एक बहुत बड़े नाले में जिसके चारों तरफ बहुत ही घना जंगल था, पंडित जगन्नाथ ज्योतिषी के साथ तेजसिंह बैठे हैं। बगल में साधारण-सी डोली रखी हुई है, पर्दा उठा हुआ है, एक औरत उसमें बैठी तेजसिंह से बातें कर रही है। यह औरत चुनार के महाराज शिवदत्त की रानी कलावती कुंअर है। पीछे की तरफ एक हाथ डोली पर रखे चंपा भी खड़ी है।
महारानी-मैं चुनार जाने में राजी नहीं हूं, मुझको राज्य नहीं चाहिए, महाराज के पास रहना मेरे लिए स्वर्ग है। अगर वे कैद हैं तो मेरे पैर में भी बेड़ी डाल दो मगर उन्हीं के चरणों में रखो।
तेज-नहीं, मैं यह नहीं कहता कि जरूर आप भी उसी कैदखाने में जाइये जिसमें महाराज हैं। आपकी खुशी हो तो चुनार जाइये, हम लोग बड़ी हिफाजत से पहुंचा देंगे। कोई जरूरत आपको यहां लाने की नहीं थी, ज्योतिषीजी ने कई दफे आपके पतिव्रत धर्म की तारीफ की थी और कहा था कि महाराज की जुदाई में महारानी को बड़ा ही दुख होता होगा, यह जान हम लोग आपको ले आये थे नहीं तो खाली चंपा को ही छुड़ाने गये थे। अब आप कहिए तो चुनार पहुंचा दें नहीं तो महाराज के पास ले जायं क्योंकि सिवाय मेरे और किसी के जरिये आप महाराज के पास नहीं पहुंच सकतीं, और फिर महाराज क्या जाने कब तक कैद रहें।
महारानी-तुम लोगों ने मेरे ऊपर बड़ी कृपा की, सचमुच मुझे महाराज से इतनी जल्दी मिलाने वाला और कोई नहीं जितनी जल्दी तुम मिला सकते हो। अभी मुझको उनके पास पहुंचाओ, देर मत करो, मैं तुम लोगों का बड़ा जस मानूंगी!
तेज-तो इस तरह डोली में आप नहीं जा सकतीं, मैं बहोश करके आपको ले जा सकता हूं।
महारानी-मुझको यह भी मंजूर है, किसी तरह वहां पहुंचाओ।
तेज-अच्छा तब लीजिए इस शीशी को सूंघिये।
महारानी को अपने पति के साथ बड़ी ही मुहब्बत थी, अगर तेजसिंह उनको कहते कि तुम अपना सिर दे दो तब महाराज से मुलाकात होगी तो वह उसको भी कबूल कर लेतीं।
महारानी बेखटके शीशी सूंघकर बेहोश हो गईं। ज्योतिषीजी ने कहा, “अब इनको ले जाइये उसी तहखाने में छोड़ आइए। जब तक आप न आवेंगे मैं इसी जगह में रहूंगा। चंपा को भी चाहिए कि विजयगढ़ जाय, हम लोग तो कुमारी चंद्रकान्ता की खोज में घूम ही रहे हैं, ये क्यों दुख उठाती है!
तेजसिंह ने कहा, “चंपा, ज्योतिषीजी ठीक कहते हैं, तुम जाओ, कहीं ऐसा न हो कि फिर किसी आफत में फंस जाओ।”
चंपा ने कहा, “जब तक कुमारी का पता न लगेगा मैं विजयगढ़ कभी न जाऊंगी। अगर मैं इन बर्देफरोशों के हाथ फंसी तो अपनी ही चालाकी से छूट भी गई, आप लोगों को मेरे लिए कोई तकलीफ न करनी पड़ी।”
तेजसिंह ने कहा, “तुम्हारा कहना ठीक है, हम यह नहीं कहते कि हम लोगों ने तुमको छुड़ाया। हम लोग तो कुमारी चंद्रकान्ता को ढूंढते हुए यहां तक पहुंच गये और उन्हीं की उम्मीद में बर्देफराशों के डेरे देख डाले। उनको तो न पाया मगर महारानी और तुम फंसी हुई दिखाई दीं, छुड़ाने की फिक्र हुई। पन्नालाल, रामनारायण और चुन्नीलाल को महारानी को छुड़ाने के लिए कोशिश करते देख हम लोग यह समझकर अलग हो गए कि मेहनत वे लोग करें, मौके में मौका हम लोगों को भी काम करने का मिल ही जायगा। सो ऐसा ही हुआ भी, तुम अपनी ही चालाकी से छूटकर बाहर निकल गईं, हमने महारानी को गायब किया। खैर इन सब बातों को जाने दो, तुम यह बताओ कि घर न जाओगी तो क्या करोगी? कहां ढूंढोगी? कहीं ऐसा न हो कि हम लोग तो कुमारी को खोजकर विजयगढ़ ले जायं और तुम महीनों तक मारी-मारी फिरो।”
चंपा ने कहा, “मैं एकदम से ऐसी बेवकूफ नहीं, आप बेफिक्र रहें।”
तेजसिंह को लाचार होकर चंपा को उसकी मर्जी पर छोड़ना पड़ा और ज्योतिषीजी को भी उसी जंगल में छोड़ महारानी की गठरी बांधा कैदखाने वाले खोह की तरफ रवाना हुए जिसमें महाराज बंद थे। चंपा भी एक तरफ को रवाना हो गई।

 

 


 

Comments
ayushi114mishra

bahut acchi book hai

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