भूतनाथ के बेहोश हो जाने पर दोनों नकाबपोशों ने भूतनाथ के साथियों में से एक को पानी लाने के लिए कहा और जब वह पानी ले आया तो उस नकाबपोश ने जिसने अपने को दलीपशाह बताया था अपने हाथ से भूतनाथ को होश में लाने का उद्योग किया। थोड़ी ही देर में भूतनाथ चैतन्य हो गया और नकाबपोश की तरफ देखकर बोला, ''मुझसे बड़ी भारी भूल हुई जो आप दोनों को फंसाकर यहां ले आया! आज मेरी हिम्मत बिल्कुट टूट गई और मुझे निश्चय हो गया कि अब मेरी मुराद पूरी नहीं हो सकती और मुझे लाचार होकर अपनी जान दे देनी पड़ेगी।''
नकाब - नहीं-नहीं, भूतनाथ, तुम ऐसा मत सोचो, देखो हम कह चुके हैं और तुम्हें मालूम भी हो चुका है कि हम लोग तुम्हारे ऐबों को खोला नहीं चाहते बल्कि राजा वीरेन्द्रसिंह से तुम्हें माफी दिलाने का बन्दोबस्त कर रहे हैं। फिर तुम इस तरह हताश क्यों होते हो होश करो और अपने को सम्हालो।
भूत - ठीक है, मुझे इस बात की आशा हो चली थी कि मेरे ऐब छिपे रह जायेंगे और मैं इसका बन्दोबस्त भी कर चुका था कि वह पीतल वाली सन्दूकड़ी खोली न जाय मगर अब वह उम्मीद कायम नहीं रह सकती क्योंकि मैं अपने दुश्मन को अपने सामने मौजूद पाता हूं।
नकाब - बड़े ताज्जुब की बात है कि दरबार में हम लोगों की कैफियत देख-सुनकर भी तुम हमें अपना दुश्मन समझते हो! यदि तुम्हें मेरी बातों का विश्वास न हो तो मैं तुम्हें इजाजत देता हूं कि खुशी से मेरा सिर काटकर पूरी दिलजमई कर लो और अपना शक भी मिटा लो। तब तो तुम्हें अपने भेदों के खुलने का भय न रहेगा
भूत - (ताज्जुब से नकाबपोश की सूरत देखकर) दलीपशाह, वास्तव में तुम बड़े ही दिलावर शेर-मर्द, रहमदिल और नेक आदमी हो। क्या सचमुच तुम मेरे कसूरों को माफ करते हो?
नकाब - हां-हां, मैं सच कहता हूं कि मैंने तुम्हारे कसूरों को माफ कर दिया बल्कि दो रईसों के सामने इस बात की कसम खा चुका हूं।
भूत - वे दोनों रईस कौन हैं?
नकाब - जिनके कब्जे में इस समय हम लोग हैं और जो नित्य महाराज साहब के दरबार में आया करते हैं।
भूत - क्या राजा साहब के दरबार में जाने वाले नकाबपोश कोई दूसरे हैं, आप नहीं, या उस दिन दरबार में आप नहीं थे जिस दिन आपकी सूरत देखकर जैपाल घबड़ाया था?
नकाब - हां बेशक वे नकाबपोश दूसरे हैं और समय-समय पर नकाब डालने के अतिरिक्त सूरतें भी बदलकर जाया करते हैं। उस दिन वे हमारी सूरत बनकर दरबार में गए थे।
भूत - वे दोनों कौन हैं?
नकाब - यही तो एक बात है जिसे हम लोग खोल नहीं सकते, मगर तुम घबड़ाते क्यों हो जिस दिन उनकी असली सूरत देखोगे खुश हो जाओगे, तुम ही नहीं बल्कि कुल दरबारियों को और महाराज साहब को भी खुशी होगी क्योंकि वे दोनों नकाबपोश कोई साधारण व्यक्ति नहीं।
भूत - मेरे इस भेद को वे दोनों जानते हैं या नहीं?
नकाब - फिर तुम उसी तरह की बातें पूछने लगे।
भूत - अच्छा अब न पूछूंगा मगर अंदाज से मालूम होता है कि जब आप उनके सामने भेद छिपाने की कसम खा चुके हैं तो वे इस भेद को जानते जरूर होंगे। खैर जब आप कहते ही हैं कि मेरा भेद छिपा रह जायगा तो मुझे घबड़ाना न चाहिए। मगर मैं फिर यही कहूंगा कि आप दलीपशाह नहीं हैं।
नकाब - (खिलखिलाकर हंसने के बाद) तब तो फिर मुझे कुछ और कहना पड़ेगा। वाह, तुम्हारी स्त्री बड़ी नेक थी, जो कुछ तुमने उसके सामने किया...?
भूत - (नकाबपोश के मुंह पर हाथ रखकर) बस-बस-बस, मैं कुछ भी सुना नहीं चाहता, यह कैसी माफी है कि आप अपनी जुबान नहीं रोकते!
इतने ही में पत्थरों की आड़ में से एक आदमी निकलकर बाहर आया और यह कहता हुआ भूतनाथ के सामने खड़ा हो गया, ''तुम उन्हें भले ही रोक दो मगर मैं उन बातों की याद दिलाए बिना नहीं रह सकता!''
हम नहीं कह सकते कि इस नए आदमी को यहां आए कितनी देर हुई या यह कब से पत्थरों की आड़ में छिपा हुआ इन दोनों की बातें सुन रहा था, मगर भूतनाथ उसे यकायक अपने सामने देखकर चौंक पड़ा और घबड़ाहट तथा परेशानी के साथ उसकी सूरत देखने लगा। यह देख उस आदमी ने जान-बूझकर रोशनी के सामने अपनी सूरत कर दी जिससे पहिचानने के लिए भूतनाथ को तकलीफ न करनी पड़े। यह वही आदमी था जिसे भूतनाथ ने नकाबपोशों के मकान में सूराख के अंदर से झांककर देखा था और जिसने नकाबपोशों के सामने एक बड़ी-सी तस्वीर पेश करके कहा था कि 'कृपानाथ, बस मैं इसी का दावा भूतनाथ पर करूंगा।'
इस आदमी को देखकर भूतनाथ पहिले से भी ज्यादे घबड़ा गया। उसके बदन का खून बर्फ की तरह जम गया और उसमें हाथ-पैर हिलाने की ताकत बिल्कुल न रही। उस आदमी ने पुनः कड़ककर भूतनाथ से कहा, ''ये नकाबपोश साहब तुम्हारी बात मानकर चाहे चुप रह जायं मगर मैं उन बातों को अच्छी तरह याद दिलाए बिना न रहूंगा जिन्हें सुनने की ताकत तुममें नहीं है। अगर तुम इनको दलीपशाह नहीं मानते तो मुझे दलीपशाह मानने में तुम्हें कोई उज्र भी न होगा।''
भूतनाथ यद्यपि आश्चर्यमय घटनाओं का शिकार हो रहा था और एक तौर पर खौफ, तरद्दुद, परेशानी और नाउम्मीदी ने उसे चारों तरफ से आकर घेर लिया था मगर फिर भी उसने कोशिश करके अपने होश-हवास दुरुस्त किये और उस नए आये दलीपशाह की तरफ देखकर कहा, ''बहुत खासे! एक दलीपशाह ने तो परेशन ही कर रक्खा था अब आप दूसरे दलीपशाह भी आ पहुंचे! थोड़ी देर में कोई तीसरे दलीपशाह भी आ जायेंगे, फिर मैं काहे को किसी से दो बातें कर सकूंगा। (पुराने दलीपशाह की तरफ देखकर) अब बताइये दलीपशाह आप हैं या ये?'
पुराना दलीप - तुम इतने ही में घबड़ा गये! हमारे यहां जितने नकाबपोश हैं सभी अपना नाम दलीपशाह बताने के लिए तैयार होंगे, मगर तुम्हें अपनी अक्ल से पहिचानना चाहिए कि वास्तव में दलीपशाह कौन है।
भूत - इस कहने का मतलब तो यही है कि आप लोग सच नहीं बोलते?
पुराना दलीप - जो बातें हमने तुमसे कहीं क्या वे झूठ हैं?
नया दलीप - या मैं जो कुछ कहूंगा वह झूठ होगा! अच्छा सुनो मैं एक दिन का जिक्र करता हूं जब तुम ठीक दोपहर के समय उसी पीतल वाली सन्दूकड़ी को बगल में छिपाये रोहतासगढ़ की तरफ भागे जा रहे थे। जब तुम्हें प्यास लगी तब तुम एक ऊंचे जगत वाले कुएं पर पानी पीने के लिए ठहर गये जिस पर एक पुराने नीम के पेड़ की सुन्दर छाया पड़ रही थी। कुएं की जगत में नीचे की तरफ एक खुली कोठरी थी और उसमें एक मुसाफिर गर्मी की तकलीफ मिटाने की नीयत से लेटा हुआ तुम्हारे ही बारे में तरह-तरह की बातें सोच रहा था। तुम्हें उस आदमी के वहां मौजूद रहने का गुमान भी न था मगर उसने तुम्हें कुएं पर जाते हुए देख लिया, अस्तु वह इस फिक्र में पड़ गया कि तुम्हारी छोटी-सी गठरी में क्या चीज है, इसे मालूम करे और अगर उसमें कोई चीज उसके मतलब की हो तो उसे निकाल ले। उस समय उस आदमी की सूरत ऐसी न थी कि तुम उसे पहिचान सकते बल्कि वह ठीक एक देहाती पंडित की सूरत में था क्योंकि वह वास्तव में एक ऐयार था, अस्तु वह हाथ में लोटा लिये हुए कोठरी के बाहर निकला और उस ठिकाने गया जहां तुम कुएं में झुककर पानी खींच रहे थे। तुम्हें इस बात का गुमान भी न था कि वह तुम्हारे साथ दगा करेगा मगर उसने पीछे से तुम्हें ऐसा धक्का दिया कि तुम कुएं के अन्दर जा रहे और उसने तुम्हारे ऐयारी के बटुए पर कब्जा करके जो कुछ अन्दर था उसे अच्छी तरह देख और समझ लिया बल्कि कुछ ले भी लिया। क्या तुम्हें आज तक मालूम भी हुआ कि वह कौन था?
भूत - (ताज्जुब से) नहीं, मैं अभी तक न जान सका कि वह कौन था, मगर इन बातों के कहने से तुम्हारा मतलब ही क्या है?
नया दलीप - मतलब यही है कि तुम जान जाओ कि इस समय वह आदमी तुम्हारे सामने खड़ा है।
भूत - (क्रोध से खंजर निकालकर) क्या वह तुम ही थे?
नया दलीप - (खंजर का जवाब खंजर ही से देने के लिए तैयार होकर) बेशक मैं ही था और मैंने तुम्हारे बटुए में क्या - क्या देखा सो भी इस समय बयान करूंगा।
पहिला दलीप - (भूतनाथ को डपटकर) बस खबरदार, होश में आओ और अपनी करतूतों पर ध्यान दो। हमने पहिले ही कह दिया था कि तुम क्रोध में आकर अपने को बर्बाद कर दोगे। बेशक तुम बर्बाद हो जाओगे और कौड़ी काम के न रहोगे, साथ ही इसके यह भी समझ रखना कि तुम दलीपशाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते और न उसे तुम्हारे तिलिस्मी खंजर की परवाह है।
भूत - मैं आपसे किसी तरह तकरार नहीं करता मगर इसको सजा दिये बिना भी न रहूंगा क्योंकि इसने मेरे साथ दगा करके मुझे बड़ा नुकसान पहुंचाया है और यही वह शख्स है जो मुझ पर दावा करने वाला है, अस्तु हमारे-इसके बीच इसी जगह सफाई हो जाय तो बेहतर है।
पहिला दलीप - खैर जब तुम्हारी बदकिस्मती आ ही गई है तो हम कुछ नहीं कह सकते, तुम लड़के देख लो और जो कुछ बदा है भोगो, मगर साथ ही इसके यह भी सोच लो कि तुम्हारे तरह इसके और मेरे हाथ में भी तिलिस्मी खंजर है और इन खंजरों की चमक में तुम्हारे आदमी तुम्हें कुछ भी मदद नहीं पहुंचा सकते।
भूत - (कुछ सोचकर और रुकके) तो क्या आप इसकी मदद करेंगे
पहिला दलीप - बेशक!
भूत - आप तो मेरे सहायक हैं?
पहिला दलीप - मगर इतने नहीं कि अपने साथियों को नुकसान पहुंचावें।
भूत - आखिर ये जब मुझे नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार है तो क्या किया जाय?
पहिला दलीप - इनसे भी माफी की उम्मीद करो क्योंकि हम लोगों के सरदार तुम्हारे पक्षपाती हैं।
भूत - (खंजर म्यान में रखकर) अच्छा अब हम आपकी मेहरबानी पर भरोसा करते हैं, जो चाहे कीजिये।
पहिला दलीप - (नये दलीप से) आओ जी, तुम मेरे पास बैठ जाओ।
नया दलीप - मैं तो इससे लड़ता ही नहीं मुझे क्या कहते हो लो मैं तुम्हारे पास बैठ जाता हूं, मगर यह तो बताओ कि अब इसी भूतनाथ के कब्जे में पड़े रहोगे या यहां से चलोगे भी
पहिला दलीप - (भूतनाथ से) कहो अब मेरे साथ क्या सलूक किया चाहते हो तुम्हें मुनासिब तो यही है कि हमें कैद करके दरबार में ले चलो।
भूत - नहीं मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है बल्कि आप मुझे माफी की उम्मीद दिलाइये तो मैं यहां से चला जाऊं।
पहिला दलीप - हां तुम माफी की उम्मीद कर सकते हो, मगर इस शर्त पर कि अब हम लोगों का पीछा न करोगे!
भूत - नहीं, अब ऐसा न करूंगा। चलिए मैं आपको आपके ठिकाने पहुंचा दूं।
नया दलीप - हमें अपना रास्ता मालूम है। किसी मदद की जरूरत नहीं।
इतना कहकर नया दलीपशाह उठ खड़ा हुआ और साथ ही वे दोनों नकाबपोश भी, जिन्हें भूतनाथ बेहोश करके लाया था, उठे और अपने मकान की तरफ चल पड़े।