भारतीय धातुकर्म कौशल की प्राचीन और मध्य समय में बहुत तारीफ होती थी , इतना की कई इस्लामी गुट मशहूर डैमस्कस स्टील के होते हुए भी भारतीय निर्मित हथियारों का आयात करते थे (कई क्षोध्कर्ता मानते हैं की डैमस्कस स्टील का उत्पादन भारतीय उपमहाद्वीप के वूत्ज़ स्टील से प्रेरित हुआ है )|इस कौशल का स्थापित उदाहरण है दिल्ली का १६०० साल पुराना लोहे का खम्बा (आयरन पिलर ) जो अपने उन्नत धातु संरचना की वजह से उसकी प्रभावशाली जंग प्रतिरोधी गुणवत्ता के लिए उल्लेखनीय माना जाता है |
चन्द्रगुप्त II ( दूसरा नाम विक्रमादित्य) के साम्राज्य में निर्मित इस खम्बे की लम्बाई २२ फीट है और वह दिल्ली के क़ुतुब प्रांगण में स्थित है ( उसे शायद उसके मूल स्थान – मध्य भारत के मध्य प्रदेश के उदयगिरी गुफाएं – से इनाम की तरह लाया गया था | उसके निर्माण के बारे में कई विशेषज्ञों का मानना है की खम्बे का निर्माण उत्तम गुणवत्ता के लोहे को वेल्डिंग से जोड़ कर किया गया था | इस पुरात्व खम्बे की जंग रोधक प्रकृति उसकी सतह पर एक सुरक्षा परत का नतीजा है | इस परत को लोहे के साथ अधिक मात्रा में फ़ास्फ़रोस और अन्य तत्व जैसे लोहे के ऑक्साइड मिला कर तैयार किया गया है |कुछ भी हो , लोहे का खम्बा आज भी प्राचीन इंजीनियरिंग योग्यता के प्रगतिशील स्तर का दुर्लभ उदाहरण है ; और आज भी अपने जैसे और किसी खम्बे के निर्माण भारत में(या एशिया में ) कहीं और न होने की वजह से इतिहासकारों को हैरान किये हुए है |