बाबा का नाम नही जानते, कुछ पूछते हैं, बाबा बस इतना करते है, नाम में क्या है, कोई भी रख दो। काम अधिक महत्व रखता है। जो नाम आपको पसन्द है, उसी से पुकार लो। वैसे बाबा का भी एक नाम है नाम है आनन्द है। नाम के अनुरूप जीवन में कोई आनन्द न था। एक नीरस जीवन में भी आनन्द रस प्राप्त करते रहे, पर परिस्थिति कुछ अलग सी बनी और आनन्द बाबा बन गए। कभी नही चाहा, कि बाबा बने, आज भी गृहस्थ जीवन जीते हैं। पूरा परिवार है, पत्नी, दो बच्चे, माता-पिता। कॉलेज की पढाई के बाद आनन्द बीमा एजेंट बन गए। विवाह हो गया, दो बच्चे भी हो गए। परिवार बढा, परन्तु आमदनी नही बढी। कोशिश बहुत की, प्रयास में कोई कमी नही, शायद किस्मत के धनी नही थे, आनन्द। घर की जरूरतों के लिए धन की कमी महसूस होने लगी। सीधे, सरल स्वाभाव के धनी आनन्द में चालाकी नही थी, उसी कारण दूसरे बीमा एजेंट बहुत आगे बढ गए। आनन्द को कोई मलाल नही था, कि वह कम कमाता है, दूसरे आगे बढ गए। माता-पिता के साथ मकान में पत्नी, बच्चों के साथ रहते थे। पहले कमाई का एक हिस्सा माता-पिता को आनन्द देते थे। विवाह के बाद भी कोई कमी नही रखी। पत्नी को तन, मन से तो सुख दिया, पर धन का सुख नही दे सके। जरूरतें तो पूरी हो जाती थी, परन्तु चाहत, इच्छाएं अधूरी रह जाती।

पत्नी अनिला – “बच्चे बढे हो रहे हैं। स्कूल में दाखिल करना है। कुछ सोचो, कैसे चलेगा। हम, तुम तो गुजारा कर रहे हैं। बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला करना है। दाखिले में अच्छी रकम लग जाती है। किसी ऐसे, वैसे स्कूल में बच्चों को नही पढाना।“
आनन्द – “मैं सब समझता हूं। अच्छे स्कूल में बच्चों को पढाना है।“
दोनों बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिल कराया। माता-पिता को जो हर महीने रकम दी जाती थी, उस में कटौती कर दी तब माता-पिता नाराज हो गए। अरे तुम भाई, बहनों को सरकारी स्कूल में पढाया, सब पढे, कमा खा रहे हो। क्या जरूरत है, महंगे स्कूल में पढाने की। घर के खर्चे कैसे पूरे होगें। मां-बाप के पैसों से बच्चों की पढाई करेगा। यह सुन कर आनन्द दंग रह गया कि पिताजी क्या कह रहे है।
आनन्द – “मैंने आपसे कब पैसे मांगे है?”
पिताजी – “मांगे नही है, पर दिये तो नही है। हमारे पैसे रोक कर बच्चों पर उडा रहा है।“
आनन्द – “यह गलत है, कि मैं आपके पैसे रोक कर बच्चों पर उडा रहा हूं। उनको स्कूल में दाखिल करवाया है। इस महीने कमीशन कम आई है, दो महीने बाद अधिक कमीशन आनी है। आपको भी दूंगा।“
माता-पिता आनन्द की बात से संतुष्ट नही थे। फिर ताना मार दिया – “घर कोई मुफ्त में नही चलता है। हर रोज रकम खर्च होती है।“
आनन्द – “पूरे महीने का राशन लाकर ऱखा है। रसोई में कोई कमी नही है।“
पिताजी – “सिर्फ राशन भरने से सोच रहा है, कि दायित्व, जिम्मेदारी पूरी हो गई। मकान भी तो है।“
आनन्द – “मकान तो अपना है, उसमें क्या खर्चा?”
पिताजी – “हाउस टैक्स, सफेदी, रखरखाव, टूटफूट, उसका क्या?”
आनन्द – “पिताजी, हाउस टैक्स तो इस साल का भर दिया है, अब तो अगले साल भरना है। सफेदी भी अभी ठीक है, अगले साल करवाने से काम चलेगा। मकान सही है, कोई टूटफूट नही है। अभी तो मकान पर कोई खर्चा नही है।“
पिताजी – “किराये पर रहता तो हर महीने मोटी रकम किराये पर निकल जाती।“
आनन्द – “मकान तो अपना है, किराये की कहां से बात आ गई?”
पिताजी – “तेरी परवरिश पर पैसा खर्च किया। शादी पर खर्चा किया। बहू को गहने बनवा के दिए। मकान में रहने का किराया तो देना होगा।“
आनन्द – “यह तो हर मां-बाप अपने बच्चों के लिए करते है। बच्चों की परवरिश तो मां-बाप करते हैं। आपने मेरी की, मेरे भाई-बहनों की की, मैं अपने बच्चों की कर रहा हूं। यह तो कुदरत का नियम है।“
पिताजी – “तुम भूल रहे हो, बच्चों का फर्ज है, मां-बाप की सेवा करना, उनकी आज्ञा का पालन करना। इसलिए मैं कह रहा हूं, मानना होगा।“
आनन्द – “मैंने कभी आपका अपमान नही किया। इस महीने कम आमदनी की वजह से आपको पैसे नही दिए। दो महीने बाद ज्यादा कमीशन मिलने वाली है। आपको भी ज्यादा पैसे दूंगा।“
पिताजी – “जब तक मुफ्त की रोटियां तोडेगा। शर्म भी नही आती, मुफ्त में रहते।“
यह बात सुन कर आनन्द की आंखों में आंसू छलक गए। उससे कुछ कहा नही गया। अनिला सब वार्तालाप सुन रही थी। पिता-बेटे की बातचीत में टोकाटाकी नही की। आनन्द की आंखों में आंसू देखकर अनिला ने गहनों का बक्सा टेबल पर रख दिया – “पिताजी गहने आप ले लीजिए।“
पिताजी – “देख, बीवी को, मेरे से जुबान लडाती है।“
आनन्द – “पिताजी, आज आप नाराज क्यों है? अनिला ने कोई जुबान नही लडाई। आपने मेरी शादी में गहने बनवाए। आज मैं आपको किराया नही दे पा रहा हूं। आप अपने गहने अपने रख लीजिए।“
पिताजी – “कोई अहसान नही कर रहा, गहने वापिस करके।“ कहकर माताजी को गहनों का बक्सा दिया – “भाग्यवान, संभाल कर रख, अलमारी में। जबान लडा रहे हैं, मति मारी गई है। बेवकूफ कहीं का।“
माताजी-पिताजी गहने के बक्से के साथ अपने कमरे में चले गए। हतप्रभ आनन्द, अनिला अपने कमरे में अवलोकन करने लगे, आखिर क्या पैसा ही सब कुछ है, प्रेम, त्याग, समर्पण, इज्जत कुछ नही। माना उसके दोनों भाई उससे अधिक कमाते है, तो माता-पिता उसका पक्ष लेगें? कम कमाने वाले का कोई स्थान नही? माना आज वह कम कमा रहा है, कल अधिक भी कमा सकता है। लक्ष्मी का चंचल स्वाभाव है, कहीं भी अधिक देर तक टिकती नही, फिर घमंड क्यों? दोनों के पास इसका कोई उत्तर नही। सात-आठ महीने बीत गए, आनन्द की आमदनी नही बढी। वह घर में राशन तो डालता रहा, पर माता-पिता को पैसे नही दे सका। इस कारण पिता के साथ दोनों भाई भी मिल गए और हर सप्ताह रविवार की छुट्टी के दिन आनन्द को घेरा जाता और दबाव वनाया जाता, कि पैसे बढते जा रहे हैं। सात महीने का किराया हो गया है। घर में कमरा खाली कर दो, किराये पर देगें, तो किराये के साथ धरोहर राशी भी मिलती है। निखट्टू की घर में कोई जरूरत नही है। मकान बनाना आसन नही है, खुद अपने पैसों से बनाऔ, तो जाने। यह सुन कर आनन्द से रहा नही गया। उसकी सहनशक्ति जवाब दे गई।
आनन्द – “पिताजी, आप मेरे पीछे हाथ धो कर पडे हो। घर का सारा राशन लाता हूं। दोनों भाई एक पैसे का राशन नही डालते है, फिर भी आप मुझे निखट्टू कर रहे है। आज आमदनी कम है, कोशिश कर रहा हूं। कल अधिक होगी। आपको पैसे दूंगा।“
पिताजी के साथ दोनो बडे भाई आग बबूला हो गए – “हम से जुबान लडाता है। बडों से बात करने की तमीज नही है। एक तो पैसे नही देता, ऊपर से बकवास करता है।“
आनन्द – “देखा जाए, तो मैं भाईयों से कम नही देता। पूरे घर का राशन लाता हूं। जो दोनों भाईयों के दिए पैसों से ज्यादा ही होता है। फिर भी मुझे तंग किया जा रहा है।“
सच सुनने की शक्ति किसी सिर्फ सच्चे इन्सान में ही होती है। सच बोल भी केवल सच्चा इन्सान ही सकता है। आनन्द सच बोल गया। कोई सुन नही सका। घर में महाभारत का बिगुल बज गया। दोनों भाईयों ने माता-पिता को कह दिया, घर में या तो वे रहेगें या फिर आनन्द। दोनों भाई अधिक कमाते थे। माता-पिता ने उनका साथ दिया। आनन्द ने अनिला से कहा – “विवाह के समय लिए सात वचन याद हैं।“
अनिला – “याद है।“
आनन्द – “आज उन वचनों को याद करें।“
दोनों एक साथ – पहला वचन – सांस्कृतिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, धार्मिक आदि जैसे सभी प्रमुख निर्णयों के लिए एक दूसरे से परामर्श करना। हमने इस वचन का पूरा निर्वाह किया है। आज आर्थिक स्थिति कमजोर है। मिलजुल कर थोडे में निर्वाह करेंगे।
दूसरा वचन – अच्छे दोस्त बन कर. एक गहरी समझ विकसित करके, एक दूसरे के और परिवार के लिए प्रति दायित्व का निर्वाह करें। हमने इस वचन का अब तक पूरा निर्वाह किया है। परिवार के प्रति पूरा दायित्व निभाया है। यदि परिवार नही समझता तो, यही अच्छा है, कि परिवार से अलग निर्वाह करें।
तीसरा वचन – एक दूसरे का, एक दूसरे के माता पिता और परिवार का सम्मान करें। इस वचन का पूरा निर्वाह किया है।
चौथा वचन – एक दूसरे के प्रति वफादार रहें। यह वचन भी याद है। हम हर हाल में, हर स्थिति में एक दूसरे के प्रति वफादार रहेगें। चाहे, आर्थिक स्थिति कैसी हो।
पांचवा वचन – परिवार और सामाजिक परंपराओं से मार्गदर्शित हों। यह वचन भी याद है। यदि परिवार हमारी कमजोर आर्थिक स्थिति में हमें अलग होने पर मजबूर कर रहा है, तब हमें यह मंजूर है।
छठा वचन – उनके परिवारों के बीच सामंजस्य बनाए रखें। यह वचन भी याद है। आज हम परिवार से जुदा हो रहे हैं, परन्तु कल उचित समय पर परिवार से सामंजस्य जरूर बनाएगें।
सातवां वचन – संकट और बीमारी के समय के दौरान मजबूत और शांत रहें। यह वचन भी याद है। आज संकट है। हम दोनों मजबूत रहैगें और शांति से उपाय खोजेगें।
अनिला – “क्या सोच रहे हो?”
आनन्द – “अलग गृहस्थी बनाते है। कमजोर आर्थिक स्थिति में एक तुम हो, जो घर और बच्चों को सही, ठीक तरीके से परवरिश कर सकती हो। मैं आर्थिक मोर्चे पर जुटता हूं।“
अनिला – “कहां जाएंगे?”
आनन्द – “कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, कर्म से पीछे मत हटो। फल मेरे पर छोड दो। मैं इस बात तो समझता हूं। कर्म कर रहा हूं। फल देरी से मिल रहा है। कोई समझता नही। हैरानी की बात है, पिताजी भी नही समझ रहे हैं। कर्म आज भी कर रहा हूं, कल भी करूंगा। हमेशा करूंगा। उम्मीद रखता हूं, फल मिलेगा। कम मिले या अधिक। जो भी मिलेगा, खुशी से ग्रहण करेगें।“

कुछ दिनो बाद आनन्द पत्नी अनिला और बच्चों के साथ पिताजी के मकान को छोड कर चला गया। शहर की सीमा पर नई कॉलोनी बस रही थी। वही एक कमरा किराए पर लिया। बच्चों का स्कूल नही बदलना पडा। स्कूल बस नई कॉलोनी में आती थी। शहर के बीच एक बडे मकान, जहां हर सुख सुविधा थी, को छोड कर एक नई बस्ती को छोटे से मकान में, जहां सीमित सुविधाएं थी, नए तरीके से गृहस्थी की शुरूआत में जुट गए। मुश्किलें तो हजार होती है, परन्तु पक्के संकल्प से, बिना हिम्मत हारे, आनन्द और अनिला ने जीवन को नए सिरे से बुनना आरम्भ किया। समय बीतती गया, परन्तु आनन्द की आमदनी अधिक न हो सकी। जरूरतों को पूरा करने में कभी कभी असर्थ और असहाय होता आनन्द प्रभु को हर रोज नमन करता, कि दो वक्त की रोटी के लिए किसी के आगे हाथ नही फैलाने पडे।
सेठ औंकारनाथ की दो चार बीमा पॉलिसी आनन्द ने की थी। सेठजी से अच्छी बातचीत थी। एक उम्मीद के साथ सेठ औंकारनाथ के घर और ऑफिस के चक्कर लगाने शुरू किया, कि यदि सेठजी मोटी बीमा पॉलिसी ले लें, तो अच्छी कमीशन बन जाएगी और उनके व्यापार मंडल के दूसरे सेठों से भी मदद मिल सकेगी। लेकिन इस बार सेठ जी आनन्द को टरकाते रहे। गर्मियों की छुट्टी में सेठजी समरहिल एक महीने के लिए चले गए। आनन्द ने सोचा, कि सेठ लोग तो छुट्टी में भी काम करते हैं। आराम के साथ काम बडे लोगों का स्टाइल है। आनन्द समरहिल की कोठी में सेठजी का इंतजार कर रहा था। उसके कानों में सेठजी का आवाज पडी, जो अपने नौकरों को कह रहे थे। साले को दो महीने से टाल रहा हूं, बडा बेशर्म है, यहां तक आ गया। भिखमंगा कही का। साले को दफा करो। आत्मसम्मान पर चोट लगी। नौकरों के आने से पहले ही आनन्द कोठी से बाहर आ गया। बुझे मन से शहर की बस में बैठा। बस नवगांव में खराब हो गई। सभी सवारियों को उतरना पडा।

शाम के पांच बजे थे। आनन्द नहर के पास जामुन के पेड के नीचे बैठ कर अगली बस का इंतजार करने लगा। तभी एक सज्जन ने उसके पास आकर कहा – “कहां जाना है?”
आनन्द – “शहर जाना है। बस खराब हो गई है। अगली बस का इंतजार कर रहा हूं।“
सज्जन – “अगली बस तो रात दस बजे की है।“
रात दस बजे की बात सुन कर आनन्द चौंक गया – “क्या, रात दस बजे की?”
सज्जन – “बिल्कुल ठीक सुना है, रात दस बजे की। सरकारी बस, जिसमें आप आए, वह आखिरी बस थी। सभी को मालूम है, इसी लिए तो सभी चले गए। आपको देखा, तभी पूछा। रात को प्राईवेट बस आती है, समरहिल से। अब दस बजे तक इंतजार करना पडेगा।“
आनन्द – “ठीक है, रात की बस का इंतजार करते है। आपको कहां जाना है?”
सज्जन – “शहर ही जाना है। आपके साथ इंतजार करते हैं।“
आनन्द ने अपने झोले से बांसुरी निकाली और धीरे धीरे बजाने लगा। मंद मंद बांसुरी की धुन कर पंक्षी वहां आ गए। एक बंदर और बिल्ली भी दुम दबा कर बांसुरी की धुन में मग्न हो गए। वह सज्जन यह देख कर हैरान हो गया, कि बांसुरी की मंद, धीमी सुर ने अदभुद समां कर दिया। उसने अपने जीवन में पहली बार ऐसा देखा। लगभग एक घंटे बाद अंधेरे की कालिमा छाने लगी, आनन्द ने बांसुरी बजाना बंद किया। पंक्षी चले गए। बंदर और बिल्ली भी चले गए। बांसुरी को झोले में रख कर आनन्द ने आंखें बंद की और वज्र आसन में बैठ गए। उस सज्जन ने आनन्द के पैर पकड लिए। आनन्द ने आंखे खोली। उन सज्जन की आंखों में आंसू थे।
आनन्द – “आप मेरे पैर पकड कर अनर्थ मत कीजिए।“
रोते रोते सज्जन ने कहा – “आप महापुरूष हैं। अपने चरणों में स्थान दीजिए।“
आनन्द – “आप क्या कह रहे हैं? मैं तो एक आम आदमी हूं, जिसका कोई अस्तित्व नही है। संघर्ष कर रहा हूं, हर पल।“
आंसू पोछते हुए उस सज्जन ने कहा – “यही महापुरूषों की निशानी होती है, कि अपने अस्तित्व को नही मानते, और गुमनामी में रहना पसन्द करते हैं।“ कह कर उसने आनन्द के पैर पकड लिए। आनन्द ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा – “कुछ दुखी लग रहे हो। पैर मत पकडो। मेरे साथ बैठो।“
आंखों से आंसू पोछते हुए वह आनन्द के पास बैठ गया।
आनन्द – “क्या नाम है आपका?”
सज्जन – “महमूद।“
आनन्द – “महमूद, तुम उदास क्यों हो, क्या बात है?
महमूद – “आप में कोई विशेष शक्ति है। आप महापुरूष हैं। मैं तो नादान, बेवकूफ, मूर्ख इंसान हूं, जो आपको लूटने के इरादे से आपके पीछे यहां तक आया। मैं चोर हूं, चोरियां करता हूं, जेबकरता हूं। समरहिल में सेठ औंकारनाथ की कोठी से मोटा माल लाया हूं, चोरी करके। लाखों के जेवर चुराए हैं। मेरे बैग में हैं। बस में भी तीन यात्रियों की जेब काटी है। बस खराब हुए। आप के सामान पर हाथ साफ करने के इरादे से आपके पीछे यहां तक आया। यहां आपने बांसुरी बजानी शुरू की और आप एक घंटे तक बांसुरी बजाते रहे। बांसुरी की धुन सुन कर पंक्षी चुपचाप धुन में खो गए। यहां तक की एक बंदर और बिल्ली भी आस पास बैठ कर चुपचाप आप की बांसुरी की धुन में मगन हो गए। मैं आश्चर्यचकित हो गया, कि कलयुग में कयामत आ गई। बाबा आप में महान शक्ति है। बाबा आप संत हैं, महात्मा हैं, सूफी फकीर हैं। बाबा मुझे माफ करो, बाबा।“ कह कर महमूद दहाडे मार कर रोने लगा।

आनन्द महमूद की बाते सुन कर हैरान हो गया, कि क्या महमूद सच कह रहा है? क्या वाकई में बंदर, बिल्ली और पंक्षी उसकी बांसुरी की धुन सुन कर मगन हो गए थे? यह कैसे हो सकता है?
आनन्द – “महमूद, मैं तो हालात का मारा एक साधारण इंसन हूं। जिस सेठ औंकारनाथ के घर तुम ने चोरी की, मैं उसी सेठ के घर से बेइज्जत हो कर निकला हूं। मन उदास था। बेमन बस का सफर कर रहा था। बस खराब हो गई तो कुछ मन की बैचेनी शान्त करने के लिए आंखें मूंद कर बांसुरी बजाई। एक घंटे तक बांसुरी बजाई, समय का अंदाजा ही नही रहा। मन शान्त हो गया, बांसुरी बंद की और तुम्हे सामने पाया।“
आनन्द ने अपनी व्यथा बयान की और महमूद को समझाया, कि वह एक साधारण इंसान है। जैसे बच्चे बांसुरी बजाते है, वह भी आम बच्चों की तरह बांसुरी बजाता था। स्कूल में संगीत टीचर ने उसको बांसुरी बजाने के टिप्स दिए और प्रोतसाहित किया। स्कूल, कॉलेज की संगीत प्रतियोगिताऔं में हिस्सा लेता था और कुछ पुरस्कार, सम्मान भी मिले। बांसुरी उसके जीवन का अहम हिस्सा बन गई और बैग में बांसुरी रखता है।
महमूद – “बाबा, मैं आपकी सब बातों पर यकीन कर रहा हूं। आपकी व्यथा भी समझ सकता हूं, परन्तु बाबा आप मेरी बात पर यकीन करें। बाबा आप में अदभुद शक्ति है।“
आनन्द, महमूद दोनों दस बजे तक बातें करते रहे। फिर बस में बैठ कर शहर की ओर रवाना हुए। पूरे रास्ते महमूद सोचता रहा, कि आनन्द की कैसे मदद कर सकता है। वह आनन्द के साथ उसके घर तक गया।
अनिला – “बहुत देर हो गई आज।“
आनन्द – “बस खराब हो जाने पर देरी हो गई। खाना लगा दे।“
खाना खाते समय महमूद ने अनिला को पूरी बात बताई, कि आनन्द में अदभुद शक्ति है। वे महान पुरूष की पत्नी बन कर धन्य हैं। अनिला मुस्कुरा दी – “भाई साहब, घर वालों की नजर में तो निखट्टू हैं। दुनियादारी भी नही आती, तभी तो हर आदमी दुत्कार देता है।“
महमूद – “भाभी जी, घर की मुर्गी दाल बराबर होती है। मैं एक छोटा सा तुच्छ इंसान हूं, मेरा हृदय परिवर्तन बाबा जी ने कर दिया है। मेरा दिल कह रहा है। सारी दुनिया एक दिन देखेगी बाबा के काम और सिर झुकाएगी।“

रात को सोते समय अनिला ने आनन्द से पूछा, आखिर महमूद के कहने का क्या अर्थ है। आनन्द ने सेठ औंकारनाथ के घर अपमानित होने की बात कही और महमूद की चोरी की बात बताई। अनिला भी दुविधा में आ गई, कि क्या एक चोर, जेबकरता दार्शनिक बातें कर सकता है?

सुबह बच्चों के स्कूल जाने के बाद आनन्द फाईलों में उलझ गया, कि किस की बीमा पॉलिसी कब रिन्यू हो रही है, और फोन पर सबको सूचित करके आंखे मूंद कर बांसुरी बजाने लगा। अनिला रसोई में काम कर रही थी। तभी एक व्यक्ति घर के दरवाजे पर आ कर ठिठक गया। अनिला ने सोचा शाय़द व्यक्ति बीमा के सिलसिले से आया है। उसने उस व्यक्ति को अंदर आ कर कुर्सी पर बैठने को कहा। व्यक्ति कुर्सी पर बैठ गया। बांसुरी मे मगन आनन्द को ज्ञान नही था, कि कोई उससे मिलना चाह रहा है। आज भी आनन्द एक घंटे तक बांसुरी बजाता रहा। अनिला ने हाथ लगा कर आनन्द से कहा, कि एक सज्जन पुरूष उन से मिलना चाहते है। बांसुरी रख कर आनन्द ने पूछा – “जी, मैंनें आपको पहचाना नही।“
“मैं विष्णु शर्मा हूं। आपकी बांसुरी की धुन सुन कर आपसे मिलने अंदर आ गया। मैं रेडियो स्टेशन में काम करता हूं। क्या आप एक छोटे से कार्यक्रम की रिकॉर्डिग करना पंसद करेगें?”
आनन्द – “पेशे से मैं बीमा एजेंट हूं। शौकिया बांसुरी बजाता हूं। स्कूल, कॉलेज के कार्यक्रमों में हिस्सा लेता था और कुछ सम्मान, पुरस्कार भी मिले थे। संगीत को पेशा नही बनाया।“
विष्णु – “मैंने आपको पहले कभी देखा नही, मैं तो सामने वाली गली में दो साल से रह रहा हूं।“
आनन्द – “जी, हमें सिर्फ एक महीना ही हुआ है यहां रहते हुए।“
विष्णु – “मैं आपकी रिकॉर्डिग के लिए कल का समय रखता हूं।“
आनन्द – “जी, शुक्रिया, मैं सहर्ष आपका निमंत्रण स्वीकार करता हूं।“
विष्णु के प्रस्थान के बाद अनिला ने आनन्द से कहा – “इतनी देर तक आपको बांसुरी बजाते कभी नही देखा। क्या बात है?”
आनन्द – “कल मन विचलित हो गया था, आज भी था। बांसुरी बजाने के बाद मन शान्त हुआ। कुछ समय ही साथ नही दे रहा था। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए हर कोशिश की, परन्तु सफलता नही मिली। बांसुरी का शौक आज रेडियो स्टेशन ले कर जा रहा है। भगवान कृष्ण के उपदेश पर अमल करता रहा हूं, कि कर्म करने से मुंह मत मोडो। कर्म करो, फल मिलेगा। एक रास्ता खत्म होता है, तो वह किसी मोड पर छोडता है, यहां दूसरा रास्ता आरम्भ होता है।“
अनिला – “आपकी यही खूबी मुझे भाती है।“
अगले दिन रेडियो स्टेशन पर सब बांसुरी की धुनों में मगन हो गए। रिकॉर्डिग को दूसरे केन्द्रो में भी भेजा गया। रिकॉर्डिग के बाद आनन्द घर वापिस आया तो दो बसों की बीमा के लिए दो व्यक्ति उसका इंतजार कर रहे थे। उन व्यक्तियों को महमूद ने भेजा था। महमूद आनन्द की हर हाल में मदद करना चाहता था। उसकी नजर में आनन्द कोई साधारण आदमी नही, बल्कि महापुरूष है। उसको दर दर की ठोकरे खाने के लिए नही छोड सकता था। उसकी चोरों, बस मालिकों के साथ पुलिस में भी अच्छी जान पहचान थी। बसों में वह चोरी करता था, इसलिए उसकी जान पहचान थी। पुलिस को चोरी का एक हिस्सा रिश्वत में जाता है, उपर से दो तीन बार हवालात के चक्कर भी काट चुका था। उसने सभी जानकारों को बीमा के लिए आनन्द के पास जाने को कहा। एक सप्ताह में आनन्द ने जितने बीमे किए, उतने एक साल में नही किए थे।

एक सप्ताह बाद बुधवार के दिन आनन्द के पैर खुद अपने आप नवगांव की ओर चल पडे, जहां समरहिल से लौटते समय बस खराब हुई थी और जामुन के पेड के नीचे आनन्द का विचलित मन को शान्ति मिली थी। समय लगभग वही पांच बजे थे। आनन्द ने बांसुरी बजाई, फिर वही दृश्य, बंदर, बिल्ली चुपचाप आकर बैठ गए, पंक्षी पेड की टहनियां झूलने लगे। महमूद भी आनन्द के चरणों के पास बैठ गया। एक घंटे पश्चात शाम की कालिमा बढने लगी। पशु पक्षी वापिस चले गए। समीप बहती नहर के कल कल पानी की मधुर आवाज के बीच दोनों शान्त एक दूसरे को देख रहे थे। कुछ नही कहा, परन्तु बिन कहे बहुत कुछ दोनों एक दूसरे से कह चुके थे, सुन चुके थे।
आनन्द – “सच बताऔ, बीमा के लिए तुम ही भेज रहे हो?”
महमूद – “बाबा, मैं तुच्छ बस अपने पापों का प्रायश्चित कर रहा हूं। बचपन से ही जेबे काट रहा हूं। अनगिनत चोरियां की। कुछ अच्छा काम कर लू, शायद यही प्रायश्चित हो। आप कुछ कहे बाबा, मैं क्या करू?”
आनन्द – “औंकारनाथ के यहां कितने की चोरी की?”
महमूद – “बाबा, औंकारनाथ बहुत दुष्ट है। समरहिल की कोठी तो उसकी अय्याशी की कोठी है। अपने बच्चों की उम्र की लडकियों के साथ अय्याशी करता है बाबा। पूरे पचास लाख के माल पर हाथ लगा है बाबा।“
आनन्द – “क्या करोगे, पचास लाख का?”
महमूद – “बाबा, अब मैं आपकी शरण में हूं। जो कहोगे, वही करूंगा। चोरी, जेब काटना आज से बंद। आपकी व्यथा देख कर सोच रहा हूं, कि पचास लाख बैंक में जमा डिपोजिट करके ब्याज से दाल रोटी का इंतजाम करूंगा, फिर आपकी सेवा।“
आनन्द – “बहुत मुश्किल होगा, पेशा बदल कर साधारण जिन्दगी बिताना, कांटे ही कांटे हैं। राह कठिन है, मुझे देख चुके हो।“
महमूद – “चोरी भी मुश्किल काम है। कोई काम आसान नही, आप प्रेरणा दें बाबा हर राह पर चलने के लिए तैयार हूं।“

दोनों दस बजे तक बातें करते रहे, फिर बस पकड कर शहर वापिस आ गए। आनन्द का बीमे का काम चल निकला। अपना मकान भी बना लिया। महमूद आनन्द की मदद करता रहा। वह आनन्द का सेवक बन गया। सेठ औंकारनाथ के घर से अपमानित निकलने के बाद खिन्न मन से आनन्द मे दाढी नही बनाई। अनिला कहती रही, कि शेव करो, दाढी के साथ अच्छे नही लगते। परन्तु चाह कर के भी आनन्द ने दाढी नही बनाई। आज एक सप्ताह बाद बस में वापिस आते हुए महमूद ने आनन्द से दाढी बढाने को कहा, कि बाबा आपके चेहरे पर दाढी अच्छी लगती है। आनन्द की दाढी बढती रही और साथ बीमे का काम। हर बुधवार को शाम पांच बजे नवगांव की नहर के पास जामुन के पेड के तले आनन्द बांसुरी बजाता। बांसुरी की धुन पर बंदर, बिल्ली और पंक्षी मगन हो जाते। एक घंटे बाद रात होते पशु, पंक्षी चले जाते। रह जाते आनन्द और महमूद। दोनों बाते करते। महमूद चोरी छोड बीमा एजेंट बन गया। दो महीने बाद महमूद ने अपने साथियों को आनन्द की बांसुरी की बात बताई। अब वे सभी आनन्द के साथ बुधवार को नवगांव जाने लगे। पहले एक घंटा बांसुरी वादन का रसपान करते फिर अपनी व्यक्तिगत समस्या के समाधान हेतु बातचीत करते। आनन्द उन्हे समाधान बताता। समस्या के निदान के बाद आनन्द रजिस्टर में समस्या और समाधान लिखता। आनन्द पंच की भूमिका निभाने लगा। आनन्द की ख्याति नवगांव के साथ दूर दूर तक फैल गई। हर बुधवार को अब नवगांव में मेला लगने लगा। आनन्द शाम पांच बजे बांसुरी बजाते, बंदर, बिल्ली और पंक्षी मंत्र मुग्ध हो जाते। फिर उसके बाद लोगों की समस्या का समाधान। आनन्द दाढी वाले बाबा के नाम से प्रख्यात हो गए। रजिस्टर और लेपटाप में समस्या, समाधान लिखते। आनन्द रास्ते का बताते, चलना तो आपने है।

आज दस वर्ष बीत गए, आनन्द को घर से निकले। बांसुरी केवल रेडियो स्टेशन के कार्यक्रमों के लिए या फिर बुधवार को नवगांव नहर के समीप जामुन के पेड के तले बजाते थे। आज भी बुधवार है। शाम पांच बजे बांसुरी की धुन छेडी। अनगिनत लोग एकत्रित थे। उनमें आनन्द के माता-पिता भी थे। अनिला आनन्द के समीप और महमूद चरणों में विराजमान। अपने सास-ससुर को भीड में पहचान लिया। वह चुप रही। बांसुरी की धुन समाप्त हुई। बंदर, बिल्ली और पंक्षी चले गए। अनिला ने महमूद को बताया, कि भीड में उसके सास-ससुर है। भीड को चीरता हुआ महमूद आनन्द के माता-पिता को पास पहुंचा, उनके चरण स्पर्श किए। सबसे आगे लेकर आनन्द के चरणों में बैठ गया। माता-पिता अनिला को देख हैरान हो गए, वे अपने पुत्र आनन्द को नही पहचान सके, उसकी बढी दाढी के कारण। माता-पिता को देख कर आनन्द अपने स्थान से उठा और मात-पिता के चरण स्पर्श किए।

माता-पिता – “बाबा, हमारे पैर छू कर हमें पाप का भागी मत बनाओ।“

आनन्द – “कैसा पाप, पिता जी, मैं आपका आनन्द। आपने क्यों कष्ठ किया। मुझे बुला लिया होता। मैं तो आज भी वही आनन्द हूं।“

माता-पिता – “किस मुंह से बुलाते बेटा, मति खराब हो गई थी। तुम्हारे भाईयों के कहने पर तुम पर दोष लगाया, आज वही.......” कह कर चुप हो गए।

आनन्द – “पितजी, मेरा घर छोटा सा है, परन्तु स्थान बहुत है। आप चिन्ता न करें।“ फिर अनिला और महमूद को पास बुला कर – “अनिला, महमूद, माताजी-पिताजी को घर ले जाऔ। मैं दस बजे की बस पकड कर आ जाऊंगा।“

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