ये कहानी है कर्ण के पुत्र वृषकेतु की | वह कर्ण और वृषाली के एकमात्र जीवित बचे पुत्र थे | इसीलिए जब अर्जुन को पता चला की कर्ण उनके बड़े भाई थे और उन्होनें अपने भाई और भतीजों को मार गिराया है तो उन्होनें बहुत दुःख और पछतावा हुआ | उन्होनें कर्ण के एकमात्र बचे पुत्र वृषकेतु को अपनी संतान की तरह अपना लिया और उसे सही ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान किया | वृषकेतु सोचता था की अर्जुन उनसे नफरत करते होंगे क्यूंकि वह कर्ण का पुत्र है पर जब उसने देखा की अर्जुन कितने दुखी हैं उन्होनें भी अपने चाचा को माफ़ कर दिया | कृष्ण भी उनसे बहुत प्यार करते थे क्यूंकि वह कर्ण की बहुत इज्ज़त करते थे |
वृषकेतु पृथ्वी पर वो आखिरी इंसान था जिन्हें ब्रह्मास्त्र ,वरुणास्त्र, अग्नि और वायुँस्त्र के इस्तेमाल की विधि मालूम थी | ये ज्ञान उनकी मौत के साथ ख़तम हो गया क्यूंकि कृष्ण ने उनको ये राज़ किसी को बताने के लिए मना किया था |
वृषकेतु घतोत्घच के बेटे के बहुत नज़दीक था और दोनों में बहुत पक्की दोस्ती थी | वह दोनों ही श्यामकर्ण अश्व युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के लिए भद्रावती से लेकर आये थे | वह अपनी नस्ल का एकमात्र घोडा था और राजा पांडवों को उसे देने को तैयार नहीं था | वह घोड़े को भद्रावती की सेना को हरा कर लेकर आये |
वृषकेतु और अर्जुन को मणिपुर में बब्रुवाहन ने मौत के मौत के घाट उतार दिया था | पर जब उसे पता चला की अर्जुन उसके पिता हैं तो उन्होनें उलूपी से नाग मणि ले दोनों वृषकेतु और अर्जुन को जीवन दान दिया और दोनों भाइयों का मिलन संभव हुआ |