जिस समय राजा गोपालसिंह खास बाग के दरवाजे पर पहुंचे उस समय उनके दीवान साहब भी वहां हाजिर थे। नकली रामदीन अर्थात् लीला इनके हवाले कर दी गई। भैरोसिंह के सवाल करने पर उन्होंने कहा कि 'इस लीला ने चार आदमियों को खास बाग के अन्दर पहुंचाया है मगर हम नहीं कह सकते कि वास्तव में वे कौन थे।' अस्तु राजा साहब और भैरोसिंह को यह तो मालूम हो गया कि चार आदमी भी इस बाग के अन्दर घुसे हैं जो हमारे दुश्मन ही होंगे मगर उन्हें उन पांच सौ फौजी सिपाहियों की शायद ही खबर हो जिन्हें मायारानी ने गुप्त रीति से बाग के अन्दर कर लिया था। पहिली दफे जब मायारानी को गोपालसिंह ने छकाया था तब वह खुले तौर पर बाग में रहती थी मगर अबकी दफे तो वह उस भूल-भुलैया बाग में जाकर ऐसा गायब हुई है कि उसका पता लगाना भी कठिन होगा। दीवान साहब ने पूछा भी कि 'अगर हुक्म हो तो बाग में तलाशी ली जाय और उन आदमियों का पता लगाया जाय जिन्हें लीला ने इस बाग में पहुंचाया है', मगर राजा साहब ने इसके जवाब में सिर हिलाकर जाहिर कर दिया कि यह बात उन्हें स्वीकार नहीं है।
कुछ दिन रहते ही राजा गोपालसिंह बाग के दूसरे दर्जे में केवल भैरोसिंह को साथ लेकर गये और बाग के अन्दर चारों तरफ सन्नाटा पाया। इस समय भैरोसिंह और राजा गोपालसिंह दोनों ही के हाथ में तिलिस्मी खंजर मौजूद थे।
खास बाग के दूसरे दर्जे में दो कुएं थे जिनमें पानी बहुत ज्यादे रहता था, यहां तक कि इस बाग के पेड़-पत्तों को सींचने और छिड़काव का काम इन दोनों में से किसी एक कुएं ही से चल सकता था मगर सींचने के समय दूर और नजदीक का खयाल करके या शायद और किसी सबब से बनवाने वाले ने दो बड़े-बड़े जंगी कुएं बनावाये थे परन्तु ये दोनों कुएं भी कारीगरी और ऐयारी से खाली न थे।
भैरोसिंह और गोपालसिंह छिपते और घूमते हुए पूरब तरफ वाले कुएं पर पहुंचे जिसका घेरा बहुत बड़ा था। और नीचे उतरने तथा चढ़ने के लिए कुएं की दीवार में लोहे की कड़ियां लगी हुई थीं। भैरोसिंह और गोपालसिंह दोनों आदमी कड़ियों के सहारे इस कुएं में उतर गये।
किसी ठिकाने छिपी हुई मायारानी इस तमाशे को देख रही थी। गोपालसिंह और भैरोसिंह को आते देख वह बहुत खुश हुई और उसे निश्चय हो गया कि अब हम लोग गोपालसिंह को मार लेंगे। जिस जगह वह बैठी हुई थी वहां पर माधवी, कुबेरसिंह, भीमसेन और ऐयारों के अतिरिक्त बीस आदमी फौजी सिपाहियों में से भी मौजूद थे और बाकी फौजी सिपाही तहखानों में छिपाये हुए थे। पहिले तो मायारानी ने चाहा कि केवल हम ही लोग बीस सिपाहियों के साथ जाकर गोपालसिंह को गिरफ्तार कर लें मगर जब उसे कृष्णाजिन्न वाली बात याद आई और यह खयाल हुआ कि गोपालसिंह के पास वह तिलिस्मी खंजर और कवच जरूर होगा जो कि रोहतासगढ़ में उनके पास उस समय मौजूद था जब शेरअली और दारोगा के साथ हम लोग वहां गये थे, तब उसकी हिम्मत टूट गई और बिना कुल फौजी सिपाहियों को साथ लिए गोपालसिंह के पास जाना उचित न जाना। इसी बीच में उसके देखते-देखते गोपालसिंह कुएं के अन्दर चले गये।
इस तिलिस्मी बाग के अन्दर आने तथा यहां से बाहर जाने वाला दरवाजा जिस तरह बन्द होता है इसका हाल उस समय लिखा जा चुका है जब पहिली दफा इस बाग में मायारानी के ऊपर आफत आई थी और मायारानी ने सिपाहियों के बागी हो जाने पर बाहर जाने का रास्ता बन्द कर दिया था, अस्तु इस समय भी उसी ढंग से मायारानी ने बाग का दरवाजा बन्द कर दिया और इसके बाद कुल सिपाहियों को तहखाने में से निकालकर माधवी, भीमसेन और कुबेरसिंह तथा ऐयारों को साथ लिए उस कुएं पर पहुंची जिसके अन्दर भैरोसिंह को साथ लिये हुए राजा गोपालसिंह उतर गये थे।
मायारानी ने सोचा था कि आखिर गोपालसिंह उस कुएं के बाहर निकलेंगे ही, उस समय हम लोग उन्हें सहज ही में मार लेंगे बल्कि कुएं से बाहर निकलने की मोहलत ही न देंगे - इत्यादि, मगर जब बहुत देर हो गई और रात हो जाने पर भी गोपालसिंह कुएं के बाहर न निकले तो उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ। वह खुद कुएं के अन्दर झांककर देखने लगी और उसी समय चौंककर माधवी से बोली -
माया - क्यों बहिन, आज ही तुमने भी देखा था कि इस कुएं में पानी कितना ज्यादा था!
माधवी - बेशक मैंने देखा था कि बीस हाथ से ज्यादे दूरी पर पानी नहीं है, तो क्या इस समय पानी कम जान पड़ता है?
माया - कम क्या मैं तो समझती हूं कि इस समय इसमें कुछ भी पानी नहीं है और कुआं सूखा पड़ा है।
माधवी - (ताज्जुब से) ऐसा नहीं हो सकता। एक पत्थर इसमें फेंककर देखो।
माया - आओ तुम ही देखो।
माधवी ने अपने हाथ से ईंट का टुकड़ा कुएं के अन्दर फेंका और उसकी आवाज पर गौर करके बोली -
माधवी - बेशक इसमें पानी कुछ भी नहीं है केवल कीचड़ मात्र है। तो क्या तुम नहीं जानतीं कि इसके अन्दर पानी के निकास का कोई रास्ता तथा आदमियों के आने-जाने के लिए कोई सुरंग या दरवाजा है या नहीं?
माया - मुझे एक दफे गोपालसिंह ने कहा था कि इस कुएं के नीचे एक तहखाना है जिसमें तरह-तरह के तिलिस्मी हर्बे और ऐयारी के काम की अपूर्व चीजें हैं।
माधवी - बेशक यही बात ठीक होगी और उन्हीं चीजों में से कुछ लाने के लिए गोपालसिंह गये होंगे।
माया - शायद ऐसा ही हो!
माधवी - तो बस इससे बढ़कर और कोई तर्कीब नहीं हो सकती कि यह कुआं पाट दिया जाय जिससे गोपालसिंह को फिर दुनिया का मुंह देखना नसीब न हो।
माया - निःसन्देह यह बहुत अच्छी राय है अस्तु जहां तक हो सके इसे कर ही देना चाहिए।
इस समय कुबेरसिंह की फौज टिड्डियों की तरह इस बाग में सब तरफ फैली हुई हुक्म का इन्तजार कर रही थी। माधवी ने अपनी राय भीमसेन और कुबेरसिंह से कही और उनकी आज्ञानुसार फौजी आदमियों ने जमीन खोदकर मिट्टी निकालने और कुआं पाटने में हाथ लगा दिया।
पहर रात जाते तक कुआं बखूबी पट गया और उस समय मायारानी के दिल में यह बात पैदा हुई कि अब मुझे गोपालसिंह का कुछ भी डर न रहा।
फौजी सिपाहियों को खुले मैदान बाग में पड़े रहने की आज्ञा देकर भीमसेन, कुबेरसिंह और माधवी तथा ऐयारों को साथ लिये हुए मायारानी अपने उस खास कमरे की छत पर बेफिक्री और खुशी के साथ चली गई जिसमें आज के कुछ दिन पहिले मालिकाना ढंग से रहती थी।