मैं देख रहा था। भीड़ इतनी बढ़ गयी थी जिससे इस बात का अनुमान हो सकता था कि भारत की आबादी सचमुच चालीस करोड़ है। कानपुर की आबादी बहुत है, इतना जानते हुए भी मैं अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सकता था कि इतने लोग किसी सभा में एकत्र हो सकते हैं। लोग कहते हैं कि भारत में स्त्रियाँ पर्दे में रहती हैं, मैंने भी देखा है। किन्तु इतना कहना पड़ेगा कि गांधी महात्मा से वह पर्दा नहीं करतीं।
मैंने गांधी का चित्र कई बार देखा है। समाचारपत्रों के अतिरिक्त कैलेण्डर पर, दियासलाई की डिबिया पर, ताश के पत्ते पर भी उनका चित्र देखा है किन्तु प्रत्यक्ष देखने का अवसर आज ही मिला। उनकी नाक और कान बड़े-बड़े हैं। सिर के बाल बहुत छोटे-छोटे छँटे हैं। जान पड़ता है तेल का खर्च बचाना चाहते हैं। इन्होंने मूँछें भी रख छोड़ी हैं। सम्भवतः समय की गति के साथ नहीं चल सके हैं। स्पष्ट है कि इन पर अंग्रेजी शिक्षा बेकार गयी है और इनका इंग्लैंड जाना निरर्थक हुआ है। यह कपड़ा भी साधारण पहनते हैं। सिला हुआ कोई कपड़ा इनके शरीर पर दिखायी नहीं पड़ा। एक छोटी-सी धोती और ऊपर का शरीर लपेटने के लिये एक छोटा-सा कपड़ा। लोगों का कहना है कि यह अपने हाथ के काते हुए सूत का कपड़ा पहनते हैं। इसीलिये कम पहनते हैं, क्योंकि अधिक सूत नहीं कात सकते होंगे।
इन्होंने भाषण आरम्भ किया। लाउड स्पीकरों के कारण भाषण दूर-दूर तक सुनायी देता था। पहली बात तो यह है कि यह बैठकर बोलते हैं। न तो हाथ इधर-उधर घुमाते हैं, न पैर पटकते हैं। बड़े-बड़े वक्ताओं की भाँति न गर्दन इधर से उधर जाती है, न जोश के साथ इधर से उधर घूमते हैं। फिर भी इतने लोग इनकी बातें सुनने आते हैं, आश्चर्य है।
इन्होंने पहली बात यह बतायी कि अगर स्वराज लेना हो तो सबको खादी पहननी चाहिये और सूत कातना चाहिये। मैंने तो समझा था कि यह सबको सलाह देंगे कि बम बनाओ, गोली-बारूद एकत्र करो। जापानियों की भाँति सब लोग सूट पहनो। पश्चिम के देशवाले स्वाधीन हैं, क्योंकि सब सूट पहनते हैं, किन्तु यह तो खादी को स्वराज के लिये आवश्यक समझते हैं। जब संसार में बड़ी-बड़ी मिलें चल रही हैं, तब यह कहते हैं, चर्खा चलाओ। इन्हें तो हजरत ईसा मसीह के युग में पैदा होना चाहिये था। बीसवीं शती के लिये तो यह अनुपयुक्त चीज हैं। हो सकता है इनका अभिप्राय यह हो कि खादी का प्रयोग सब लोग करने लगेंगे तब मैनचेस्टर की सब मिलें बन्द हो जायेंगी और इंगलैण्ड के बहुत-से काम करनेवाले बेकार हो जायेंगे और तब भूख से तड़फड़ा कर भारतवासियों से कह देंगे कि लो स्वराज, हम भूखों मर रहे हैं इसलिये तुम्हें स्वतन्त्र कर देते हैं। सम्भवतः यह स्थिति युद्ध से भी भयंकर हो सकती है।
यदि सचमुच सब लोगों ने खादी अपनायी तो इंग्लैंड के लिये बड़े संकट की अवस्था उपस्थित हो सकती है। किन्तु हमें आशा है कि महात्मा गांधी की इस बात को सब लोग नहीं मानेंगे। अंग्रेजी शिक्षा ने बहुत को यह बात सिखा दी होगी कि वह समझेंगे कि यह युग मशीनों का है और महात्मा गांधी सभ्यता की गाड़ी को हजारों वर्ष पीछे खींचे जा रहे हैं। यदि हम लोगों का दो सौ साल का प्रचार कुछ नहीं कर सका और महात्मा गांधी का दस-पन्द्रह साल का प्रचार इतना प्रभावशाली हो गया तब इतने दिनों का शासन हम लोगों का बेकार हुआ।
एक और बात महात्मा गांधी ने अपने भाषण में बतायी। कहा - 'सब लोग मन से, वचन और कार्य से अहिंसात्मक हों। हिन्दू-मुसलमानों में मेल हो जाये और शराब पीना छोड़ दें तो स्वराज तुरन्त मिल जाये।' भाषण के पश्चात् इतने जोरों से बस लोग 'महात्मा गांधी की जय' चिल्लाने लगे कि साधारण नींव के घर सब हिल गये होंगे। सभा से सब लोगों के निकलने में आध घंटे से कम नहीं लगा होगा।
दूसरे दिन सन्ध्या के समय कर्नल साहब से मैंने सभा का सारा हाल सुनाया। वह बहुत प्रसन्न हुए, बोले - 'जो बातें उन्होंने कहीं उनसे भारत कभी स्वतन्त्र नहीं हो सकता।' मैंने कहा कि सब लोग खद्दर पहनने लगेंगे तो इंग्लैंड के व्यापार को गहरी हानि पहुँच सकती है। कर्नल साहब - 'यह सम्भव हो सकता है, किन्तु हम लोग महात्मा गांधी से भी चालाक हैं। हम लोग जो स्कूल और कॉलेजों में पढ़ाते हैं उसके भीतर रहस्य है। तुम देखोगे कि बहुत-से भारतवासी ही इसका विरोध करेंगे। कहेंगे कि यह तो देश को सैकड़ों वर्ष पीछे ढकेलता है। जब सारा संसार आगे बढ़ रहा है हम लोग पीछे नहीं जा सकते। यह मशीन का युग है। रेल छोड़कर बैलगाड़ी पर नहीं चला जा सकता। वह लोग यह कहेंगे - इसी देश में मिल खुलें। देश का औद्योगीकरण होना चाहिये। तब देखना कितने लोग खद्दर पहनते हैं। इससे हमें भय नहीं है। भय एक ही है -हिन्दू-मुसलमान यदि मिल जायें।'
मैंने कहा - 'इधर दो-तीन वर्षों में जो कुछ देखा और सुना है उससे तो यही जान पड़ता है कि यह लोग एक-दूसरे को सन्देह की दृष्टि से देखते हैं।' कर्नल साहब बोले - 'यही हमारे शासन की सफलता है। हमने यहाँ पर रेल चलायी, तार चलाया, डाकखाने बनवाये, बड़े-बड़े कॉलेज और स्कूल खोले। यह सब साधारण बातें हैं। इससे हमारा कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। किन्तु हिन्दू-मुसलमान लड़ते हैं और हमने ऐसा पढ़ाया है, ऐसी व्यवस्था की है कि यह लड़ते रहें। भाषण और लेख में सदा इस पर दुःख प्रकट करना चाहिये, किन्तु तरकीबें सोच-सोचकर करनी चाहिये कि दोनों एक-दूसरे का अविश्वास करते रहें। इतिहास की पुस्तकों में ऐसी बातें लिखनी चाहिये जिससे पता चले कि यह लोग सदा से एक-दूसरे की गरदन पर सवार रहे हैं। मैं तो तुम्हें भी सलाह दूँगा कि तुम एक ऐसी पुस्तक लिखो। हम लोग जो पुस्तक लिखते हैं वह समझी जाती है कि बड़ी खोज से लिखी गयी है। बात कुछ भी हो, उसे अपने एंगल से व्यक्त करना चाहिये। इसी को विद्वत्ता कहते हैं। यह कोई नहीं पूछने जायेगा कि बात ठीक है या गलत। सब लोग यही कहेंगे कि अमुक अंग्रेज की यह पुस्तक लिखी है और वह कॉलेजों में, विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जायेगी।'
मैंने कहा कि मैं झूठ तो नहीं लिख सकता। उन्होंने कहा कि तुम्हें अनुभव नहीं है। झूठ और साम्राज्यवाद का ऐसा सम्बन्ध है जैसे टोस्ट और मक्खन का। झूठ बोलने में वीरता है। क्या तुम समझते हो क्लाइव, हेस्टिंग्स बेवकूफ थे? लायड जार्ज पागल थे? अगर हम लोग झूठ न बोलते तो भारत से कभी हाथ धो बैठते। संसार के राष्ट्रों में हमारी क्या स्थिति होती?
मैं ग्यारह बजे के लगभग अपने बँगले में आया। महात्मा गांधी के व्यक्तित्व की ओर सोचने लगा और कर्नल साहब की बातों की ओर सोचने लगा। महात्मा गांधी की बातों में कितनी सच्चाई है, कितनी निष्कपटता है। किन्तु साम्राज्य की रक्षा के लिये सत्य का भी बलिदान करना ही होगा। साम्राज्य की रक्षा का अर्थ तो अंग्रेज जाति की रक्षा है। अपनी रक्षा है।
पुस्तक लिखने के सम्बन्ध में तो बड़ा अच्छा सुझाव कर्नल साहब ने दिया है। क्यों न मैं एक ऐसी पुस्तक लिखूँ - जिसमें यह बात दिखायी जाये कि भारतीय स्वाधीनता के लिये सर्वथा अयोग्य हैं। केवल यही नहीं कि यहाँ हिन्दू-मुसलमानों में मेल नहीं है। हम बहुत-सी ऐसी बातें बता सकते हैं जिससे जान पड़ेगा कि भारतवासियों का स्वाधीन हो जाना एक जाति को, जिसे हमने थोड़ा सभ्य बनाया है, फिर असभ्यता के युग में लौटाना है। संसार के सम्मुख हमें ऐसी ही बातें रखनी चाहिये।
जैसे हिन्दू लोग मुर्दा जलाते हैं, धोती पहनते हैं, काँटे और छुरी की सहायता के बिना खाते हैं, यह बड़ी गंदी आदतें हैं। इन्हें कैसे स्वराज्य मिल सकता है? बहुत-से हिन्दू सिर के पीछे बालों का बड़ा-सा गुच्छा लटकाते हैं, साबुन लगाये बिना स्नान करते हैं, गोबर से घर लीपते हैं इन्हें स्वराज देकर संसार को गंदा बनाना है। जहाँ स्त्रियाँ लिपस्टिक नहीं लगातीं, नाचतीं नहीं, टेनिस नहीं खेलतीं, वह देश कभी स्वराज्य के योग्य हो सकता है? मुसलमानों के सम्बन्ध में हमें कहना चाहिये कि जो जाति घुटने के नीचे तक की अचकन पहनती है, एक-एक फुट की दाढ़ी रखती है, दिन में पाँच बार ईश्वर-वंदना के नाम पर समय की बरबादी करती है, वह स्वराज्य ले सकती है?