महाराणा प्रताप सोलावी सदि के मेवाड़ के एक हिंदू राजपूत शासक थे| जो वर्तमान राजस्थान राज्य में उत्तर-पश्चिमी भारत का एक क्षेत्र है। वे अपनी वीरता और उदारता के लिए जाने जाते थे| महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश से थे। उनके कुल देवता एकलिंग जी हैं। मेवाड़ के आराध्यदेव एकलिंग जी का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। एकलिंग जी का मंदिर उदयपुर में स्थित है। मेवाड़ के संस्थापक बाप्पा रावलजी ने ८वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया था| एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। महाराणा प्रताप ने मुगलों, विशेषकर सम्राट अकबर का विरोध किया। चित्तौड़ को मुगलों ने जीत लिया था| महाराणा प्रताप ने अपने पोषित चित्तौड़ को छोड़कर, अधिकांश क्षेत्र को वापस जीत लिया था। जब तक कि वे मुगलों से चित्तौड़ को वापस नहीं जीत ले आते तब तक उन्होने फर्श पर सोने और एक झोपड़ी में रहने का वादा किया था| जो दुर्भाग्य से अपने जीवन काल में कभी पूरा नहीं कर पाये। उनका हल्दी घाटी का संग्राम बहुचर्चित है|
हल्दी घाटी का युद्ध
हल्दी घाटी के युद्ध में करीब २०हजार राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०हजार की सेना का सामना किया था। इस सेनामें अकबर ने अपने पुत्र सलीम को युद्ध पर भेजा था। सलीम, महाराणा कि फौज से लढनेमें अक्षम रहा और वह युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गया। बाद में सलीम ने अपनी सेना को एकत्रित कर लिया था| महाराणा प्रताप पर आक्रमण करणे के मनसुबे से इस बार भयंकर युद्ध को परिणाम दिया था| इस युद्ध में महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक घायल हो गया था। राजपूतों ने बडी बहादुरी से मुगलों का मुकाबला किया था| अकबर का सैन्य तोपों और बंदूकधारियों से सुसज्जित था| विशाल सेना के सामने समस्त राजपुतो के सैन्य का पराक्रम निष्फल रहा। युद्धभूमि पर उपस्थित २०हजार राजपूत सैनिकों में से केवल ६हजार जीवित बचे थे| सैनिक किसी प्रकार बचकर निकल गये थे| महाराणा प्रताप को जंगल में आश्रय लेना पड़ा था| वह युद्ध काफी भीषण हुआ था| बडी मात्र में हुए नरसंहार का वह एक जिता-जगता इतिहास है|
मेवाड़ का पुनःविजय
सन १५७९के बाद बंगाल और बिहार में मुघलों के ख़िलाफ़ विद्रोह के बाद और मिर्जा हकीम की पंजाब में घुसपैठ के बाद मेवाड़ पर मुगलों का दबाव कम हो गया। सन १५८२में, प्रताप सिंह ने लड़ाई में देवर मे स्थित मुगलों के ठिकाने पर हमला किया और कब्ज़ा कर लिया। इस से मेवाड़ में सभी ३६ मुगलों की सैन्य के ठिकानों पर हमला किया था। इस हार के बाद, अकबर ने मेवाड़ के खिलाफ अपने सैन्य अभियान को रोक दिया। देवर की जीत महाराणा प्रताप के लिए एक महत्वपूर्ण गौरव था। जेम्स टॉड ने इसे "मेवाड़ का मॅरेथॉन" के रूप में वर्णित किया। सन १५८५में, अकबर लाहौर चला गया और उत्तर-पश्चिमी मुघलों के राज्यों की स्थिति को देखते हुए अगले बारह वर्षों तक वहीं रह गया था। इस अवधि के दौरान कोई बड़ा मुगल अभियान मेवाड़ मे नही हुआ। इस स्थिति का लाभ उठाकर महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़, उदयपुर और गोगुन्दा सहित पश्चिमी मेवाड़ को पुनः प्राप्त कर लिया था। इस अवधि के दौरान, उन्होंने आज के डूंगरपुर के पास एक नई राजधानी, चनवंद का भी निर्माण किया।
राजाश्रय
चनवंद में महाराणा प्रताप ने अपने महल मे कई कवियों, कलाकारों, लेखकों और कारीगरों को राजाश्रय दिया था। राणा प्रताप के शासनकाल के दौरान चनवंद को कई कलाकारों की कर्मभुमी के हेतु विकसित किया गया था।