मसूरी में ढाई महीने राजा साहब के साथ रहा। यों तो भारत में जितने अंग्रेज रहते हैं सभी एक प्रकार से यहाँ के अतिथि हैं, किन्तु मैं तो सचमुच राजा साहब का अतिथि था। राजा साहब ने होटलों को आज्ञा दे रखी थी कि लफ्टंट साहब से एक पैसा न लिया जाये। मेरा सारा बिल उन्होंने चुकाया और हम लोग साथ लौटे। मैंने छुट्टी तीन महीने की ले रखी थी। पन्द्रह दिन पहले लौटने का कारण यह था कि राजा साहब का आग्रह था कि उनके राज्य में मैं भी दस-पन्द्रह दिन बिताऊँ। मैं तैयार हो गया।
मसूरी में मेरा जी कुछ घबराने-सा लग गया था। वही नित्य का नाच और वही रात को शराब की बोतलें। कभी-कभी रिंक में स्केटिंग के लिये चला जाता था। किन्तु राजा साहब तो केवल नाच में ही सम्मिलित होते थे और खेल-कूद से उन्हें विशेष प्रेम नहीं था। हाँ, ताश अवश्य खेल लिया करते थे।
राजा साहब के साथ रहते-रहते दो-तीन दोष मुझमें भी सम्पर्क से आ गये थे। राजा साहब में सबसे बुरी आदत थी नित्य स्नान करना। उनके स्नान करने की विधि भी विचित्र थी। कुछ तो साथ के कारण और कुछ इच्छा से, मैं भी नित्य नहाने लगा। राजा साहब की भाँति तो मैं नहीं नहा सकता था, क्योंकि प्रतिदिन के जीवन में मेरे लिये वैसा सम्भव नहीं था।
उनके नहाने की क्रिया इस प्रकार थी। सवेरे पैदल या घोड़े पर हम लोग घूमने जाते थे। वहाँ से लौटने पर जलपान होता था। जलपान में चाय, टोस्ट, अंडे, मिठाइयाँ इत्यादि होती थीं। इसके पश्चात् कमरे में एक तख्ते पर राजा साहब बैठ जाते थे और दो नौकर एक बोतल में सरसों का तेल लेकर उनके दोनों ओर खड़े हो जाते थे। तेल हाथ में लेकर राजा साहब के शरीर पर डाल देते थे और राजा साहब का शरीर मला जाता था।
जिस समय यह क्रिया होती थी वह दर्शनीय था। राजा साहब तो जान पड़ता था कि समय के बाहर हो गये हैं अथवा उन्होंने समय को जीत लिया है। नौकर झूम-झूमकर उनके हाथ, पाँव, पीठ और पेट हाथों से रगड़ते जाते थे। जैसे किसी मशीन में ठीक चलने के लिये तेल दिया जाता है, उसी भाँति उनके शरीर में लगाया जाता था। आधा बोतल तेल सोखाया जाता था। डेढ़ घंटे तक यह कार्य होता था। इसके पश्चात् सिर में एक नौकर तेल लगाता था। यह तेल दूसरा था। जब एक नौकर सिर में तेल लगाता था तब दूसरा स्नान का प्रबन्ध करता था।
एक दिन मैंने राजा साहब से यह इच्छा प्रकट की कि केवल देखने के लिये मैं एक दिन तेल लगवाना चाहता हूँ। उन्होंने बड़ी प्रसन्नता प्रकट की, मानो मैंने कोई बड़ा अहसान उनके ऊपर किया। उन्होंने अपने नौकर से कहा कि देखो, लफ्टंट साहब को अच्छी तरह तेल लगाओ। जीवन में पहली बार मुझे यह अनुभूति हुई। मैंने सब कपड़े उतार दिये। केवल निकर पहने हुए था। कमरा बन्द कर लिया गया और तेल लेकर दोनों नौकर खड़े हो गये। उस दिन कुछ ठंडक भी थी। तेल लेकर नौकरों ने मेरे शरीर को जोरों से रगड़ना आरम्भ किया। नौकरों के हाथ की रगड़ से मेरे शरीर के रोएँ टूटने लगे और मुझे ऐसा जान पड़ा कि किसी मिल के नीचे पीसा जा रहा हूँ। तेल की यह महक भी विचित्र थी। मेरी आँखों से आँसू निकलने लगे। सारे शरीर का खून खाल में आ गया। मुझे ऐसा जान पड़ा कि खून शरीर के बाहर आने को उत्सुक है और मालिश करनेवाले उसे दबाकर शरीर के भीतर कर रहे हैं। जाड़े का तो नाम नहीं था। इसके उल्टे यदि थर्मामीटर लगाया गया होता तो कम-से-कम 105 डिग्री तापमान इस समय होता। मैंने नौकरों से यह कार्य समाप्त करने के लिये कहा तो राजा साहब बोले - 'अभी तो कुछ भी तेल शरीर में नहीं भिना, प्रत्येक मनुष्य के शरीर में प्रतिदिन एक पाव तेल सोखा दिया जाये तब जाकर कहीं स्वास्थ्य ठीक हो सकता है।' यदि सचमुच राजा साहब स्वयं इस सिद्धांत का पालन करते रहे हैं तो इस समय उनका शरीर तेल का ही बना होगा। परन्तु जिस समय नौकरों ने मालिश बन्द कर दी ऐसा जान पड़ा कि मैं उड़ जाऊँगा। सर्दी का नाम नहीं था और सारा शरीर हल्का जान पड़ता था। फूल की भाँति हो गया था। उस समय जी होता था कि किसी बर्फ की झील में कूद पड़ूँ। नित्य कैसे लोग नहाते हैं, अब समझ में बात आ गयी। हाँ, एक बात अवश्य थी कि सारे शरीर में पीड़ा हो रही थी। नौकरों ने इतने जोरों से सब शरीर रगड़ डाला था कि अगर कोई सेना का मेरे ऐसा आदमी न होकर साधारण मनुष्य होता तो वह सने हुए आटे की भाँति हो गया होता।
दूसरे दिन, तीसरे दिन भी मैंने मालिश करायी और मुझे तो ऐसा जान पड़ा कि मैं इसके बिना रह नहीं सकता, इसका प्रभाव यह भी हुआ कि मैं नित्य नहाने लगा और दोपहर में भी सोने लगा।