परिचय-

          यदि बच्चे का जन्म 37 सप्ताह से पहले हो जाए तो उसे प्रिमैच्ययोर बच्चा कहते हैं। पहले यह मान्यता थी कि जिस बच्चे का जन्म के समय वजन 2.5 किलोग्राम या इससे कम हो तो उस बच्चे को प्रिमैच्ययोर कहते हैं परन्तु आजकल समय से पहले बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम तथा गर्भावस्था का समय 37 सप्ताह से कम हो तो वह प्रिमैच्ययोर कहलाता है।

        कभी-कभी ऐसा भी होता है कि 38 सप्ताह का बच्चा 2.5 किलोग्राम का होता है तथा 36 सप्ताह के बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम से अधिक होता है।

        बच्चे का जन्म समय से पहले होने का मुख्य कारण बच्चे में या मां में कोई कमी होता है। जैसे गर्भावस्था में स्त्री को सन्तुलित आहार न मिल पाना, आर्थिक कारण, चिन्ता, पारिवारिक उलझनें, स्त्रियों का गर्भावस्था के समय स्वास्थ्य के प्रति न ध्यान देना, शरीर में रक्त की कमी होना, कम उम्र में गर्भवती होना, दो बच्चों के जन्म के समय में अन्तर न होना, स्मोकिंग, नशे की आदत होना, कमजोर स्त्रियों में प्रसव के बाद अधिक रक्तस्राव होना, दो या दो से अधिक बच्चों का होना, समय पूरा होने से पहले प्रसव का दर्द होना तथा स्त्रियों के शरीर की अन्य बीमारियों जैसे पीलिया, तेज बुखार, टायफाइड और खसरा आदि बीमारियों का होना। स्त्रियों के शरीर में अन्य विभिन्न रोग भी सकते हैं जिनमें बच्चेदानी की रसौली का होना मुख्य रोग है। मूत्राशय की थैली के रोगों के कारण भी समय से पहले बच्चे का जन्म हो सकता है। गर्भावस्था में चोट लगने और एमनीओटिक थैली के फट जाने के कारण या बच्चेदानी में कोई रोग होने के कारण समय से पूर्व बच्चे का जन्म हो सकता है।  

        कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एमनीओटिक थैली ठीक रहती है परन्तु किसी कारणवश बच्चेदानी का मुंह लगभग 3 सेमी चौड़ा हो जाता है तो ऐसी स्थिति में भी बच्चे का जन्म समय से पहले हो सकता है। यदि बच्चेदानी का मुंह 3 सेमी से कम चौड़ा हो तो दवाईयों के आदि के सेवन से बच्चे के समय से पहले जन्म होने को रोका जा सकता है। कभी-कभी दवाईयों आदि के सेवन करने के कारण भी बच्चे का जन्म गर्भावस्था की अवधि पूरी हो जाने से पहले हो सकता है।  

        जिन बच्चों का जन्म गर्भावस्था का समय पूर्ण हो जाने से पहले हो जाता है, उनके फेफड़े पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं। ऐसे बच्चों के शरीर में स्वयं इतना सामर्थ्य नहीं होता है कि वे हवा लेकर अपने फेफड़ों को फुला सके। इस वजह से बच्चे को सांस लेने में परेशानी होती है जिसके कारण बच्चे की मृत्यु हो सकती है। ऐसे बच्चों के जन्म लेते ही उन्हें हॉस्पिटलों में मशीनों द्वारा ऑक्सीजन दी जाती है।

        गर्भावस्था का समय पूरा होने से पहले पैदा होने वाले बच्चे के सिर की हडि्डयां पूरी तरह से नहीं बन पाती हैं तथा ये हडि्डयां मुलायम रह जाती है। इसके कारण प्रसव के समय बच्चे के सिर में धक्का या चोट लगना बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसे बच्चों के जन्म के समय औजारों को उपयोग करने से बच्चे को हानि पहुंच सकती है। प्रसव के समय मां के अधिक जोर लगाने से बच्चे के मस्तिष्क में चोट लग सकती है। जिसके कारण प्रसव के समय योनि को काटना भी पड़ सकता है। बेहोशी के समय भी ध्यान देना चाहिए कि कहीं बेहोशी बच्चे की दिल की धड़कनों और सांस को कमजोर न कर दे। कभी-कभी तो छोटा बच्चा जिसका जन्म उल्टा होता है, उसके जन्म के लिए ऑपरेशन करना पड़ सकता है।  

        गर्भावस्था का समय पूरा होने से पहले पैदा होने वाले बच्चे का रंग लाल होता है, उसकी त्वचा में झुर्रियां होती है, चेहरे और शरीर बालों अधिक होते हैं, शरीर छोटा होता है, सिर की हडि्डयां कमजोर होती है, आंखें छोटी और बन्द होती है, गुप्तांग छोटे होते हैं, दूध चूसने की शक्ति कमजोर होती है तथा बच्चा शरीर के तापमान को नहीं बना पाता है। ऐसे बच्चे का शरीर बार-बार ठंडा हो जाता है और सांस लेने की शक्ति कमजोर हो जाती है क्योंकि ऐसे बच्चे के फेफड़े पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते हैं। ऐसे बच्चे की सांस लेने वाली मांसपेशियां कमजोर होती है। ऐसा बच्चा कमजोर होने के कारण विभिन्न रोगों से पीड़ित रहता है और ज्यादातर समय तक सोता रहता है।

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