त्वचा के रंग में बदलाव-

          गर्भधारण करते ही स्त्री के शरीर के कुछ अंग अधिक गहरे रंग के हो जाते हैं जैसे- एक रेखा नाभि और भग के ऊपर दिखाई पड़ने लगती है। स्तन के निप्पल के किनारों का रंग भी पीले रंग से परिवर्तित होकर भूरे रंग का हो जाता है। स्त्री के शरीर में यह बदलाव उत्तेजित द्रव (हार्मोन्स) के बदलाव के कारण होता है तथा शरीर के अन्य निशान भी गहरे रंग के हो जाते हैं।

स्तनों में परिवर्तन-

          गर्भावस्था के दौरान स्तनों के आकार में वृद्धि होने लगती है और उनमें दर्द होना भी शुरू हो जाता है। स्तनों में यह दर्द लगभग 4 से 5 महीनों तक होता है। निप्पल के किनारे के रंग में भी बदलाव आ जाता है। यह परिवर्तन कुछ स्त्रियों में हमेशा के लिए हो जाता है। स्तनों के आकार में वृद्धि और वजन बढ़ना गर्भधारण के बाद स्त्रियों में मुख्य बदलाव होता है।
नाखून-

          गर्भावस्था में कैल्शियम की कमी हो जाने के कारण स्त्री के नाखूनों में दरारें, नाखूनों का फटना, चमक कम होना तथा नाखूनों का टूटना आदि शुरू हो जाता है। इसके साथ-साथ नाखूनों पर नाखून पालिश का प्रयोग करते हैं तो उस समय नाखूनों को हवा भी मिलनी बन्द हो जाती है। इसके कारण नाखूनों का रंग मटमैला होने लगता है। गर्भावस्था में नाखूनों पर नाखून पालिश का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा कैल्शियम युक्त भोजन का अधिक मात्रा में उपयोग करना चाहिए। इसके साथ ही नाखूनों पर ओलिव आयल का प्रयोग करना चाहिए जो नाखूनों को मजबूत और चमकदार बनाता है। इस क्रिया को गर्भावस्था के प्रारम्भ में शुरू कर देने से लाभ होता है।

बालों में परिवर्तन-

          गर्भावस्था में हार्मोन्स के कारण स्त्री के बाल सूखे और सफेद हो जाते हैं। इस दौरान बालों का न बढ़ना, बालों की नोंक पर बालों का दो मुंह में बंट जाना और बालों का झड़ना, जिससे बाल रूखे हो जाते हैं और बढ़ने की क्षमता को खो देते हैं। इस कारण बालों पर अच्छे शैम्पू और तेल का प्रयोग करना चाहिए। बालों में अधिक कंघी करने से बाल टूट भी सकते हैं। बालों को उलझने नहीं देना चाहिए। इन्हे हल्के ब्रश से धीरे-धीरे संवारना चाहिए। इन बातों पर दूसरी या तीसरी गर्भावस्था के दौरान अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए।

दांत और मसूड़ों में परिवर्तन-

          गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों में अक्सर मसूड़ों का फूलना और दांतों में दर्द का होना जैसे लक्षण सामने आते हैं। इनके कारण दांतों में अन्य बीमारियों का जन्म होता है। अधिक मीठे खाद्य-पदार्थों का सेवन करने वाली स्त्री में यह लक्षण अधिक नजर आते हैं। इसलिए दांतों की सफाई और मसूड़ों की मालिश नियमित रूप से करनी चाहिए। फिटकरी के पानी से मुंह को एक बार अवश्य धोना चाहिए। दांतों को साफ करने वाला ब्रश आकार में छोटा और मुलायम होना चाहिए जो आसानी से मुंह के चारों ओर घूम सके और दांतों के कोने-कोने तक जाकर सफाई कर सके। दांतो की ऊपरी परत जिसे इनैमिल कहते हैं वह भी खराब हो सकती है तथा दांतो में सुराख भी बन सकते हैं। दांतो में सुराख कैल्शियम की कमी तथा हार्मोन्स के बदलाव के कारण होता है।

          दांतो को अभी भी हमारे देश में नीम, कीकर, बबूल आदि की दातुन से साफ किया जाता है जो कि दांतों के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। आम के पत्तों के बारीक चूर्ण से भी दांतों की सफाई करना लाभकारी होता है।  

          गर्भाशय में जब बच्चे का शरीर बनना शुरू होता है तो सबसे पहले बच्चा मां के शरीर से कैल्शियम लेता है। जिसके कारण मां के शरीर में अचानक कैल्शियम की कमी हो जाती है। यह कमी मुख्यत: मां की हडि्डयों और दांतों में होती है। इस कारण दांतों के साथ-साथ मां के मसूड़ों को भी हानि होती है। अधिक कैल्शियम की कमी के कारण मां को ओस्टोमलेशिया नामक रोग हो जाता है। यह वह रोग है जिसमें हडि्डयां मुलायम होकर मुड़ जाती है।  

          गर्भावस्था में कैल्शियम युक्त भोजन का अधिक से अधिक मात्रा में उपयोग करना चाहिए तथा दांतों के डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

          जिनजीवईटिस रोग मसूड़ों का वह रोग है जिसमें मसूडे़ सूज जाते हैं और दर्द उत्पन्न करते हैं। अधिक रक्त का संचार होने के कारण भोजन ही इनमें घाव उत्पन्न कर देता है जिसे रक्त निकलना शुरू हो जाता है।

          गर्भवती स्त्रियों के शरीर में कैल्शियम की कमी के कारण तथा हार्मोन्स के बदलाव के कारण मसूडे़ और दांतों के बीच की झिल्ली की पकड़ दांतों से हट जाने के कारण यह रोग दांतों की जड़ों तक पहुंच जाता है तथा दांत दर्द करने लगते हैं और दांतों में गड्ढे भी बन जाते हैं।

दांतों की देखभाल-

1. गर्भवती स्त्रियों को प्रतिदिन तीन बार दांतों को साफ करना चाहिए। रात को सोते समय भी दांतों को अवश्य ही साफ करना चाहिए।

2. दांतों को साफ करने वाला ब्रश, घूमने वाला और छोटे सिरे का होना चाहिए। ब्रश को दांतों के कोने-कोने तक ले जाकर दांतों की अच्छी प्रकार से सफाई करनी चाहिए।

3. ब्रश को जब भी उपयोग करें तो वह सूखा होना चाहिए।

4. दांतों के लिए किसी भी प्रकार का अच्छे पेस्ट का प्रयोग कर सकते हैं यदि फ्लोराइड हो तो अधिक अच्छा होगा।

5. डांक्टर की सलाह के बिना फ्लोराइड की गोलियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

6. अगर मसूड़ों में सूजन और दर्द हो तो फिटकरी के पानी से मसूड़ों को साफ करना चाहिए।

7. भोजन करने के बाद यदि दांतों के बीच में अन्न के दानें फंस जाए तो दांतों में डोरा डालकर फंसा हुआ भोजन निकालना चाहिए।

गर्भावस्था में पेट का बढ़ना-

        गर्भावस्था में पेट का बढ़ना आम बात मानी जाती है। लेकिन कुछ स्त्रियों के पेट इस अवस्था में अधिक बड़े और भारी हो जाते हैं। कुछ स्त्रियों में कम या कुछ में कुछ महीने तक पेट का आकार बिल्कुल ही सामान्य रहता है। गर्भवती स्त्रियों में पेट का बढ़ना उनके कार्य, शरीर की बनावट और मांसपेशियों पर निर्भर करता है। इस कारण से बच्चे का बड़ा या छोटा होना, मांसपेशियों और एमनीओटिक द्रव पर निर्भर करता है। इसलिए गर्भावस्था में पेट के आकार को लेकर स्त्रियों को बिल्कुल भी परेशान नहीं होना चाहिए।

त्वचा पर निशानों का होना-

        गर्भधारण करने के बाद स्त्रियों के पेट, कूल्हे, जांघों या फिर छाती आदि में त्वचा के ऊपर निशान दिखाई पड़ने लगते हैं। ये निशान त्वचा के खिंचाव के कारण होते हैं। त्वचा में खिंचाव वाले तन्तु होते हैं। परन्तु जब यह अधिक खिंच जाते हैं तो उसके कारण त्वचा पर सफेद या भूरे रंग के दाग दिखाई पड़ने लगते हैं। यह दाग भी कुछ स्त्रियों में अधिक और कुछ में कम होते हैं। स्त्रियों के शरीर के दाग उनके कार्य, निवास स्थान और भोजन पर निर्भर करते हैं। दाग के उपचार हेतु शरीर पर ओलिव आयल और विटामिन `ई` युक्त तेल प्रयोग करना चाहिए। स्त्रियों को अपनी त्वचा की देखरेख गर्भधारण के प्रारम्भ से ही करनी चाहिए।

मोजे-

        गर्भवती स्त्रियां अपने पैरों में छोटे मोजें, घुटनों तक मोजें या जांघों तक मोजे पहन सकती है। इन मोजों का ऊपरी भाग यदि नायलोन या इलास्टिक का बना हो तो इसे पहनना हानिकारक हो सकता है। इसके कारण गर्भवती स्त्रियों के रक्त के संचार में कमी हो जाती है तथा नीचे के स्थान पर (वेरीकोस वेन) रक्त की उभरी हुई नलिकाएं दिखाई पड़ने लगती हैं। इस कारण स्त्रियों को छोटे सूती के मोजें पहनने चाहिए या फिर मोजों के ऊपरी भाग नायलोन या इलास्टिक के नहीं होने चाहिए।

पैंटी-

        गर्भावस्था के दौरान स्त्रियां हमेशा की तरह पैंटी पहन सकती हैं। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि जैसे-जैसे स्त्री का शरीर बढ़ता जाता है वैसे-वैसे उसके पहने हुए कपडे़ छोटे पड़ने लगते हैं। इस प्रकार उसकी जांघों और पेट पर अधिक दबाव पड़ सकता है। नाइलोन और पोलिस्टर के कपडे़ अधिक हानिकारक हो सकते हैं। यह स्वाभाविक है कि इन स्थानों पर मौसम के अनुसार पसीना भी अधिक आता है। इस कारण खुजलीऔर जलन होने की अधिक संभावना होती है। इसलिए पहनने में सूती कपड़ों का ही उपयोग करना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान तरल पदार्थ भी योनि से निकलता है। इस कारण जो भी कपड़े पहने वे सूती कपड़े और साफ होने चाहिए तथा पहने हुए कपड़े शरीर में कुछ ढीले होने चाहिए।

गर्भावस्था के दौरान स्नान-

          गर्भवती स्त्रियों के लिए प्रतिदिन स्नान करना और स्वच्छता रखना आवश्यक होता है। स्नान के समय पानी अधिक गर्म नहीं होना चाहिए तथा देर तक स्नान भी नहीं करना चाहिए। स्नान करते समय ध्यान रखना चाहिए कि कहीं आप का पैर फिसल न जाए, क्योंकि फिसलकर गिर जाने के कारण स्त्री को चोट लग सकती है। गर्भ में पल रहे बच्चे को हानि हो सकती है।

योनि से तरल पदार्थ का आना-

          गर्भावस्था में योनि से तरल पदार्थ का आना एक स्वाभाविक क्रिया होती है। योनि के रास्ते में कई ऐसी ग्रन्थियां होती हैं जिनसे अधिक द्रव और चिकनाईयुक्त पदार्थ निकलता है। इस चिकनाईयुक्त तरल पदार्थ के निकलने से बच्चेदानी का द्वार साफ और चिकना हो जाता है जिससे बच्चे के जन्म के समय अधिक कष्ट नहीं होता है। यदि योनि से निकलने वाले तरल पदार्थ में बदबू आने लगे, या तरल पदार्थ का रंग पीला, हरा हो जाए या शरीर में अधिक खुजली हो तो समझना चाहिए कि कोई रोग उत्पन्न हो गया है। इसके लिए डाक्टर की राय अवश्य लेनी चाहिए। गर्भावस्था के 9 महीने पूरे होने पर यदि लाल रंग का चिकनाईयुक्त तरल पदार्थ योनि से निकल रहा हो तो समझ लेना चाहिए कि प्रसव का समय निकट ही है।

गर्भवती स्त्री के शरीर में रक्त की कमी (एनीमिया)-

          रक्त ही जीवन होता है। गर्भाशय में बच्चे को आक्सीजनयुक्त रक्त पहुंचाने का कार्य रक्त में लालकोशिकाओं का होता है। यदि शरीर में रक्त 9 ग्राम प्रति सौ सी. सी. से कम हो जाए तो उस स्त्री को एनीमिक कहते हैं। इसके लिए गोलियां या फिर पीने की दवाइयां लेना अनिवार्य होता है। परन्तु कुछ डाक्टर यह देखते हैं कि बच्चे का बढ़ना ठीक नहीं है और बच्चे के जन्म का समय निकट है तो इंजेक्शन द्वारा रक्त की कमी को शीघ्र ही दूर किया जा सकता है। ऐसी अवस्था में हमें भोजन में उन पदार्थों का सेवन करना चाहिए जिनमें लौह पदार्थ अधिक मात्रा में पाये जाते हों जैसे- पालक, सरसों, बन्द गोभी, गांठगोभी, धनिया, पोदीना, गुड़, किशमिश आदि। रक्त की कमी से स्त्री के शरीर में सूजन का आ जाना, सांस फूलने लगना, कमजोरी, किसी कार्य को करने में मन का न लगना, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा, थकान आना आदि प्रमुख लक्षण होते हैं। इस दौरान विशेष ध्यान देना चाहिए कि रक्त की कमी वाली स्त्री को अपना वजन सन्तुलित रखना चाहिए क्योंकि वजन बढ़ने से अधिक आक्सीजनयुक्त रक्त की आवश्यकता होती है।

मल-

          गर्भावस्था में स्त्री का मल सामान्य होना जरूरी होता है। इस कारण स्त्री का भोजन हल्का और सामान्य होना चाहिए जिससे भोजन का शीघ्र पाचन हो सके। मल को ठीक रखने का एक ही साधारण नियम है अधिक पानी का सेवन करना। अधिक पानी पीने से मूत्र अधिक अधिक आता है। इससे महिलाओं को कब्ज की शिकायत भी नहीं होती है। इसके साथ-साथ भोजन में हरे पत्ते वाली सब्जियां और फल नियमित रूप से प्रयोग करना चाहिए।

          इसके बाद भी यदि कब्ज की शिकायत दूर न हो तो डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

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