दूसरे दिन अपने मालूमी समय पर पुनः दोनों नकाबपोशों के आने की इत्तिला मिली। उस समय जीतसिंह, वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह, राजा गोपालसिंह, बलभद्रसिंह, इन्द्रदेव और बद्रीनाथ वगैरह अपने यहां के ऐयार लोग भी महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास बैठे हुए थे और उन्हीं नकाबपोशों के बारे में तरह-तरह की बातें हो रही थीं। आज्ञानुसार दोनों नकाबपोश हाजिर किये गये और फिर इस तरह बातचीत होने लगी -
तेज - (नकाबपोशों की तरफ देखकर) तारासिंह की जुबानी सुनने में आया कि भूतनाथ ने आपके दो आदमियों को ऐयारी करके गिरफ्तार कर लिया है।
एक नकाब - जी हां, हम लोगों को भी इस बात की खबर लग चुकी है मगर कोई चिन्ता की बात नहीं है। गिरफ्तार होने और बेइज्जती उठाने पर भी वे दोनों भूतनाथ को किसी तरह की तकलीफ न देंगे और न भूतनाथ ही किसी तरह की तकलीफ उन्हें दे सकेगा। यद्यपि उस समय भूतनाथ ने उन दोनों को नहीं पहिचाना मगर जब उनका परिचय पायेगा और पहिचानेगा तो उसे बड़ा ही ताज्जुब होगा। जो हो मगर भूतनाथ को ऐसा करने की जरूरत न थी। ताज्जुब है कि ऐसे फजूल के कामों में भूतनाथ का जी क्योंकर लगता है। ऐयारी करके जिस समय भूतनाथ ने दोनों को गिरफ्तार किया था उस समय उन दोनों की सूरत देखने के साथ ही छोड़ देना चाहिए था क्योंकि एक दफे भूतनाथ इस दरबार में उन दोनों सूरतों को देख चुका था और जानता था कि आखिर इन दोनों का हाल मालूम होगा ही। अब दोनों को गिरफ्तार करके ले जाने से भूतनाथ की बेचैनी कम न होगी बल्कि और ज्यादे बढ़ जायगी।
तेज - हां, हम लोगों ने भी यही सुना था कि जिन सूरतों को देखकर मायारानी का दारोगा और जैपाल बदहवास हो गये थे उन्हीं दोनों को भूतनाथ ने गिरफ्तार किया है।
नकाब - जी हां, ऐसा ही है।
तेज - तो क्या वे दोनों स्वयं इस दरबार में आये थे या आप लोगों ने उन दोनों के जैसी सूरत बनाई थी?
नकाब - जी वे लोग स्वयं यहां नहीं आये थे बल्कि हम ही दोनों उन दोनों की तरह की सूरत बनाए हुए थे। दारोगा और जैपाल इस बात को समझ न सके।
तेज - असल में दोनों कौन हैं जिन्हें भूतनाथ ने गिरफ्तार किया है?
नकाब - (कुछ सोचकर) आज नहीं, अगर हो सकेगा तो दो-एक दिन में मैं आपको इस बात का जवाब दूंगा क्योंकि इस समय हम लोग ज्यादा देर तक यहां ठहरना नहीं चाहते। इसके अतिरिक्त सम्भव है कि कल तक भूतनाथ भी उन दोनों को लिये हुए यहीं आ जाय। अगर वह अकेला ही आवे तो हुक्म दीजियेगा कि उन दोनों को भी यहां ले आये। उस समय कम्बख्त दारोगा और जैपाल के सामने उन दोनों का हाल सुनने से आप लोगों को विशेष आनन्द मिलेगा। मैं भी... (कुछ रुककर) मौजूद ही रहूंगा, जो बात समझ में न आवेगी समझा दूंगा। (कुछ रुककर) हां, भैरोसिंह और तारासिंह के विषय में क्या आज्ञा होती है क्या आज वे दोनों हमारे साथ भेजे जायंगे क्योंकि इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को उन दोनों के बिना सख्त तकलीफ है।
सुरेन्द्र - हां, भैरो और तारा तुम दोनों के साथ जाने के लिए तैयार हैं।
इतना कहकर महाराज ने भैरोसिंह और तारासिंह की तरफ देखा जो उसी दरबार में बैठे हुए नकाबपोशों की बातें सुन रहे थे। महाराज को अपनी तरफ देखते देख दोनों भाई उठ खड़े हुए और महाराज को सलाम करने के बाद दोनों नकाबपोशों के पास आकर बैठ गए।
नकाब - (महाराज से) तो अब हम लोगों को आज्ञा मिलनी चाहिए।
सुरेन्द्र - क्या आज दोनों लड़कों का हाल हम लोगों को न सुनाओगे?
नकाब - (हाथ जोड़कर) जी नहीं, क्योंकि देर हो जाने से आज भैरोसिंह और तारासिंह को इन्द्रजीतसिंह के पास हम लोग पहुंचा न सकेंगे।
सुरेन्द्र - खैर क्या हर्ज है, कल तो तुम लोगों का आना होगा ही।
नकाब - अवश्य।
इतना कहकर दोनों नकाबपोश उठ खड़े हुए और सलाम करके बिदा हुए। भैरोसिंह और तारासिंह भी उनके साथ रवाना हुए।