भविष्य पुराण में भारत के राजवंशों और भारत पर शासन करने वाले विदेशियों के बारे में स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इस पुराण के संबंध में कहा जाता है कि यह हर्षवर्धन के काल में लिखा गया हो सकता है यानि सन् 600 ईस्वी में। लेकिन कुछ विद्वान मानते हैं कि यह तो वेदव्यास की रचना है, जो 3,000 ईसा पूर्व हुए थे। 

इस पुराण में द्वापर और कलियुग के राजा तथा उनकी भाषाओं के साथ-साथ विक्रम-बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है। सत्यनारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गई है। इस पुराण में ऐतिहासिक व आधुनिक घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसमें ईसा मसीह का जन्म, उनकी भारत-यात्रा, मुहम्मद साहब के अरब में आविर्भाव का वर्णन भी मिलता है। आल्हा-उदल के इतिहास का प्रसिद्ध आख्यान इसी पुराण के आधार पर प्रचलित है।इसमें तैमूर, बाबर, हुमायूं, अकबर, औरंगजेब, पृथ्वीराज चौहान तथा छत्रपति शिवाजी के बारे में भी स्पष्‍ट उल्लेख मिलता है। 
 
सन्‌ 1857 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के भारत की साम्राज्ञी बनने और अंग्रेजी  भाषा के प्रसार से भारतीय भाषा संस्कृत के विलुप्त होने की भविष्यवाणी भी इस ग्रंथ में स्पष्ट रूप से की गई है। इसी पुराण का निम्न श्लोक हम यहां लिख  रहे हैं, जो प्रतिसर्ग पर्व में वर्णित है। श्रीमद्भागवत पुराण के द्वादश स्कंध के प्रथम अध्याय में भी वंशों का वर्णन मिलता है।
 
लिंड्गच्छेदी शिखाहीन: श्मश्रुधारी सदूषक:।
उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनोमम।।25।।
विना कौलं च पश्वस्तेषां भक्ष्या मतामम।
मुसलेनैव संस्कार: कुशैरिव भविष्यति ।।26।।
तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषका:।
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृत:।। 27।। : (भविष्य पुराण पर्व 3, खंड 3, अध्याय 1, श्लोक 25, 26, 27)
 
व्याख्‍या : रेगिस्तान की धरती पर एक 'पिशाच' जन्म लेगा जिसका नाम महामद होगा, वो एक ऐसे धर्म की नींव रखेगा जिसके कारण मानव जाति परेशान ही  उठेगी। वो असुर कुल सभी मानवों को समाप्त करने की चेष्टा करेगा। उस धर्म के लोग अपने लिंग के अग्रभाग को जन्म लेते ही काटेंगे, उनकी शिखा (चोटी) नहीं होगी, वो दाढ़ी रखेंगे, पर मूंछ नहीं रखेंगे। वो बहुत शोर करेंगे और मानव जाति का नाश करने की चेष्टा करेंगे। राक्षस जाति को बढ़ावा देंगे एवं वे कालांतर में स्वत: समाप्त हो जायेंगे ।
 
भविष्य पुराण में भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन है। भविष्य पुराण के अनुसार इसके श्लोकों की संख्या 50,000 के लगभग होनी चाहिए, परंतु वर्तमान में कुल 14,000 श्लोक ही उपलब्ध हैं। यह पुराण ब्रह्म, मध्यम, प्रतिसर्ग तथा उत्तर- इन 4 प्रमुख पर्वों में विभक्त है। ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन प्रतिसर्ग पर्व में वर्णित है। यह पुराण भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का आधार है। इसके प्रतिसर्ग पर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खंड में इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री लिखी हुई  है। इतिहास लेखकों ने इसी का आधार लिया है।

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