२६०. भगवद्गीतेच्या तत्त्वज्ञानापुढें एकीचें तत्त्वज्ञान कोण प्रतिपादन करूं शकला असता? कौरवपांडवांसारखें किंवा यादवांसारखें आपआपसांत भांडणें हें अधिक धार्मिक नव्हतें काय? खुद्द परमेश्वरानेंच जर तें केलें, तर हिंदी राजेरजवाड्यांचें तेंच कर्तव्य ठरत नव्हतें काय? आणि तें कर्तव्य खरोखरच ते उत्तम रीतीनें बजावीत होते. मुसलमान येऊन सर्वांची सारखी कत्तल करतात, तरी पण आमचे राजे आपसांत भांडतच होते! यदाकदाचित् अल्पकालापुरते लढाईच्या मैदानावर मुसलमानांना विरोध करण्याला ते एकत्र जमले, तरी शिस्तीच्या अभावामुळें अशा जमावाचा धुव्वा उडवून देणें मुसलमानांना फार सोपें जात असे. आनन्दपालानें एकत्र केलेल्या लहानमोठ्या राजांची महमूद गझनीसमोर कशी दाणादाण उडून गेली, हें वर्णन वाचण्याजोगें आहे; १ व तें वाचतांना पानिपतच्या लढाईंत झालेल्या मराठ्यांच्या पराभवाची आठवण झाल्यावांचून रहात नाहीं.
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१ Mediaeval India, pp. 19-20.
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२६१. महमूद गझनी आला, देवळें मोडलीं, लूटफाट केली व निघून गेला. पंजाब व सिंध येथें काय ती त्याची थोडीबहुत सत्ता राहिली. त्याच्या नंतर महंमद घोरी उदयाला आला. प्रथमत: त्यानें पंजाब व सिंध प्रांतांत आपल्याच धर्मबांधवांचा उच्छेद मांडला, व त्यानंतर तो दिल्लीकडे वळला. पण ११९१ सालीं कर्नाळच्या उत्तरेला तराईन येथें पृथ्वीराज चव्हाणानें त्याचा असा पराजय केला कीं, त्याला आपल्या लोकांना घेऊन पळतां वाट पुरे झाली. त्यानें आपला जीव कसा बसा नेऊन अफगाणीस्थानांत टाकला. परंतु या पराजयामुळें त्याला झोंप कशी ती येईना. एका वर्षांत पुन्हा फौजेची तयारी करून त्यानें हिंदुस्थानावर हल्ला केला, व त्याच तराईत गांवीं पृथ्वीराजाचा पराजय करून त्याला ठार केलें, आणि बहुतके सर्व उत्तर हिंदुस्थान आपल्या ताब्यांत घेतला. पांच सहा वर्षांच्या अवधींत महंमद घोरीचें राज्य बंगालपर्यंत पसरले. १
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१ Early History of India, pp. 403-4.
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२६२. महमंद घोरीच्या व महमूद गझनीच्या स्वार्यांत एवढाच फरक कीं, घोरीनें आपलें ठाणें दिल्लीला कायमचें बसविलें, आणि जिकडे तिकडे देवळांचे दगड काढून त्याच देवळांवर मशीदी आणि इदगे बांधण्यास सुरुवात केली. या वेळीं ब्राह्मणांचा कसा छळ झाला याचें वर्णन वर निर्देशलेल्या २ महाभारतांतील वनपर्वाच्या एकशें नव्वदाव्या अध्यायांत सांपडतें. तेव्हां कोठें ब्राह्मणांना चैत्यांची थोडीबहुत आठवण झाली. चैत्यांच्या जागीं काय किंवा मंदिरांच्या जागीं काय इदगे किंवा मशीदी होतील, हें भविष्य त्यांनी ह्या अध्यायांत दडपून देऊन विष्णुपुराणांतील भविष्याची नवी आवृत्ति काढली. बाकी मुसलमानांचें पारिपत्य करण्याचें काम त्यांनी विष्णुपुराणाप्रमाणेंच कल्कि अवतारावर सोंपविलें! मात्र त्यांत फरक एवढाच कीं, महाभारतांतील भविष्यांत विष्णुयश स्वत:च कल्कीचा अवतार बनतो.
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२ वि. ३। १२९ वगैरे.
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१ Mediaeval India, pp. 19-20.
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२६१. महमूद गझनी आला, देवळें मोडलीं, लूटफाट केली व निघून गेला. पंजाब व सिंध येथें काय ती त्याची थोडीबहुत सत्ता राहिली. त्याच्या नंतर महंमद घोरी उदयाला आला. प्रथमत: त्यानें पंजाब व सिंध प्रांतांत आपल्याच धर्मबांधवांचा उच्छेद मांडला, व त्यानंतर तो दिल्लीकडे वळला. पण ११९१ सालीं कर्नाळच्या उत्तरेला तराईन येथें पृथ्वीराज चव्हाणानें त्याचा असा पराजय केला कीं, त्याला आपल्या लोकांना घेऊन पळतां वाट पुरे झाली. त्यानें आपला जीव कसा बसा नेऊन अफगाणीस्थानांत टाकला. परंतु या पराजयामुळें त्याला झोंप कशी ती येईना. एका वर्षांत पुन्हा फौजेची तयारी करून त्यानें हिंदुस्थानावर हल्ला केला, व त्याच तराईत गांवीं पृथ्वीराजाचा पराजय करून त्याला ठार केलें, आणि बहुतके सर्व उत्तर हिंदुस्थान आपल्या ताब्यांत घेतला. पांच सहा वर्षांच्या अवधींत महंमद घोरीचें राज्य बंगालपर्यंत पसरले. १
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१ Early History of India, pp. 403-4.
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२६२. महमंद घोरीच्या व महमूद गझनीच्या स्वार्यांत एवढाच फरक कीं, घोरीनें आपलें ठाणें दिल्लीला कायमचें बसविलें, आणि जिकडे तिकडे देवळांचे दगड काढून त्याच देवळांवर मशीदी आणि इदगे बांधण्यास सुरुवात केली. या वेळीं ब्राह्मणांचा कसा छळ झाला याचें वर्णन वर निर्देशलेल्या २ महाभारतांतील वनपर्वाच्या एकशें नव्वदाव्या अध्यायांत सांपडतें. तेव्हां कोठें ब्राह्मणांना चैत्यांची थोडीबहुत आठवण झाली. चैत्यांच्या जागीं काय किंवा मंदिरांच्या जागीं काय इदगे किंवा मशीदी होतील, हें भविष्य त्यांनी ह्या अध्यायांत दडपून देऊन विष्णुपुराणांतील भविष्याची नवी आवृत्ति काढली. बाकी मुसलमानांचें पारिपत्य करण्याचें काम त्यांनी विष्णुपुराणाप्रमाणेंच कल्कि अवतारावर सोंपविलें! मात्र त्यांत फरक एवढाच कीं, महाभारतांतील भविष्यांत विष्णुयश स्वत:च कल्कीचा अवतार बनतो.
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२ वि. ३। १२९ वगैरे.
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