बाजीराव एक जाने माने सेनापति थे जो मराठा राज के चौथे छत्रपति (राजा) छत्रपति शाहू राज भोंसले के राज्य में १७२० से अपनी मौत तक मराठा पेशवा(प्रधान मंत्री) की तरह कार्यरत थे | बाजीराव ने करीबन ४१ लड़ाइयाँ लड़ी और ऐसा माना जाता है की उनको एक में भी हार का सामना नहीं करना पड़ा |उनको मराठा राज्य का शेत्र बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है , खास तौर से उत्तर में जिसकी वजह से उनकी मौत के बाद भी उनके बेटे के २० साल के राज्य में वह अपनी चरम ऊँचाई पर पहुँच सका | बाजीराव को नौ मराठा पेशवाओं में से सबसे प्रभावी माना जाता है | ऐसा कहा जाता है की वह “हिन्दू पद पदशाही”(हिन्दू राज्य) की स्थापना के लिए भी लढ़े थे |

बाजीराव का जन्म एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में छत्रपति साहू के पहले पेशवा बालाजी विश्वनाथ के बेटे के रूप में हुआ | जब वह बीस साल के हुए तो उन्हें उनके पिता की मौत के बाद शाहू ने कई पुराने और अनुभवी लोगों की दावेदारी को अनदेखा कर पेशवा बना दिया | उनकी नियुक्ति से यह ज़ाहिर है की शाहू को उनका हुनर किशोरावस्था में ही नज़र आ गया था और इसलिए उन्हें पेशवा बनाया गया | बाजीराव अपने सैनिकों में काफी लोकप्रिय थे और आज भी उनका नाम इज्ज़त से लिया जाता है |

बाजीराव ने मस्तानी को अपनी दूसरी पत्नी का दर्जा दिया | वह पन्ना के राजा छत्रसाल की फारसी मुस्लिम बीवी से जन्मी बेटी थी | मस्तानी एक बहु प्रतिभावान सुन्दर राजकुमारी थी और उसको घुड़सवारी , तलवारबाजी , युद्ध निति , धार्मिक अध्ययन, कविता, संगीत और नृत्य में महारत हासिल थी और इसीलिए वो बाजीराव की चहेती बन गयी | उसने उनके तीसरे बेटे को जन्म दिया जिसका जन्म पर नाम कृष्णराव रखा गया | मौके का फायदा उठाते हुए  स्थानीय ब्राह्मण राजनेताओं ने बच्चे को  शुद्ध हिन्दू ब्राह्मण मानने से इंकार कर दिया क्यूंकि उसकी माँ मुस्लमान थी | उन्होनें इस शादी को कबूल करने से इनकार कर दिया | मस्तानी से इस शादी से रूडिवादी हिन्दू पुणे समाज में दरार पद गयी और पेशवा के परिवार में एक गंभीर संकट उत्पन्न हो गया |

बाजीराव की मौत २८ अप्रैल १७४९ को काफी कम उम्र में हो गयी | उन्हें अपनी जागीरों का मुआयना करते हुए अचानक बुखार हुआ , शायद गर्मी की वजह से और वह ३९ साल की उम्र में चल बसे | वह १००००० सैनिकों के साथ दिल्ली जा रहे थे और इंदौर शहर के पास खर्गोने क्षेत्र में रुके थे | २८ अप्रैल १७४० को उनका अंतिम संस्कार रावेरखेडी में नर्मदा नदी सनावद खर्गोने के पास कर दिया गया | उनकी याद में सिंदिया ने एक स्मारक की स्थापना की | उनके निवास स्थान और एक शिवजी के मंदिर के खँडहर पास में स्थित है |

उपलब्धियां

शनिवारवाडा पुणे का किला आर महल , मराठा राज्य के पेशवा राजाओं की गद्दी की  स्थापना बाजीराव ने की थी |

  • बाजीराव जिन्होनें ४१ से ज्यादा बड़े  युद्ध लड़े हैं और कई और भी , ऐसा बताया जाता है की उन्हें कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा |
  • वह पहले शख्स थे जिन्होनें अपने पिता की तरह टूटते मुग़ल सल्तनत की कमजोरियों को समझ उनका फायदा उठाया | मुग़ल दरबार में स्येद भाइयों के घटते रुबव के चलते भी उन्होनें हमला करने का फैसला लिया |
  • बाद के राज्य ग्वालियर के सिंदिया (रानोजी शिंदे ) , इंदौर के होलकर (मल्हारराव ) , बरोदा के गएकवाढ(पिलाजी) और धर के पवार (उदैजी) बाजीराव द्वारा मराठा राज्य को बढ़ाने के लिए और मुग़ल सल्तनत को बिखरने के लिए स्थापित किये गए | इसके लिए उन्होनें अपने जागीरदारों को स्थापित किया |
  • उन्होनें अपना निवास सस्वाद से  और मराठा राज्य की प्रशासनिक  राजधानी को १७२८ में सतारा से पुणे में बदल दिया | इस प्रक्रिया में उन्होनें एक कसबे को बड़ा शहर बनाने की नींव रखी | उनके सेनापति बापूजी श्रीपत ने सतारा के कई आमिर परिवारों को पुणे शहर जो १८ पेठों में बंटा था में बसने के लिए मनाया |
  • १७३२ में महाराजा छत्रसाल जो मराठा राज्य के पुराने दोस्त थे के निधन के बाद बाजीराव को छत्रसाल के बुंदेलखंड के राज्य का एक तिहाई हिस्सा हासिल हुआ |
  • एक महान सेना नेता बाजीराव को उसकी सेना और लोगों से बहुत प्यार मिला | माना जाता है की उन्होनें धर्म की रक्षा के लिए भी लडाई लड़ी और मुग़लों को मध्य और पश्चिम भारत से पूरी तरह से खदेड़ उत्तर की तरफ अपना लक्ष्य साधा | उनके नेतृत्व में मराठा ने सिद्दी , मुग़लों , पुर्तगाली , निज़ाम और बंगाश को हार का मुंह दिखाया |
  • उन्हें शिवाजी महाराज के बाद मराठा राज्य जो की भारत उप महाद्वीप पर पूरे १८ शताब्दी और अंग्रेजों के आने से पहले तक १९ शताब्दी में हावी होने वाला था की स्थापना एक  महत्वपूर्ण स्तम्भ बन के की |
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