परिचय-

          अक्सर होता है कि गर्भ ठहरने के कुछ समय बाद स्त्रियां अपना नाम प्रसव कराने के लिए किसी अस्पताल या प्राइवेट नर्सिंग होम में दर्ज करा लेती है या फिर किसी दाई आदि से बात करके रखती है कि डाक्टर ने इस दिन की बच्चे के जन्म की तारीख दे रखी है। लेकिन कभी ऐसा हो कि अचानक ही प्रसव का दर्द उठने लगे या अस्पताल आदि ले जाने से पहले ही बच्चा पैदा होने लगे तो ऐसी हालत में घबराना नहीं चाहिए बल्कि तसल्ली से काम लेना चाहिए।

ऐसी अवस्था पैदा होने पर निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए और इस प्रकार से करना चाहिए-

    सबसे पहले एक बिस्तर का इंतजाम कर लेना चाहिए जो कि बिल्कुल भी गुदगुदा नहीं होना चाहिए। अगर जल्दबाजी में इस तरह का बिस्तर उपलब्ध न हो पाए तो जमीन पर चटाई आदि बिछा लेनी चाहिए। इस बिस्तर के ऊपर एक मोमजामा डालकर सफेद चादर बिछा लेनी चाहिए।
    इसके बाद गर्भवती स्त्री को पीठ के बल इस बिस्तर पर लेट जाना चाहिए और बिल्कुल भी नहीं घबराना चाहिए।
    गर्भवती स्त्री के पैर इस समय एक-दूसरे से अलग रहेंगें और उसके घुटने मुड़ें रहेंगें। जब प्रसव के दौरान बच्चे का सिर नजर आने लगे तो स्त्री को अपने पैरों को उठा लेना चाहिए। इस समय स्त्री द्वारा जोर लगाना जरूरी है लेकिन इसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि ऐसा स्वयं ही हो जाता है।
    अगर घर में डिटोल मौजूद हो तो उसे गर्भवती स्त्री के योनिद्वार पर लगा दें। इससे स्त्री को किसी तरह का इंफैक्शन होने की गुंजाइश नहीं रहती।
    बच्चे का जन्म होने के बाद उसे वहीं नीचे बिछाए हुए बिस्तर पर लिटा देना चाहिए। कभी-कभी नाल काफी छोटी होती है। आंवल जब तक बाहर न निकल आए तब तक बच्चे को ज्यादा दूर नहीं रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से नाल खिंचने का डर रहता है।
    अक्सर बच्चा पैदा होते ही रोना शुरू कर देता है। उसकी आंख, कान और मुंह तुरंत साफ करने चाहिए।
    बच्चे का सिर स्त्री के सामने नहीं होना चाहिए क्योंकि बच्चा पैदा होने के बाद स्राव तेज हो जाता है। ऐसी हालत में तेज स्राव से बच्चे को बचाना चाहिए।
    प्रसव कराने वाले कमरे में उबलता हुआ पानी तैयार रहना चाहिए और उस पानी में नाल काटने का सामान जैसे- एक कैंची और कई परतों में धागे के दो टुकड़े भी उबलते रहने चाहिए।
    ऊपरी सफाई करने के बाद बच्चे को तुरंत किसी कंबल या तौलिए से ढक देना चाहिए। मां के गर्भ का अंधेरा छोडकर बच्चा बाहर खुले में आ जाता है तो उसे यहां नितांत अलग तापमान का सामना करना पड़ता है। ऐसी हालत में उसकी सुरक्षा का पूरा प्रबंध करना चाहिए।
    अगर डाक्टर या नर्स या दाई आदि प्रसव कराने के लिए उपलब्ध न हो तो किसी चिमटी आदि से खौलते पानी में से धागे को पकड़कर निकाल लेना चाहिए। इसके बाद नाभि से लगभग 8 इंच की दूरी पर नाल को बांध लेना चाहिए। एक बात का ध्यान रखें कि नाल में दो जगह गांठ पड़ेगी, दूसरी गांठ आंवल की दिशा में पड़नी चाहिए। दोनों ही गांठें मजबूत और कसकर बंधी हुई होनी चाहिए।
    इसके बाद उबलते हुए पानी में से कैंची को निकालकर नाल काट लेनी चाहिए। एक बात का ध्यान रखें कि इन सारे कामों को करते समय बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए।
    नाल कटने के बाद बच्चे को अलग किया जा सकता है। इसके बाद आंवल निकलने का इंतजार कीजिए। आंवल को बाहर निकालते समय गंदे हाथों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे संक्रमण होने का डर रहता है।
    आंवल के निकलने के बाद गर्भाशय ऊपर से गेंद की तरह उभरा हुआ नजर आता है। उसकी मालिश करनी चाहिए।
    इस समय अगर प्रसूता स्त्री की इच्छा किसी गर्म पेय पदार्थ पीने का करती है तो उसे हरीरा आदि पिलाया जा सकता है।

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