उसे अपने सुने पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उसे लगा कि शायद यह मज़ाक हो। फिर भी वह जानना चाहता था कि सचाई क्या है। यह तब ही हो सकता था जब वह स्वयं विदर्भ जाये।
उसने राजा ऋतुपर्ण से कहा, "मैं आपको विदर्भ ले चलने के लिए तैयार हूँ और आपको स्वयंवर के समय से पहले ही वहाँ पहुँचा दूंगा। हम किस समय चलेंगे?" "मैं अभी तैयार हुआ जाता हूँ,” राजा ने उत्तर दिया।
तब नल अस्तबल में गया और उसने वहाँ से सबसे बढ़िया चार घोड़े चुनकर एक मजबूत और सुन्दर रथ में जोत दिये । जल्दी ही राजा ने विदर्भ का रास्ता पकड़ा।
नल का रथ हवा से बातें कर रहा था। राजा सोच रहा था कि यह वाहुक वास्तव में कौन है। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई मनुष्य इस तरह से रथ हाँक सकता है। उसने वाहुक से कहा कि वह भी घोड़ों को इतना तेज़ हाँकने की कला सीखना चाहता है। इसके बदले में वह वाहुक को अंकों का ज्ञान सिखा देगा।
राजा भी वाहुक को अपनी कला का जौहर दिखाना चाहता था।
जैसे ही वे एक बड़े पेड़ के पास से गुजरे तो राजा ने पूछा, “क्या तुम जानते हो कि इस पेड़ पर कितनी पत्तियाँ और फल हैं ?" वाहुक ने कहा कि वह यह नहीं बता सकता।
यह तो बहुत ही कठिन प्रश्न है। तब राजा ने उसे पेड़ पर की पत्तियों और फलों की गिनती बता दी। वाहुक को राजा की बात पर विश्वास नहीं हुआ। वह चाहता था कि फल और पत्तियों की गिनती करे। उसने रथ को रोका।
राजा ने कहा, "हमारे पास समय कम है। यदि हम रास्ते में ठहर जायेंगे तो स्वयंवर के लिए देर हो जायेगी।"
"मैं पत्तियाँ और फल गिनना चाहता हूँ," नल ने कहा। “इसमें अधिक समय नहीं लगेगा। राजन् मैं आप को विश्वास दिलाता हूँ कि हम स्वयंवर के समय से बहुत पहले ही विदर्भ पहुँच जायेंगे।"
नल ने फल और पत्तियाँ गिनी। राजा की बताई संख्या ठीक निकली।
तब उसने राजा से कहा, "कृपा कर के मुझे इस विज्ञान का रहस्य बताइये। इसके बदले में मैं आपको घोड़ों को चलाने और सम्भालने की विद्या सिखा दूंगा।"
राजा ऋतुपर्ण ने उत्तर दिया कि अब उसके पास समय नहीं है क्यों कि वह जल्दी ही विदर्भ पहुँचने के लिए उत्सुक है।
लेकिन नल इस रहस्य को वहीं और उसी समय जानना चाहता था। राजा समझ गया कि इस समय विवाद करने से देर ही होगी। उसने नल को अंकों का ज्ञान बता दिया जो उसने जुये में प्रवीणता प्राप्त करने पर सीखा था और नल ने उसे घोड़ों के चलाने और सम्भालने की कला सिखा दी।
जब नल ने अंकों का ज्ञान और जुए में दक्षता प्राप्त कर ली तो उसके भीतर रहनेवाले कलि ने सोचा कि अब वहाँ रहना खतरे से खाली नहीं|
उसने नल का शरीर छोड़ दिया। वह बुरी आत्मा उसके सामने उपस्थित हुई। नल को बहुत गुस्सा आया और वह तलवार निकाल कर कलि को मारने लगा।
कलि ने दया की प्रार्थना की और कहा, “यदि इस समय तुम मेरी जान छोड़ दोगे तो मैं वायदा करता हूँ कि जो तुम्हारे बारे में सोचेगा या तुम्हारा नाम लेगा मैं उसके पास भी न फटकूँगा और न ही उसे किसी प्रकार से तंग करूंगा।"
नल उसे मार सकता था लेकिन वह बहुत दयालु था। उसने उसे छोड़ दिया। कलि पास के ही एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गया।
ऋतुपर्ण और नल ने अपनी यात्रा जारी रखी। नल ने रथ को इस तेजी से हाँका कि वह रात होने से पहले ही विदर्भ जा पहुंचे।