हमारे कर्नल साहब अपनी स्त्री को बहुत मानते थे। उनके कहने पर बड़े से बड़ा त्याग करने के लिये वह तैयार हो जाते। यहाँ तक कि यदि वह कह देतीं तो वह नौकरों को गाली देना भी बन्द कर देते। क्लब के एक सदस्य ने मुझे बताया कि एक बार उनके कह देने से एक रात उन्होंने एक ही बोतल व्हिस्की पी थी। उस घटना को इस पलटन में लोग ऐतिहासिक घटना मानते हैं।
आज उनकी स्त्री की सालगिरह थी। मुझे भी कुछ भेजना ही होगा और विशेषतः इसीलिये कि आज कर्नल साहब ने सभी अफसरों को भोजन के लिये आमंत्रित भी किया था। मैं सोचने लगा -क्या उपहार भेजूँ। मुझे पता भी नहीं था कि उनकी रुचि कैसी है। उन्हें देखा तो कई बार था, परन्तु इस निष्कर्ष पर न पहुँच सका कि कौन-सी चीज उन्हें पसन्द आयेगी। बहुत देर तक सोचने पर मैंने निश्चय किया, क्यों न एक जोड़ा जूता कानपुर का, जैसा मैंने दुकान पर देखा था, भेजूँ।
मैं उसी दुकान पर गया और एक जोड़ा जूता लगभग उन्हीं के नाप का, जिस पर सोने के बेल-बूटे बने हुए थे, खरीद लाया। और अपने बेयरा के हाथों अपने नाम का कार्ड लगाकर भेज दिया। सन्ध्या को जब मैं भोजन के लिये पहुँचा, और भी कितने ही अफसर पहुँच गये थे। ज्योंही मैं पहुँचा श्रीमती शूमेकर ने बड़े तपाक से मेरा स्वागत किया। उठ कर मेरे निकट चली आयीं। पाँच मिनट तक मेरा हाथ हिलाती रहीं और धन्यवाद की झड़ी लगाती हुई बोलीं - 'बेटा, (वह सब युवक अफसरों को बेटा कहकर पुकारती थीं) मैं सत्ताईस सालों से भारतवर्ष में हूँ। किसी ने ऐसी सुन्दर कलापूर्ण वस्तु मुझे उपहार में न दी। आध घंटे तक तो मैंने इसे छाती से लगाये रखा। यदि यह तीस साल पहले मिला होता तो इसी को विवाह के अवसर पर पहनती। कर्नल तक ने कभी मुझे ऐसा उपहार न दिया।'
मुझे गर्व का नशा चढ़ गया। मैंने कहा - 'यह वस्तु ही ऐसी है। शाहजहाँ की विख्यात बेगम मुमताजमहल ने जो जूते पहने थे, उसी का चित्र अवध के बहुत बड़े ताल्लुकेदार राजा बिडालेश्वरसिंह के यहाँ था, उसी को दिखाकर मैंने बनवाया। चित्र के अनुसार तो क्या बना? हाँ, कुछ है।' मिसेज शूमेकर ने कहा - 'तुमने क्यों इतना व्यय किया? यह तो अनुचित है।'
मैंने कहा - 'दूसरी वर्षगाँठ पर मैं न जाने कहाँ रहूँ। जीवन की एक अभिलाषा मैंने पूर्ण कर दी।'
वह जूते का जोड़ा सब लोगों को दिखाया गया। सब लोगों ने 'वाह-वाह' की। कैप्टन बफैलो की स्त्री बगल में बैठी थीं। उन्होंने कहा कि 'मुझे तो सपने में भी यह खयाल नहीं था कि हिन्दुस्तान में ऐसी कारीगरी होती होगी। मैं जब यहाँ आयी तब समझती थी कि यहाँ काठ के जूते पहने जाते हैं। फिर जो जूते देखे वह सब यूरोप की नकल थे। हाँ, यहाँ के पुलिस कान्स्टेबुल जो जूते पहनते हैं, वह भारतीय जान पड़ते हैं।''
कैप्टन बफैलो ने कहा - 'यह हिन्दुस्तान की कारीगरी हो ही नहीं सकती। इसकी शक्ल देखो। इटली के गांडोला से ठीक मिलती है। जान पड़ता है कि ताजमहल बनाने के लिये जो इटली से राजगीर आया था, उसी ने यह नमूना मुमताज बेगम के लिये बनवाया होगा। इसका मूल यूरोप ही है। यहाँ ऐसी वस्तु कहाँ?'
कर्नल साहब ने कहा - 'नहीं, यहाँ कारीगर तो बहुत अच्छे-अच्छे हैं। देखिये, लाल इमली का कारखाना यहीं के लोगों ने बनाया। मगर इस जूते के बारे में कह नहीं सकता। लफ्टंट रोड, आपकी क्या राय है?'
लफ्टंट रोड हमारी सेना के इंजीनियर थे और पुरातत्त्व के बड़े विद्वान थे। उन्होंने कहा - 'एक बात जो विशेष ध्यान देने योग्य है वह है इसकी नोक। आप लोगों ने ध्यान दिया होगा तो देखा होगा कि इसकी शक्ल स्कैंडिनेविया प्रायद्वीप की-सी है। यह अनुकृति यों ही नहीं हो गयी है। यह बिल्कुल यूरोप की कारीगरी है। यह तो मैं अपने पुरातत्त्व के अध्ययन के बल पर कह सकता हूँ। यह जूता मुझे मिल जाये तो अध्ययन करके रायल एशियाटिक सोसायटी के पत्र में लेख लिखूँ।'
परन्तु मिसेज शूमेकर ने देना मंजूर न किया। उन्होंने कहा कि जब तक मैं यहाँ हूँ, इसे अपने से अलग नहीं कर सकती और यदि यह इतने महत्व की वस्तु है तो इंग्लैंड लौटने पर इसे इंडिया आफिस को प्रदान कर दूँगी। यह उसी जगह रखने की वस्तु है।
इस विवाद से इतना लाभ मुझे हुआ कि भूख तेज हो गयी है और मैंने ड्योढ़ा खाया। मछली तो मैंने तीन प्लेट खायी।