परिचय-

          किसी भी बच्चे का जन्म लेते समय वजन लगभग 3.5 किलोग्राम होता है। जिस समय बच्चा मां के गर्भ में होता है तो वह अपनी मां के रक्त से लगभग 500 ग्राम प्रोटीन, 14 ग्राम फास्फोरस, 24 ग्राम कैल्शियम और 4 ग्राम लौह तत्व ग्रहण करता है। इन सारे तत्वों से मिलकर बच्चे का विकास होता है। इसलिए यह जरूरी है कि गर्भवती स्त्री के शरीर में ये सभी तत्व, उन दूसरे तत्वों से हटकर है जो उसके अपने शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए जरूरी है। कोई भी स्त्री अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की जरूरतों को पूरा उन्ही दशाओं में कर सकती है जब वह खुद पूरी तरह से स्वस्थ हो और उसके शरीर में गर्भ में पल रहे बच्चे के पोषण के लिए जरूरी सारे तत्व मौजूद हो।

          एक बार गर्भ ठहर जाने के बाद गर्भवती स्त्री के लिए अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना बहुत जरूरी है क्योंकि गर्भ में बच्चे का विकास लगातार चलता रहता है। बच्चे को गर्भ में रोजाना जरूरी तत्वों की जरूरत होती है। गर्भ में भ्रूण का विकास गर्भावस्था के आखिरी 3 महीनों में होता है (सातवें, आठवें और नौवें महीने)। गर्भ ठहरने का नौंवा महीना पूरा होते-होते गर्भ में पल रहा भ्रूण पूरी तरह से बच्चे के रूप में बदल चुका होता है। इन दिनों भ्रूण का वजन जितना होता है उसका चौथाई भाग वह मां के रक्त से ग्रहण करता है। इसलिए इन दिनों में गर्भवती स्त्री के भोजन में पौष्टिक तत्व भरपूर मात्रा में होने चाहिए। दूध, पनीर, घी और फल आदि ऐसे पौष्टिक पदार्थ है जिनका सेवन करना गर्भवती स्त्री के लिए बहुत लाभकारी रहता है। इन पदार्थों के अलावा हरी सब्जियां और दालें भी गर्भवती स्त्री को पौष्टिकता देती है।

          हमारे देश में आज भी बहुत सी स्त्रियां ऐसी है कि जिनको गर्भावस्था के दौरान उन्हे पौष्टिक भोजन तो क्या पेट भरकर भोजन भी नहीं मिल पाता। सामान्यतः जो स्त्री संयुक्त परिवार में रहती है वह अपने घर के सभी सदस्यों का भोजन कराने के बाद अंत में जो बचता है उसी भोजन को खाने में वह अपना सौभाग्य समझती है। लेकिन वह भोजन उसके और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए पर्याप्त नहीं होता। इसलिए यह जरूरी है कि अगर गर्भवती स्त्री घर के सदस्यों के साथ भोजन न करके अंत में करती है तो तब भी भोजन उतना होना चाहिए जिससे कि उसका पेट भर जाए। क्योंकि अगर स्त्री को पेट भरकर भोजन नहीं मिलेगा तो उसकी होने वाले संतान भी कमजोर ही पैदा होगी।

          यहां बात यह भी आती है कि भरपेट भोजन सिर्फ स्त्री के गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि उसके अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। अक्सर होता ये है कि गर्भ ठहरने के बाद ज्यादातर स्त्रियों को उल्टियां होने लगती है। वह जो भी कुछ खाती है वह सब कुछ उल्टी के रूप में बाहर निकल जाता है। इसी डर के मारे वह कुछ खाने से भी परहेज करती है उसे लगता है कि वे जो कुछ भी खाएगी वे सब कुछ उल्टी के रूप में बाहर निकल जाएगा।

          किसी भी स्त्री को गर्भ ठहरने के 3 महीने तक उसके गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास के लिए खास किस्म के पौष्टिक भोजन की जरूरत नहीं पड़ती औऱ मां के सामान्य भोजन द्वारा ही उसका पोषण होता रहता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस समय तक बच्चा गर्भ में एक भ्रूण के रूप में ही पल रहा होता है।

गर्भवती स्त्री के भोजन में जरूरी तत्व-



          अगर गर्भवती स्त्री को ऊपर बताई गई तालिका के आधार पर भोजन न दिया जाए तो बच्चा मां के शरीर से ही अपना पोषण करना शुरू कर देता है जिसके कारण मां के शरीर में खून की कमी होने लगती है। ऐसी स्त्री बच्चे को जन्म देने के बाद अक्सर प्रसूति ज्वर और एनीमिया (खून की कमी) रोग से ग्रस्त हो जाती है। इसके साथ ही बच्चे के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। अगर स्त्री को गर्भावस्था के दौरान ज्यादा मंहगे पौष्टिक पदार्थ देना मुनकिन न हो तो उसे दूध, हरी सब्जियां, मौसम के अनुसार के ताजा फल, अंकुरित दालें आदि तो आसानी से दिए ही जा सकते हैं।

          किसी भी स्त्री का गर्भवती होना उतना मायने नहीं रखता जितना कि गर्भवती होने के बाद उसकी देखभाल करना और उसके लिए उचित भोजन आदि की व्यवस्था करना। क्योंकि जिस स्त्री की गर्भकाल में अच्छी तरह देखभाल की जाती है वही एक अच्छे और स्वस्थ बच्चे को जन्म देती है।

          एक सामान्य स्त्री की अपेक्षा गर्भवती स्त्री को लगभग 25 प्रतिशत ज्यादा कैलोरी की जरूरत होती है। लेकिन बहुत सी स्त्रियां गर्भधारण करने के बाद काम करना कम कर देती है इसी वजह से उनके लिए जरूरी कैलोरी उन्हे भोजन से ही प्राप्त हो जाती है। स्त्री को अगर विटामिन की जरूरत है तो उसे हरी सब्जियां, टमाटर, गाजर, शलजम, बंदगोभी आदि दी जा सकती है। कैल्शियम और फास्फोरस की कमी को दूर करने के लिए दूध देना अच्छा रहता है। 1-2 ग्राम कैल्शियम और फास्फोरस प्राप्त करने के लिए लगभग 1250 मिलीलीटर दूध स्त्री के लिए जरूरी है। वैसे ये चीजें मटर, भिंडी, हरी पत्तेदार सब्जियों, सेम, अखरोट, बादाम आदि में भी मिल जाती है। गर्भावस्था में अगर स्त्री के भोजन में खनिज पदार्थों की कमी रह जाती है तो बच्चे की रीढ़ की हड्डी और हाथ-पैरों की हड्डिय़ों में टेढ़ापन आ जाता है, दांतों के रोग हो जाते हैं, मां और बच्चे की हड्डियां मुलायम पड़ जाती है और बच्चे को सूखा रोग (रिकेट्स) होने की संभावना रहती है। इसलिए गर्भवती स्त्री के लिए खनिज पदार्थ युक्त भोजन करना भी जरूरी है।

खून की कमी-

          हर स्त्री का हर महीने मासिकधर्म आने के दौरान काफी खून निकल जाता है जिसके कारण उसके शरीर में लौह तत्व की भी कमी हो जाती है। फिर जब स्त्री गर्भवती होती है तो बच्चे के विकास में उसका काफी खून बेकार हो जाता है जिसके कारण उसके शरीर में खून की कमी और ज्यादा हो जाती है। इसलिए गर्भवती स्त्री के लिए ऐसे पदार्थों का सेवन करना जरूरी है जो उसके शरीर में खून की मात्रा को बढ़ा सके। अगर गर्भवती स्त्री के शरीर में खून की मात्रा सही होगी तो गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास भी सही तरह से चलता रहेगा।

विटामिन की कमी-

          विटामिन ’ए’ शरीर में रोगों से लड़ने का काम करता है। रक्त से संबंधी विकारों और दूसरे रोगों से यह शरीर को बचाता है। इसी तरह से विटामिन ’बी’ त्वचा रोगों से शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है और स्नायुओं को मजबूत बनाता है। हर मनुष्य के शरीर में सबसे खास अंग हृदय होता है इसलिए इसका रोगों से मुक्त रहना बहुत जरूरी है ताकि इसकी गति सामान्य और स्वाभाविक बनी रहें। इसके लिए शरीर में विटामिन ’सी’ भरपूर मात्रा में होना चाहिए। इससे सिर्फ मां का ही नहीं बल्कि बच्चे का हृदय भी मजबूत बनता है। जिन स्त्रियों का कई बार गर्भपात हो जाता है उन्हे नियमित रूप में विटामिन ’ई’ का सेवन करना चाहिए। विटामिन ’ई’ उन स्त्रियों के लिए भी अच्छा रहता है जो मां बनने में सक्षम नहीं होती है। अगर किसी स्त्री को ऐसा लगता है कि वह मां नहीं बन सकती है तो उसे रोजाना ऐसे भोजन का सेवन करना चाहिए जिसमें कि विटामिन ’ई’ भरपूर मात्रा में हो।

          यहां ये बात तो सभी लोग अच्छी तरह से समझ गए होंगे कि गर्भकाल के दौरान स्त्री को पौष्टिक और अच्छा भोजन लेना चाहिए लेकिन इसके साथ एक बात बताना और भी जरूरी है कि स्त्री भोजन को पचाने के लिए सही तरह के और आसान व्यायामों को भी करें। आमतौर पर गर्भवती स्त्रियों को भोजन में जितनी कैलोरी दी जाती है। उस अनुपात में वह व्यायाम तो क्या शारीरिक मेहनत भी नहीं करती। इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। शरीर में चर्बी (फेट) बढ़ने लगती है जिसके कारण शरीर की मांसपेशियां भारी और विकृत हो जाती है। शरीर के दूसरे अंग जैसे हृदय, फेफड़े, आंखें, मस्तिष्क, चेहरे आदि में तरह-तरह के विकार पैदा हो जाते हैं। स्त्री की जांघें, पिंडलियां, नितंब, कमर, पेट और बांहें आदि भारी और मोटे से नजर आते हैं। शरीर में चर्बी बढ़ जाने से गर्भवती स्त्री को सांस लेने में परेशानी होने लगती है जिसका असर गर्भ में पल रहे बच्चे के ऊपर भी पड़ता है। किसी-किसी मामलें में जब मां देर तक सांस नहीं ले पाती तो बच्चे की सांस भी रुक सी जाती है।  

जानकारी-

     अगर स्त्री चाहती है कि गर्भावस्था के दौरान उसके शारीरिक अंग सही तरह से काम करते रहें, उसके शरीर पर फालतू चर्बी न चढ़े तो इसके लिए उसे आलस को छोड़कर घर के छोटे-मोटे कामों को करते रहना चाहिए। गर्भवती स्त्री को रोजाना सुबह और शाम को सैर के लिए जाना चाहिए और हल्के-फुल्के व्यायाम आदि करने चाहिए।

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