कल्लाजी के सेवक सरजुदासजी: मलाई, पर जशी की बड़ी कृपा-दृष्टि है। जरणी ने कई महत्वपूर्ण कार्य इन्हे दे रख है। साथ ही मजार सैनिक भी दिये हैं। इनमें से ३५ हजार सैनिक तो जगत के कल्यायकलिल हर समय नैनात हैं। राजा मानसिंह जैसे श्रेष्ठतम वीररत्न इनके सेनापति कलाजी के बिना भी लेवक हैं, सबको अलग-अलग किरणें दी हुई हैं। ये कि एक की हैं। इनमें सर्वाधिक किरणें सरजुदासजी को प्राप्त हैं। एक में इस सेना में अल्लाजी का भाव आता है तब वे पूर्णत: स्थिर भावी नहीं का गाने है|

मान गये का भान रहता है जबकि दस के बाद प्रदत्त किरणों वाले शेलीपोर ही अवस्थित रहते हैं। ऐसी स्थिति में सेवक में अपने स्वयं का ज्ञा? सरजुदासजी में यदा-कदा मानसिंहजी का पधारना भी होता है...! मन में सरदासजी के माता-पिता चल बसे। अतः ये कुछ पढ भी नहीं पाये...! जब इसका विवाह हुआ तब इनके श्वसुरजी ने शादी में इन्हें तुलसीकृत रामचरित मानस उसी से इन्होंने मामूली पढ़ना-लिखना सीखा। मिलेट्री में नौकरी की सत्र भी शनार लगा कर, अंगूठा लगाते।

सरजुदासजी की एकांत साधना: इनका पारभिक जीबन बड़ी साना व तपस्या में बीता। तीन वर्ष बांसवाडा के धने में तीन किये सब बील- पत्र वाट कर उनका एक गिलास पानी प्रतिदिन पीते। पर इसका आहार हताशरीर पर कुछ नहीं पहन कर केवल लगोट की जगह पत्ते लपेटे मा पर राम काटते...! कभी नीचे शेर दहाड़ता और ऊपर बदर किलकारी करते कम और अन्य जानवर घूमते, भटकते पर ये जरा भी विचलित नहीं होते। इस हीच इन्हें कई वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों का ज्ञान हो गया। रात्रि को कुछ बनस्पतियां दीन की प्रकाश देती। ये उन्हें आवाज देते। कहते,

“आ, मेरा यह काम कर दे कुछ हा कल्ली, कुछ ना बोलती हा वाती को ये अपने काम में लेने इस प्रकार इन्हें वनस्पतियों की सत्ता महना और उपयोगिता की बोली जानकारी हो गई।”

सात वर्ष तक ये फलाहारी रहे डेड़ बरस केवल माही की रोटी माई। रूंडेला में जब कल्लाजी का मेला भरा तो सरजुदासजी भी गये। वह अपनी मुडेर पर बैठे थे कि भीतर से कल्लाजी ने फरमाया- बासवाडा से सरजुदास आया है, उसे बुलाओ। हजारों आदमियो में सरजुदासजी की हूढ शुरू हुई| सरजुदासजी भीतर पहुचे। वहां एक महिला बैठी हुई थी जिसके कोढ चू रहा था। सरजुदासजी ने सोचा- इसे ठीक करें तो मैं इन्हे मानू। कल्लाजी ने कहा- इसके कलवाणी छिटक। उन्होंने कलवाणी छिटकी और देखते-देखते कोढ़ चूना बन्द हो गया।

सरजुदासजी में कल्लाजी का पदार्पण: जब सरजुदासजी मेले से लौट रहे थे तब रास्ते में एक महिला को गाड़ी में बिठाकर लाया जा रहा था। सरजुदासजी ने पूछा कहा ले जा रहे हो? उसमें बैठा व्यक्ति बोला- इसे सर्प ने काट खाया है सो बावजी (कल्लाजी) के देवरे ले जा रहे हैं। सरजुदासजी मे उसी वक्त कल्लाजी पधारे और उन्होंने उस महिला का सारा विप चूस लिया। वह महिला स्वस्थ हो गई।

बांसवाडा में कल्लाजी की गादी: बासवाडा जाकर टेकरी पर कल्लाजी की गादी प्रारम्भ की गई। लोगों को पता लगा तो वहा भीड की भीड़ एकत्रित होने लग गई। सस्जुदासजी में कल्लाजी का पधारना होता और मानसिक तथा शारीरिक सभी प्रकार के रोगियों का इलाज होता। धीरे-धीरे यह बात फैलती गई और वहा कल्लाजी की धाम चल पड़ी।

बडी सरवण में गादी का जोर: बांसवाडा में कुछ बरस तक कल्लाजी की बड़ी धाम चली। कई लोगों को भयंकर बीमारियों से मुक्ति मिली परन्तु अचानक मालिक (कल्लाजी) ने यहां से धाम उठवाकर रतलाम के पास बडी सरवण लगाने का आदेश दिया अतः सरजुदासजी बांसवाड़ा से बडी सरवण चल पडे। बडी सरवण में लम्बे फैले मैदान में हजारों लोगों की भीड निरन्तर बनी रहती। यहां मालिक का परचा भी बड़ा चमत्कारी रहा। दिन रात सरजुदासजी में मालिक का बिराजना बना रहता फिर भी यह संभव नहीं था कि प्रत्येक रोगी को बुलाकर व्यक्तिशः उसका दुख दूर किया जा सके। ऐसी स्थिति में स्त्री-पुरूषों की लम्बी लाइन लग जाती तब मालिक पधार कर ऊपर से शक्ति को निकालते और सभी ठीक हो जाते मालिक की कृपा से जब मार रोगी ठीक होने लगे तो वहां आने वालों की संख्या में दिन दूनी गत चौगुनी वृद्धि होने लग गई। ऐसी स्थिति में स्थानीय व्यक्तियो में ईर्ष्या द्वेष और ईमानी ने घर कर लिया। जब इन अवगुणों की अति होती देखी गई तो मालिक ने यह स्थान भी छोड़ दिया।

फूलपुर में गादी का प्रभाव: यहां स सरजुदासजी गाड़ी में बैठकर चल पडे। तब तक इन्हें यह मालूम नही था कि कहां चलना हे। इसी बीच अहमदाबाद का एक सेठ मिल गया जो प्राय: बडी सरवण आता रहता है वह सरजुदासजी को अहमदाबाद ले गया और साबरमती के किनारे फूलपुर गाव में गादी लग गई। बडी सरवण आने वाले सभी लोग फूलपुर आने लग गये। यहा भी कल्लाजी के परयों ने बड़े-बड़े चमत्कारी काम किये परन्तु जब किसी के द्वारा मूलस्थान विकृत कर दिया गया गब जोर की बाढ़ आई जिससे वह पूरा हिस्सा ही उसमें बह गया। बचा तो कल जालने वाला स्थान बचा रहा। यह घटना सन् १९७३ की है।

वर्तमान गादी वलाद में: फूलपुर में उन्धी कालाजी की यह धाम इसके पास ही बलाद गाव मे काली कला थाम नाम से स्थापित की गई। यह गांव हिम्मतनगर-अहमदाबाद मार्ग पर स्थित है। वहा से अहमदाबाद सत्रह किलोमीटर दूर है। यहां हर दूसरे मगलवार को गादी लगती पिलली धामों की तरह कल्लाजी की यह धाम भी उतनी ही चमत्कारी, प्रभावी तथा प्रतापी परन्दों वाली है। दर्शनार्थियों, दुखियारों का यहा आना-जाना बना ही रहता है। सरकारजी इसे एक श्रेष्ठ आश्रम के रूप में विकसित करने में लगे हुए हैं। नवरात्रि मे यहां नीटी बिन मेला लगा रहता है। इन दिनों सभी यहां प्रसाद रूप में भोजन प्राप्त करते है।

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