राजा जनक की पुत्री का नाम सीता इसलिए था कि वे जनक को हल चलाते वक्त खेत की रेखाभूमि से प्राप्त हुई थीं इसलिए उन्हें भूमिपुत्री भी कहा गया। राजा जनक की पुत्री होने के कारण उन्हें विदैही भी कहा गया। जनक विदैही संस्कृति और धर्म के अनुयायी थीं ।
राम से विवाह के बाद सीता के जीवन में एक नया मोड़ आया। राम के वनवास काल में सीता का रावण ने हरण कर लिया था। सीता को अशोक वाटिका में रखकर रावण ने साम, दाम, दंड, भेद आदि सभी उपायों से सीता को खुद से विवाह करने के प्रयास किए किंतु सीता ने अपने पारिवारिक आदर्श का परिचय देते हुए केवल श्रीराम का ही ध्यान किया। पति-परायण, पतित भावना, भक्ति भावना, मृदुता, स्नेहमयी, वात्सल्यमयी सीता ने अपने चरित्र से सभी नारियों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया।
लेकिन रावण के पास रहने के कारण सीता को इस समाज ने नहीं अपनाया। सीता को अग्नि परीक्षा देना पड़ी फिर भी लोगों ने उन पर संदेह किया। लोकापवाद के कारण सीता निर्वासित होती है लेकिन इसके लिए वह अपना उदार हृदय व सहिष्णु चरित्र का परित्याग नहीं करती है और न ही अपने पति को दोष देती है। सीता राम-कथा के केंद्र में रहकर केंद्रीय पात्र बनी हैं।