बाजीराव एक जाने माने सेनापति थे जो मराठा राज के चौथे छत्रपति (राजा) छत्रपति शाहू राज भोंसले के राज्य में १७२० से अपनी मौत तक मराठा पेशवा(प्रधान मंत्री) की तरह कार्यरत थे | बाजीराव ने करीबन ४१ लड़ाइयाँ लड़ी और ऐसा माना जाता है की उनको एक में भी हार का सामना नहीं करना पड़ा |उनको मराठा राज्य का शेत्र बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है , खास तौर से उत्तर में जिसकी वजह से उनकी मौत के बाद भी उनके बेटे के २० साल के राज्य में वह अपनी चरम ऊँचाई पर पहुँच सका | बाजीराव को नौ मराठा पेशवाओं में से सबसे प्रभावी माना जाता है | ऐसा कहा जाता है की वह “हिन्दू पद पदशाही”(हिन्दू राज्य) की स्थापना के लिए भी लढ़े थे |
बाजीराव का जन्म एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में छत्रपति साहू के पहले पेशवा बालाजी विश्वनाथ के बेटे के रूप में हुआ | जब वह बीस साल के हुए तो उन्हें उनके पिता की मौत के बाद शाहू ने कई पुराने और अनुभवी लोगों की दावेदारी को अनदेखा कर पेशवा बना दिया | उनकी नियुक्ति से यह ज़ाहिर है की शाहू को उनका हुनर किशोरावस्था में ही नज़र आ गया था और इसलिए उन्हें पेशवा बनाया गया | बाजीराव अपने सैनिकों में काफी लोकप्रिय थे और आज भी उनका नाम इज्ज़त से लिया जाता है |
बाजीराव की मौत २८ अप्रैल १७४९ को काफी कम उम्र में हो गयी | उन्हें अपनी जागीरों का मुआयना करते हुए अचानक बुखार हुआ , शायद गर्मी की वजह से और वह ३९ साल की उम्र में चल बसे | वह १००००० सैनिकों के साथ दिल्ली जा रहे थे और इंदौर शहर के पास खर्गोने क्षेत्र में रुके थे | २८ अप्रैल १७४० को उनका अंतिम संस्कार रावेरखेडी में नर्मदा नदी सनावद खर्गोने के पास कर दिया गया | उनकी याद में सिंदिया ने एक स्मारक की स्थापना की | उनके निवास स्थान और एक शिवजी के मंदिर के खँडहर पास में स्थित है |